Dharm Jagat
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@dharmjagat

*।। श्रीहरि: ।।*

*जीभ से निरन्तर भगवान् का नाम लीजिये*

*भगवान ने कहा है--'सभी धर्मों का आश्रय छोड़कर केवल एकमात्र मेरी शरणमें चले आओ। फिर मैं तुम्हें सब पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम चिन्ता मत करो।'*

*सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।*
*अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।*
(गीता १८/६६)

*मन की कैसी भी अवस्था क्यों न हो, कोई परवा नहीं। केवल जीभ से निरन्तर भगवान का नाम लीजिये, फिर सारी जिम्मेवारी भगवान् सँभाल लेंगे। केवल जीभ से नाम-स्मरण--और कोई शर्त नहीं।*

*चाहे मन लगे या न लगे, यदि भगवान का नाम जीभ से निरन्तर लेने लग जाइयेगा, तो फिर न तो कोई शंका उठेगी, न कोई चाह रहेगी। थोड़े ही दिनों में शान्ति का अनुभव करने लगियेगा।*

*इससे सरल उपाय कोई नहीं है। पूर्व के पापों के कारण नाम लेने की इच्छा नहीं होती। एक बार हठ से निरन्तर नाम लेने का नियम लेकर ४-६ महीने बैठ जायेंगे, तो फिर किसी से कुछ भी पूछने की जरूरत नहीं रहेगी। स्वयं सत्य वस्तु का प्रकाश मिलने लगेगा, संदेह मिटने लगेंगे।*

*इस प्रकार जिस दिन भजन करते-करते सर्वथा शुद्ध होकर भगवान को चाहियेगा उसी क्षण भगवान से मिलकर कृतार्थ हो जाइयेगा।*

*।। जय श्रीकृष्ण🙏 ।।*

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महागणाधिपति नम:🌺🙏

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Nataraja ❤️

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हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक, जानिए इसका कारण और रहस्य?
स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल और शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक का चिन्ह अवश्य बनाया जाता है। स्वास्तिक शब्द सु+अस+क शब्दों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा या शुभ, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है। 'स्वस्तिक' अर्थात् 'कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है। स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है।स्वस्तिक को ऋग्वेद की ऋचा में सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्तसार नामक ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है। स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोडऩे के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है।
साकार उपासकों की मान्यता है कि यदि स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना गया है, तो फलस्वरूप मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं।
स्वस्तिक में भगवान गणेश और नारद की शक्तियां निहित हैं। स्वस्तिक को भगवान विष्णु और सूर्य का आसन माना जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीज मंत्र होता है।

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विघ्नहर्ता गणेश संग माँ रिद्धि सिद्धि

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