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संभल साम्रज्य दिवस (कुरुकुल्ला भगवती प्राकट्योत्सव) की तैयारियां शुरू हो चकी हैं। आज भैरव-भैरवी गणों के अभ्यास का दूसरा दिन है। आइये कुछ लाइव तस्वीरें आपके सामने हम प्रस्तुत करते हैं। सभी का उत्साह देखते ही बनता है। बहुत ही जोश के साथ अभ्यास आगे बढ़ रहा है। कुछ और भैरव-भैरवी भी 2 दिनों में पहुंचने वाले हैं।
#SambhalaSamrajyaDivas #KurukullaPraktyotsva #ishaputra #Bhairavas #Utasva #LivePicsसंभल साम्रज्य दिवस (कुरुकुल्ला भगवती प्राकट्योत्सव) की तैयारियां शुरू हो चकी हैं। आज भैरव-भैरवी गणों के अभ्यास का दूसरा दिन है। आइये कुछ लाइव तस्वीरें आपके सामने हम प्रस्तुत करते हैं। सभी का उत्साह देखते ही बनता है। बहुत ही जोश के साथ अभ्यास आगे बढ़ रहा है। कुछ और भैरव-भैरवी भी 2 दिनों में पहुंचने वाले हैं। #SambhalaSamrajyaDivas #KurukullaPraktyotsva #ishaputra #Bhairavas #Utasva #LivePics -
'माँ ब्रह्मचारिणी देवी' नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप के रूप में 'नवरात्रि' के दौरान पूजी जाती हैं। "ब्रह्मचारिणी" नाम का अर्थ है वह जो तपस्या करती हैं और भक्ति एवं अनुशासन के मार्ग पर चलती हैं। इनका स्वरूप अत्यंत शांत और सरल है, हाथों में जपमाला और कमंडल धारण करती हैं, जो ज्ञान, सादगी और तपस्या का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माँ ब्रह्मचारिणी ने कठोर तपस्या की थी, जो धैर्य, शक्ति और दृढ़ संकल्प का अद्वितीय उदाहरण है। भक्त मानते हैं कि माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से जीवन में शांति, सद्गुण और कठिनाइयों से मुक्ति प्राप्त होती है, साथ ही यह साधकों को सत्य, आत्मसंयम और समर्पण के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
#brahmacharini #navratri #durgapuja #kurukulla #ishaputra #Mahamaya #durga'माँ ब्रह्मचारिणी देवी' नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप के रूप में 'नवरात्रि' के दौरान पूजी जाती हैं। "ब्रह्मचारिणी" नाम का अर्थ है वह जो तपस्या करती हैं और भक्ति एवं अनुशासन के मार्ग पर चलती हैं। इनका स्वरूप अत्यंत शांत और सरल है, हाथों में जपमाला और कमंडल धारण करती हैं, जो ज्ञान, सादगी और तपस्या का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माँ ब्रह्मचारिणी ने कठोर तपस्या की थी, जो धैर्य, शक्ति और दृढ़ संकल्प का अद्वितीय उदाहरण है। भक्त मानते हैं कि माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से जीवन में शांति, सद्गुण और कठिनाइयों से मुक्ति प्राप्त होती है, साथ ही यह साधकों को सत्य, आत्मसंयम और समर्पण के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। #brahmacharini #navratri #durgapuja #kurukulla #ishaputra #Mahamaya #durga -
NewsFirst पर भी महासिद्ध ईशपुत्र का प्रसारण लोगों ने बहुत पसंद किया। ये शायद कन्नड़ भाषा में प्रसारित हुआ था। लेकिन लोगों ने इस प्रसारण को भी सराहा। प्रस्तुत है NewsFirst पर प्रसारित न्यूज़। इस वीडियो का टाइटल था 'Mahayogi Satyendra Nath : ರಣಭಯಂಕರ ಹಿಮದಲ್ಲಿ ಮಹಾಪುರುಷನ ಘೋರ ತಪಸ್ಸು!'
#scrolllink #ishaputra #NewsFirst #iksvp #Sage #Monk #Himalaya #MahayogiSatyendraNath #Mahasiddha #DiddhadharmaNewsFirst पर भी महासिद्ध ईशपुत्र का प्रसारण लोगों ने बहुत पसंद किया। ये शायद कन्नड़ भाषा में प्रसारित हुआ था। लेकिन लोगों ने इस प्रसारण को भी सराहा। प्रस्तुत है NewsFirst पर प्रसारित न्यूज़। इस वीडियो का टाइटल था 'Mahayogi Satyendra Nath : ರಣಭಯಂಕರ ಹಿಮದಲ್ಲಿ ಮಹಾಪುರುಷನ ಘೋರ ತಪಸ್ಸು!' #scrolllink #ishaputra #NewsFirst #iksvp #Sage #Monk #Himalaya #MahayogiSatyendraNath #Mahasiddha #Diddhadharma -
नया खोजा गया एक्सोप्लैनेट TOI-4465 b ने खगोलविदों को हैरान कर दिया है! यह एक विशाल गैस जायंट है, जो बृहस्पति से 25% बड़ा, लगभग 6 गुना भारी और 3 गुना घना है। पृथ्वी से करीब 400 प्रकाश वर्ष दूर, यह अपने सूर्यनुमा तारे की परिक्रमा 102 दिनों में पूरा करता है।
इसकी अंडाकार कक्षा की वजह से तापमान 200°F से 400°F तक झूलता रहता है – ठंडा जुपिटर और गर्म जुपिटर के बीच एक पुल! TESS मिशन ने इसे ढूंढा, और वैज्ञानिक अब इसके वायुमंडल का अध्ययन करने को उत्सुक हैं। क्या यह ग्रहों के निर्माण की नई कहानी बताएगा?
#Exoplanet #Space #Astronomy #TOI4465b #NASAनया खोजा गया एक्सोप्लैनेट TOI-4465 b ने खगोलविदों को हैरान कर दिया है! यह एक विशाल गैस जायंट है, जो बृहस्पति से 25% बड़ा, लगभग 6 गुना भारी और 3 गुना घना है। पृथ्वी से करीब 400 प्रकाश वर्ष दूर, यह अपने सूर्यनुमा तारे की परिक्रमा 102 दिनों में पूरा करता है। इसकी अंडाकार कक्षा की वजह से तापमान 200°F से 400°F तक झूलता रहता है – ठंडा जुपिटर और गर्म जुपिटर के बीच एक पुल! TESS मिशन ने इसे ढूंढा, और वैज्ञानिक अब इसके वायुमंडल का अध्ययन करने को उत्सुक हैं। क्या यह ग्रहों के निर्माण की नई कहानी बताएगा? #Exoplanet #Space #Astronomy #TOI4465b #NASA -
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार द्वितीय नवरात्र की देवी का नाम ब्रह्मचारिणी देवी है, ये ब्रह्मचारिणी देवी भी गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती ही हैं, एक समय की बात है कि देव ऋषि नारद पर्वतराज हिमालय के महल पहुंचे, जहाँ पर्वत राज हिमालय की प्रार्थना पर उनहोंने बालिका पार्वती की जन्म पत्रिका शोधी और उनका भाग्य बताते हुये कहा कि इस कन्या का विवाह तो त्रिलोकीनाथ भगवान शिव से होगा, ये सुन कर देवी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने कि इच्छा से कठोर तप करना शुरू कर दिया, देवी ने भोजन पानी त्याग दिया श्वेत वस्त्र धारण कर लिए, हाथों में कमंडल और माला ले कर, कठोर तपस्वियों जैसा जीवन जीने लगी, जैसे जैसे तप बढ़ता गया, तीनो लोकों में हा हा कार मच गया, इन्द्र की पदवी भी स्वर्ग में डोलने लगी, तब सभी देवताओं को जिज्ञासा हुई कि पृथ्वी पर कौन ऐसा तपस्वी है और वे उसे ढूडने हिमालय जा पहुंचे, जहाँ उनहोंने देवी पार्वती जी के दर्शन ब्रह्मचारिणी देवी के रूप में किये, जिनके दिव्य तेज से समस्त लोक प्रकाशित हो रहे थे, महाशक्ति के ऐसे रूप के दर्शन कर सभी पवित्र हो गए, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं व मुक्ति प्राप्त करते है, सभी आध्यात्मिक शक्तियों कि जननी भी ब्रह्मचारिणी देवी ही हैं,
हिमालय पर कठोर तपस्या करने के कारण व तपस्या नियमों को पालने के कारने देवी का नाम पड़ा ब्रह्मचारिणी, महाशक्ति ब्रह्मचारिणी माँ पार्वती जी का तपस्वी स्वरुप का ही नाम है, कठोर सात्विक तपस्या से तीनों लोकों को प्रभावित करने के कारण भी देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं, देवी कृपा से ही मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय व तीसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै स्वाहा:
माता के मात्र का जाप करने के लिए तुलसी की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
777 298 307
621 543 991
931 053 777
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को saphed रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार लाल किनारे वाले सफेद रंग के वस्त्रों से किया जाता है, सफेद या लाल रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को सफेद चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा केवल सुबह ही की जाती है, शाम की पूजा की अपेक्षा देवी ब्रह्मचारिणी की साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त का ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी ब्रह्म मुहूर्त या सुबह के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन किया होना चाहिए साथ ही मंत्र जाप को फलीभूत होने के लिए रेत में कलश के निकट गेहूं के जवारे उगायें, कलश में गंगाजल और पंचामृत भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करना चाहिए यदि पहले दिन कलश स्थापित किया है तो केवल कलश पूजा करें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को श्वेत वस्त्र तुलसी माला तथा कुशा का आसन आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में कमंडल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, स्वाधिष्ठान चक्र में देवी का ध्यान करने से द्वितीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में दूध मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और कूएं का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए , आज सुहागिन स्त्रियों को भी अधिक श्रृंगारनहीं करना चाहिए, स्वयम भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे विद्या रोजगार की समस्या हो या याददाश्त कमजोर होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं
देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ श्रीं बुद्धि स्वरूपिन्ये महिषासुर सैन्यनाशिनयै नम:(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें
व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भितिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि
दारिद्रयदुःखभयहारिणी का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाआर्द्रचित्ता
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा दूसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी सात्विक शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज दूसरे नवरात्र को दो कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ मोतियों या रक्तचंदन की माला देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, दूसरे नवरात्र को अपने गुरु से "सत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्ण आत्मिक, दैहिक, मानसिक पवित्रता की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, दूसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले दूसरे नवरात्र का ब्रत ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्या पराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
#Navaratri #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVaniमार्कण्डेय पुराण के अनुसार द्वितीय नवरात्र की देवी का नाम ब्रह्मचारिणी देवी है, ये ब्रह्मचारिणी देवी भी गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती ही हैं, एक समय की बात है कि देव ऋषि नारद पर्वतराज हिमालय के महल पहुंचे, जहाँ पर्वत राज हिमालय की प्रार्थना पर उनहोंने बालिका पार्वती की जन्म पत्रिका शोधी और उनका भाग्य बताते हुये कहा कि इस कन्या का विवाह तो त्रिलोकीनाथ भगवान शिव से होगा, ये सुन कर देवी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने कि इच्छा से कठोर तप करना शुरू कर दिया, देवी ने भोजन पानी त्याग दिया श्वेत वस्त्र धारण कर लिए, हाथों में कमंडल और माला ले कर, कठोर तपस्वियों जैसा जीवन जीने लगी, जैसे जैसे तप बढ़ता गया, तीनो लोकों में हा हा कार मच गया, इन्द्र की पदवी भी स्वर्ग में डोलने लगी, तब सभी देवताओं को जिज्ञासा हुई कि पृथ्वी पर कौन ऐसा तपस्वी है और वे उसे ढूडने हिमालय जा पहुंचे, जहाँ उनहोंने देवी पार्वती जी के दर्शन ब्रह्मचारिणी देवी के रूप में किये, जिनके दिव्य तेज से समस्त लोक प्रकाशित हो रहे थे, महाशक्ति के ऐसे रूप के दर्शन कर सभी पवित्र हो गए, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं व मुक्ति प्राप्त करते है, सभी आध्यात्मिक शक्तियों कि जननी भी ब्रह्मचारिणी देवी ही हैं, हिमालय पर कठोर तपस्या करने के कारण व तपस्या नियमों को पालने के कारने देवी का नाम पड़ा ब्रह्मचारिणी, महाशक्ति ब्रह्मचारिणी माँ पार्वती जी का तपस्वी स्वरुप का ही नाम है, कठोर सात्विक तपस्या से तीनों लोकों को प्रभावित करने के कारण भी देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं, देवी कृपा से ही मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय व तीसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें, महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै स्वाहा: माता के मात्र का जाप करने के लिए तुलसी की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 777 298 307 621 543 991 931 053 777 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को saphed रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार लाल किनारे वाले सफेद रंग के वस्त्रों से किया जाता है, सफेद या लाल रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को सफेद चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा केवल सुबह ही की जाती है, शाम की पूजा की अपेक्षा देवी ब्रह्मचारिणी की साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त का ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी ब्रह्म मुहूर्त या सुबह के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन किया होना चाहिए साथ ही मंत्र जाप को फलीभूत होने के लिए रेत में कलश के निकट गेहूं के जवारे उगायें, कलश में गंगाजल और पंचामृत भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करना चाहिए यदि पहले दिन कलश स्थापित किया है तो केवल कलश पूजा करें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को श्वेत वस्त्र तुलसी माला तथा कुशा का आसन आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में कमंडल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, स्वाधिष्ठान चक्र में देवी का ध्यान करने से द्वितीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में दूध मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए, चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और कूएं का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए , आज सुहागिन स्त्रियों को भी अधिक श्रृंगारनहीं करना चाहिए, स्वयम भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे विद्या रोजगार की समस्या हो या याददाश्त कमजोर होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ श्रीं बुद्धि स्वरूपिन्ये महिषासुर सैन्यनाशिनयै नम:(न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भितिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि दारिद्रयदुःखभयहारिणी का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाआर्द्रचित्ता यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा दूसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी सात्विक शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज दूसरे नवरात्र को दो कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ मोतियों या रक्तचंदन की माला देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, दूसरे नवरात्र को अपने गुरु से "सत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्ण आत्मिक, दैहिक, मानसिक पवित्रता की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, दूसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले दूसरे नवरात्र का ब्रत ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्या पराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज #Navaratri #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani -
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार द्वितीय नवरात्र की देवी का नाम ब्रह्मचारिणी देवी है, ये ब्रह्मचारिणी देवी भी गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती ही हैं, एक समय की बात है कि देव ऋषि नारद पर्वतराज हिमालय के महल पहुंचे, जहाँ पर्वत राज हिमालय की प्रार्थना पर उनहोंने बालिका पार्वती की जन्म पत्रिका शोधी और उनका भाग्य बताते हुये कहा कि इस कन्या का विवाह तो त्रिलोकीनाथ भगवान शिव से होगा, ये सुन कर देवी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने कि इच्छा से कठोर तप करना शुरू कर दिया, देवी ने भोजन पानी त्याग दिया श्वेत वस्त्र धारण कर लिए, हाथों में कमंडल और माला ले कर, कठोर तपस्वियों जैसा जीवन जीने लगी, जैसे जैसे तप बढ़ता गया, तीनो लोकों में हा हा कार मच गया, इन्द्र की पदवी भी स्वर्ग में डोलने लगी, तब सभी देवताओं को जिज्ञासा हुई कि पृथ्वी पर कौन ऐसा तपस्वी है और वे उसे ढूडने हिमालय जा पहुंचे, जहाँ उनहोंने देवी पार्वती जी के दर्शन ब्रह्मचारिणी देवी के रूप में किये, जिनके दिव्य तेज से समस्त लोक प्रकाशित हो रहे थे, महाशक्ति के ऐसे रूप के दर्शन कर सभी पवित्र हो गए, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं व मुक्ति प्राप्त करते है, सभी आध्यात्मिक शक्तियों कि जननी भी ब्रह्मचारिणी देवी ही हैं,
हिमालय पर कठोर तपस्या करने के कारण व तपस्या नियमों को पालने के कारने देवी का नाम पड़ा ब्रह्मचारिणी, महाशक्ति ब्रह्मचारिणी माँ पार्वती जी का तपस्वी स्वरुप का ही नाम है, कठोर सात्विक तपस्या से तीनों लोकों को प्रभावित करने के कारण भी देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं, देवी कृपा से ही मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय व तीसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै स्वाहा:
माता के मात्र का जाप करने के लिए तुलसी की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
777 298 307
621 543 991
931 053 777
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को saphed रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार लाल किनारे वाले सफेद रंग के वस्त्रों से किया जाता है, सफेद या लाल रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को सफेद चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा केवल सुबह ही की जाती है, शाम की पूजा की अपेक्षा देवी ब्रह्मचारिणी की साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त का ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी ब्रह्म मुहूर्त या सुबह के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन किया होना चाहिए साथ ही मंत्र जाप को फलीभूत होने के लिए रेत में कलश के निकट गेहूं के जवारे उगायें, कलश में गंगाजल और पंचामृत भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करना चाहिए यदि पहले दिन कलश स्थापित किया है तो केवल कलश पूजा करें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को श्वेत वस्त्र तुलसी माला तथा कुशा का आसन आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में कमंडल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, स्वाधिष्ठान चक्र में देवी का ध्यान करने से द्वितीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में दूध मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और कूएं का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए , आज सुहागिन स्त्रियों को भी अधिक श्रृंगारनहीं करना चाहिए, स्वयम भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे विद्या रोजगार की समस्या हो या याददाश्त कमजोर होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं
देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ श्रीं बुद्धि स्वरूपिन्ये महिषासुर सैन्यनाशिनयै नम:(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें
व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भितिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि
दारिद्रयदुःखभयहारिणी का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाआर्द्रचित्ता
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा दूसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी सात्विक शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज दूसरे नवरात्र को दो कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ मोतियों या रक्तचंदन की माला देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, दूसरे नवरात्र को अपने गुरु से "सत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्ण आत्मिक, दैहिक, मानसिक पवित्रता की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, दूसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले दूसरे नवरात्र का ब्रत ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्या पराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
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Shree Kurukulla Sukulla Prabhat Stuti by Ishaputra
।। श्री कुरुकुल्ला सुकुल्ला प्रभात स्तुति।।
शुभप्रभातं सुप्रभातं कुरुकुल्ला देव्यै नम:
नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम: ।
(Auspicious morning) x 2, salutation to Shree Kurukulla devi
Salutation again and again to Sukulla Devi)
शान्तिं प्रयच्छ मे! ज्ञानं प्रयच्छ मे!
ऋद्धिं प्रयच्छ मे! सिद्धिं प्रयच्छ मे!
(Devi, bestow me Peace, bestow me wisdom,
Bestow me prosperity, bestow me perfection)
धनं-धान्यं, भोगं-मोक्षं, यशं देहि मे!
नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम: ।
(Bestow me wealth and abundance, enjoyment and salvation, bestow me glory,
Salutation again and again to Sukulla Devi)
शुभप्रभातम सुप्रभातम कुरुकुल्लादेव्यै नम:
नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम: ।
(Auspicious morning) x 2, salutation to Shree Kurukulla devi
Salutation again and again to Sukulla Devi)
क्लीं क्लीं ह्रीं ह्रीं ऐं हुं रक्त तारायै नम:
तोतले तुरे तारे तरले कुलनायिके,
(kleem kleem hreem hreem aim hum rakta tarayai namah)
Totle ture tare tarale, the head of kulas)
कल्याणं कुरु देवी सौंदर्य रूपवर्धिनी
नमस्तुभ्यं ईप्सितप्रदे सर्वकामप्रदायिनी,
(Devi bless us with welfare, maximising our beauty and complexion,
Salutation I offer to you, the fulfiller of every wishes and desires)
त्रैलोक्यविजयिनी देवी सर्वमुग्धे नमो नम:,
वर अभयदात्री देवी सर्वदा सुमंगलकारिणी,
(Salutation to Devi, the enchanter of the three worlds,
Giver of boons and fearlessness, Devi always bestows auspicious works)
नमो नमो कुरुकुल्ले सर्वदुःख विनाशिनी
अनंता अक्षरा नित्या महाकौतुककारिणी,
(I salute Kurukulle, the destroyer of all forms of miseries,
She the Infinite, immortal, Eternal, the cause of all magic and miracles)
अकालमृत्यु प्रशमनी सर्व शत्रु निवारिणी
त्राहि माम कुरुकुल्ले! सुकुल्ले नमोस्तुते!
(Destroyer of untimely death, pacifier of all enemies,
All hail Kurukulle, Sukulle, I offer salutation to you)
सामर्थ्य शक्ति प्रदायिनी पुष्प धनुधारिणी
श्री कामकला देवी कालकालेश्वरी नमो नम: ।
(Giver of abilities, she holds bow made of flowers,
Shree the master of desire, I offer salutation to kalakaleshwari)
नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम:
शुभप्रभातम सुप्रभातम कुरुकुल्लादेव्यै नम: ।
(Auspicious morning) x 2, salutation to Shree Kurukulla devi
Salutation again and again to Sukulla Devi)
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Shree Kurukulla Sukulla Prabhat Stuti by Ishaputra ।। श्री कुरुकुल्ला सुकुल्ला प्रभात स्तुति।। शुभप्रभातं सुप्रभातं कुरुकुल्ला देव्यै नम: नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम: । (Auspicious morning) x 2, salutation to Shree Kurukulla devi Salutation again and again to Sukulla Devi) शान्तिं प्रयच्छ मे! ज्ञानं प्रयच्छ मे! ऋद्धिं प्रयच्छ मे! सिद्धिं प्रयच्छ मे! (Devi, bestow me Peace, bestow me wisdom, Bestow me prosperity, bestow me perfection) धनं-धान्यं, भोगं-मोक्षं, यशं देहि मे! नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम: । (Bestow me wealth and abundance, enjoyment and salvation, bestow me glory, Salutation again and again to Sukulla Devi) शुभप्रभातम सुप्रभातम कुरुकुल्लादेव्यै नम: नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम: । (Auspicious morning) x 2, salutation to Shree Kurukulla devi Salutation again and again to Sukulla Devi) क्लीं क्लीं ह्रीं ह्रीं ऐं हुं रक्त तारायै नम: तोतले तुरे तारे तरले कुलनायिके, (kleem kleem hreem hreem aim hum rakta tarayai namah) Totle ture tare tarale, the head of kulas) कल्याणं कुरु देवी सौंदर्य रूपवर्धिनी नमस्तुभ्यं ईप्सितप्रदे सर्वकामप्रदायिनी, (Devi bless us with welfare, maximising our beauty and complexion, Salutation I offer to you, the fulfiller of every wishes and desires) त्रैलोक्यविजयिनी देवी सर्वमुग्धे नमो नम:, वर अभयदात्री देवी सर्वदा सुमंगलकारिणी, (Salutation to Devi, the enchanter of the three worlds, Giver of boons and fearlessness, Devi always bestows auspicious works) नमो नमो कुरुकुल्ले सर्वदुःख विनाशिनी अनंता अक्षरा नित्या महाकौतुककारिणी, (I salute Kurukulle, the destroyer of all forms of miseries, She the Infinite, immortal, Eternal, the cause of all magic and miracles) अकालमृत्यु प्रशमनी सर्व शत्रु निवारिणी त्राहि माम कुरुकुल्ले! सुकुल्ले नमोस्तुते! (Destroyer of untimely death, pacifier of all enemies, All hail Kurukulle, Sukulle, I offer salutation to you) सामर्थ्य शक्ति प्रदायिनी पुष्प धनुधारिणी श्री कामकला देवी कालकालेश्वरी नमो नम: । (Giver of abilities, she holds bow made of flowers, Shree the master of desire, I offer salutation to kalakaleshwari) नमस्कारं नमस्कारं सुकुल्ला दैव्यै नम: शुभप्रभातम सुप्रभातम कुरुकुल्लादेव्यै नम: । (Auspicious morning) x 2, salutation to Shree Kurukulla devi Salutation again and again to Sukulla Devi) #Ishaputra #KaulantakPeeth #Kurukulla #Sukulla #Vikulla #Stuti #Stotra #Mantra #KaulantakVani