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  • संभल साम्रज्य दिवस (कुरुकुल्ला भगवती प्राकट्योत्सव) में होने वाले भैरव नृत्य की भी आज से तैयारियां शुरू हो चकी हैं। आज भैरव-भैरवी गणों के अभ्यास का तीसरा दिन है। भैरव नृत्य अभ्यास की कुछ तस्वीरें आपके सामने हम प्रस्तुत करते हैं।

    #SambhalaSamrajyaDivas #KurukullaPraktyotsva #ishaputra #Bhairavas #Utasva #LivePics
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  • Katyayani Devi is the sixth form of Goddess Durga, worshipped on the sixth day of Navratri. She is believed to have been born as the daughter of sage Katyayana, hence the name Katyayani. Fierce and radiant, she is known as the slayer of the demon Mahishasura, symbolizing the victory of righteousness over evil. Seated on a lion, she has four arms, holding a sword and lotus in two, while the other two hands are in blessing and protective gestures. Katyayani Devi represents courage, strength, and justice, and is often worshipped by young maidens seeking a virtuous life partner. Devotees believe that her blessings remove obstacles, grant inner power, and lead to a life of virtue and fulfillment.’ -Life Unfold

    #katyayini #durga #navratri #kurukulla #shakti #scrolllink #Durgapuja
    Katyayani Devi is the sixth form of Goddess Durga, worshipped on the sixth day of Navratri. She is believed to have been born as the daughter of sage Katyayana, hence the name Katyayani. Fierce and radiant, she is known as the slayer of the demon Mahishasura, symbolizing the victory of righteousness over evil. Seated on a lion, she has four arms, holding a sword and lotus in two, while the other two hands are in blessing and protective gestures. Katyayani Devi represents courage, strength, and justice, and is often worshipped by young maidens seeking a virtuous life partner. Devotees believe that her blessings remove obstacles, grant inner power, and lead to a life of virtue and fulfillment.’ -Life Unfold #katyayini #durga #navratri #kurukulla #shakti #scrolllink #Durgapuja
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  • Kaalratri Devi is the seventh and most fierce form of Goddess Durga, worshipped on the seventh day of Navratri. She is known as the destroyer of ignorance, darkness, and all evil forces. With a dark complexion, disheveled hair, and a blazing aura, she rides a donkey and appears fearsome, yet she radiates immense compassion toward her devotees. She has four hands—two bestowing blessings and protection, and two carrying a sword and a deadly iron hook. Despite her terrifying form, she is lovingly called “Shubankari,” as she grants auspiciousness, fearlessness, and freedom from obstacles. Worshipping Kaalratri Devi is believed to remove negative energies, protect from harm, and lead the devotee toward spiritual awakening and ultimate liberation.’ -Life Unfold.

    #Navduraga #kalratri #durgapuja #kurukulla #scrolllink #shaktiAradhana
    Kaalratri Devi is the seventh and most fierce form of Goddess Durga, worshipped on the seventh day of Navratri. She is known as the destroyer of ignorance, darkness, and all evil forces. With a dark complexion, disheveled hair, and a blazing aura, she rides a donkey and appears fearsome, yet she radiates immense compassion toward her devotees. She has four hands—two bestowing blessings and protection, and two carrying a sword and a deadly iron hook. Despite her terrifying form, she is lovingly called “Shubankari,” as she grants auspiciousness, fearlessness, and freedom from obstacles. Worshipping Kaalratri Devi is believed to remove negative energies, protect from harm, and lead the devotee toward spiritual awakening and ultimate liberation.’ -Life Unfold. #Navduraga #kalratri #durgapuja #kurukulla #scrolllink #shaktiAradhana
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  • Maya Search engine is here now. pl check: https://mayaworldweb.com/

    #maya #mayaSearch #scrolllink #MayaSearchIngine
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  • सब मोह माया है #Mayamudra
    सब मोह माया है 😊 #Mayamudra
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  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार सप्तम नवरात्र की देवी का नाम कालरात्रि है, शिव ने सृष्टि को बनाया शिव ही इसे नष्ट करेंगे, शिव की इस महालीला में जो सबसे गुप्त पहलू है वो है कालरात्रि, प्राचीन कथा के अनुसार एक बार शिव नें ये जानना चाहा कि वे कितने शक्तिशाली हैं, सबसे पहले उनहोंने सात्विक शक्ति को पुकारा तो योगमाया हाथ जोड़ सम्मुख आ गयी और उनहोंने शिव को सारी शक्तियों के बारे में बताया, फिर शिव ने राजसी शक्ति को पुकारा तो माँ पार्वती देवी दुर्गा व दस महाविद्याओं के साथ उपस्थित हो गयीं, देवी ने शिव को सबकुछ बताया जो जानना चाहते थे, तब शिव ने तामसी और सृष्टि कि आखिरी शक्ति को बुलाया तो कालरात्रि प्रकट हुई, काल रात्रि से जब शिव ने प्रश्न किया तो कालरात्रि ने अपनी शक्ति से दिखाया कि वो ही सृष्टि कि सबसे बड़ी शक्ति हैं गुप्त रूप से वही योगमाया, दुर्गा पार्वती है, एक क्षण में देवी ने कई सृष्टियों को निगल लिया, कई नीच राक्षस पल बर में मिट गए, देवी के क्रोध से नक्षत्र मंडल विचलित हो गया, सूर्य का तेज मलीन हो गया, तीनो लोक भस्म होने लगे, तब शिव नें देवी को शांत होने के लिए कहा लेकिन देवी शांत नहीं हुई, उनके शरीर से 64 कृत्याएं पैदा हुई, स्वर्ग सहित, विष्णु लोक, ब्रम्ह्म लोक, शिवलोक व पृथ्वी मंडल कांपने लगे, 64 कृत्याओं ने महाविनाश शुरू कर दिया, सर्वत्र आकाश से बिजलियाँ गिरने लगी तब समस्त ऋषि मुनि ब्रह्मा-विष्णु देवगण कैलाश जा पहुंचे शिव के नेत्रित्व में सबने देवी की स्तुति करते हुये शांत होने की प्रार्थना, तब देवी ने कृत्याओं को भीतर ही समां लिया, सभी को उपस्थित देख देवी ने अभय प्रदान किया, सबसे शक्तिशालिनी देवी ही कालरात्रि हैं जो महाकाली का ही स्वरुप हैं, जो भी साधक भक्त देवी की पूजा करता है पूरी सृष्टि में उसे अभय होता है, देवी भक्त पर कोई अस्त्र शास्त्र मंत्र तंत्र कृत्या औषधि विष कार्य नहीं करता, देवी की पूजा से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं

    शिव ने सबसे बड़ी शक्ति को को जानने के लिए जिस देवी को उत्पन्न किया वही कालरात्रि हैं, महाशक्ति कालरात्रि स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि का आदि थी अब अंत है, उतपन्न करने तथा महाविनाश की शक्ति होने से प्रलय काल की भाँती देवी को कालरात्रि कहा गया है, देवी के उपासक के जीवन में कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए सातवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का पाठ करना चाहिए
    पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,

    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
    (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)

    देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है,

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै नम:

    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें,

    जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै स्वाहा:

    माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा हकीक की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ

    यन्त्र-
    090 010 070
    080 030 020
    040 050 060

    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को काले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कालरात्रि देवी का श्रृंगार काले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा रात्री को ही की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी शाम के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक व चौमुखा दिया जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल

    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को नारियल व उर्द की ड़ाल काली मिर्च आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठी रोटी का भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र में देवी का ध्यान करने से सातवां चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में अदरक का रस , लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,

    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै

    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, सातवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे शत्रुओं कि समस्या हो या बार बार धन हानि होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं , देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ तृम तृषास्वरूपिन्ये चंडमुण्डबधकारिनयै नम:(न आधा लगेगा)
    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें
    व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
    ॐ सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोकस्याखिलेश्वरी
    एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम

    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा सातवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी कालिका शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज सातवें नवरात्र को सात कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ भोजन पात्र जैसे थाली गिलास आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, सातवें नवरात्र को अपने गुरु से "सह्स्त्रहार भेदन दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूरनता को अनुभव कर सकें व वैखरी वाणी की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, सातवें नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा व काली मिर्च की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले सातवें नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाबन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर व फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल पीले व चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल पीले व चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri #Parv
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार सप्तम नवरात्र की देवी का नाम कालरात्रि है, शिव ने सृष्टि को बनाया शिव ही इसे नष्ट करेंगे, शिव की इस महालीला में जो सबसे गुप्त पहलू है वो है कालरात्रि, प्राचीन कथा के अनुसार एक बार शिव नें ये जानना चाहा कि वे कितने शक्तिशाली हैं, सबसे पहले उनहोंने सात्विक शक्ति को पुकारा तो योगमाया हाथ जोड़ सम्मुख आ गयी और उनहोंने शिव को सारी शक्तियों के बारे में बताया, फिर शिव ने राजसी शक्ति को पुकारा तो माँ पार्वती देवी दुर्गा व दस महाविद्याओं के साथ उपस्थित हो गयीं, देवी ने शिव को सबकुछ बताया जो जानना चाहते थे, तब शिव ने तामसी और सृष्टि कि आखिरी शक्ति को बुलाया तो कालरात्रि प्रकट हुई, काल रात्रि से जब शिव ने प्रश्न किया तो कालरात्रि ने अपनी शक्ति से दिखाया कि वो ही सृष्टि कि सबसे बड़ी शक्ति हैं गुप्त रूप से वही योगमाया, दुर्गा पार्वती है, एक क्षण में देवी ने कई सृष्टियों को निगल लिया, कई नीच राक्षस पल बर में मिट गए, देवी के क्रोध से नक्षत्र मंडल विचलित हो गया, सूर्य का तेज मलीन हो गया, तीनो लोक भस्म होने लगे, तब शिव नें देवी को शांत होने के लिए कहा लेकिन देवी शांत नहीं हुई, उनके शरीर से 64 कृत्याएं पैदा हुई, स्वर्ग सहित, विष्णु लोक, ब्रम्ह्म लोक, शिवलोक व पृथ्वी मंडल कांपने लगे, 64 कृत्याओं ने महाविनाश शुरू कर दिया, सर्वत्र आकाश से बिजलियाँ गिरने लगी तब समस्त ऋषि मुनि ब्रह्मा-विष्णु देवगण कैलाश जा पहुंचे शिव के नेत्रित्व में सबने देवी की स्तुति करते हुये शांत होने की प्रार्थना, तब देवी ने कृत्याओं को भीतर ही समां लिया, सभी को उपस्थित देख देवी ने अभय प्रदान किया, सबसे शक्तिशालिनी देवी ही कालरात्रि हैं जो महाकाली का ही स्वरुप हैं, जो भी साधक भक्त देवी की पूजा करता है पूरी सृष्टि में उसे अभय होता है, देवी भक्त पर कोई अस्त्र शास्त्र मंत्र तंत्र कृत्या औषधि विष कार्य नहीं करता, देवी की पूजा से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं शिव ने सबसे बड़ी शक्ति को को जानने के लिए जिस देवी को उत्पन्न किया वही कालरात्रि हैं, महाशक्ति कालरात्रि स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि का आदि थी अब अंत है, उतपन्न करने तथा महाविनाश की शक्ति होने से प्रलय काल की भाँती देवी को कालरात्रि कहा गया है, देवी के उपासक के जीवन में कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए सातवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का पाठ करना चाहिए पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें, महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है, मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें, जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा हकीक की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 090 010 070 080 030 020 040 050 060 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को काले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कालरात्रि देवी का श्रृंगार काले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा रात्री को ही की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी शाम के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक व चौमुखा दिया जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को नारियल व उर्द की ड़ाल काली मिर्च आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठी रोटी का भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र में देवी का ध्यान करने से सातवां चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में अदरक का रस , लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए, चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, सातवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे शत्रुओं कि समस्या हो या बार बार धन हानि होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं , देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ तृम तृषास्वरूपिन्ये चंडमुण्डबधकारिनयै नम:(न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोकस्याखिलेश्वरी एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा सातवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी कालिका शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज सातवें नवरात्र को सात कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ भोजन पात्र जैसे थाली गिलास आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, सातवें नवरात्र को अपने गुरु से "सह्स्त्रहार भेदन दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूरनता को अनुभव कर सकें व वैखरी वाणी की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, सातवें नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा व काली मिर्च की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले सातवें नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाबन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर व फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल पीले व चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल पीले व चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri #Parv
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