"ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" के दिव्य "वचन"

३) ये मत भूलो की जिस तरह संसार में तुम्हें संबंधी दिए गए हैं और तुम उनके और अपने सम्बन्ध को सत्य मानने लगते हो, जो केवल इसका अभ्यास करने के लिए हैं की तुम ईश्वर से अपना सम्बन्ध बना सको।
"ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" के दिव्य "वचन" ३) ये मत भूलो की जिस तरह संसार में तुम्हें संबंधी दिए गए हैं और तुम उनके और अपने सम्बन्ध को सत्य मानने लगते हो, जो केवल इसका अभ्यास करने के लिए हैं की तुम ईश्वर से अपना सम्बन्ध बना सको।
Like
Love
4
0 Σχόλια 0 Μοιράστηκε 174 Views 0 Προεπισκόπηση