यहां पर अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है।
यहां पर अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है।
नीतिशतकम्
------
जातिर्यातु रसातलं गुणगणैस्तत्राप्यधो गम्यतां
शीलं शैलतटात्पतत्वभिजनः सन्दह्यतां वह्निना ।
शौर्ये वैरिणि वज्रमाशु निपतत्वर्थोऽस्तु नः केवलं
येनैकेन विना गुणास्तृणलवप्रायाः समस्ता इमे ॥ ३९॥

यदि जाति रसताल में चली जाए, सारे गुण उससे भी नीचे चले जाएं, सुशीलता पर्वत से गिर कर नष्ट हो जाये, स्वजन अग्नि में जल कर भस्म हो जाएं और शत्रुओं से शूरता पर वज्रपात हो जाये - तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन हमारा धन नष्ट न हो, हमें तो केवल धन चाहिए, क्योंकि धन के बिना मनुष्य के सारे गुण तिनके की तरह निकम्मे हैं।
Like
Love
2
0 Commenti 0 condivisioni 120 Views 0 Anteprima