हिमालय के सिद्ध योगियों के प्रताप को भला कौन नहीं जानता? इन सिद्धों के अनेकों रहस्यों के कारण ही मानव सभ्यता सदा इनकी ओर आकर्षित होती रही है। इन्हीं सिद्धों की मठ रहित परम्परा को देखना हर योगी, यति सन्यासी व अध्यात्मवादी की आखिरी इच्छा होती है। धर्म योद्धाओं के पर्यायवाची नाम से विभूषित इन्हीं सिद्धों की परम पीठ 'रहस्य पीठ' 'यानि की कौलान्तक पीठ' में आयोजन हुआ था 'वैश्विक भैरव साधना शिविर' का । ये साधना शिविर आम जन-मानस हेतु नहीं था। केवल सिद्धों की परम्पराओं और आध्यात्मिक विश्वासों पर आँख मूँद कर श्रद्धा रखने वालों के लिए ही था। हालाँकि ये 'साधना शिविर' अत्यंत गोपनीय था, किन्तु हम इसे छुपाना नहीं चाहते। क्योंकि इतिहास के पन्नों पर कोई ये देखेगा की 'शिव और शक्ति' के पावन उत्सव से जगत को वंचित रखा गया। तो ये कलंक की भांति चुभता रहेगा। इसलिए हम साफ शब्दों में सर्वप्रथम ये बताना चाहेंगे की ये साधना शिविर और उसके समस्त तत्व आधुनिक विज्ञान और प्रमाण से इतर हैं।
महाहिमालय पर महर्षि लोमेश जी नें पूर्व मन्वंतर में सिद्धों को एक रहस्य समझाया। कहा काल कि ''काल की गति को मृत्यु लोक में चार भागों में बांटा गया है। पहले से क्रमश: सतयुग, द्वापर, त्रेता फिर कलियुग। यही क्रम सृष्टि में सर्वत्र स्थित है। किन्तु वैवस्वत नामक मन्वंतर में एक चतुर्युगी में देवताओं द्वारा एक अद्भुत कृत्य संपन्न होगा। जिसे आवर्तन काल कहा जायेगा। अपने हितों व पृथ्वी की रक्षा हेतु काल की गति से देवता क्रीडा करेंगे। जिस कारण निरंतर प्रवाहमान समय चक्र में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलेगा। समय अपने क्रम को छोड़ कर आगे बढेगा। सतयुग के बाद सीधे त्रेता आएगा और त्रेता के बाद उलट कर द्वापर आएगा। जबकि कलियुग और सतयुग अपने ही समय पर स्थित रहेंगे। ये महारह्स्य बड़े से बड़े बुद्धिमान पुरुष की क्षमताओं से बाहर होगा। किन्तु सृष्टि का नियम है कि साक्षात देवता भी यदि चाहें कि उनके कार्यों से कोई प्रतिक्रिया न हो ये संभव नहीं है। विधि के विधान के विपरीत कार्य करने का एक दृष्य परिणाम रह जाएगा। अपने हित साधन में जुटे होने के कारण वो एक अति महीन चूक कर देंगे। क्योंकि वो चूक उनकी दृष्टि में नहीं आने वाली। सतयुग जिस क्षण समाप्त होगा ठीक उसी क्षण उनको द्वापर के स्थान पर त्रेता शुरू करना होगा। जिसके लिए अपरिमित उर्जा और तेजस्विता की आवश्यकता होगी। जब वो ये परिवर्तन करेंगे। तब देवताओं से समय परिवर्तन की शीघ्रता में एक निमिष भर समय सतुयग का शेष रह जाएगा। जो कलियुग के घोर काल में भी जीवनी शक्ति को बनाये रखेगा। कलियुग में शोषण, अन्याय, अत्याचार, स्वार्थ, अहंकार, अश्लीलता, माता-पिता और गुरु द्रोह जैसे जघन्य कर्मों के होने पर भी मनुष्य सभ्यता आगे गति करेगी। क्योंकि ये सतयुग का निमिष मात्र काल उनको तेजस्विता देता रहेगा। बार-बार प्रलय आदि संकटों से उस काल में भी धरती की रक्षा होगी। अन्याय के और असत्य के विरुद्ध आवाजें उठती रहेंगी। इश्वर के पुत्र धरती को धर्म और पुण्यों से रहित नहीं होने देंगे। सत्य के साधक अपने को बलि बेदी पर रख कर घोर अपमान पीते हुए हुए, हर अत्याचार से लड़ेंगे। अनेकों वीरगति को प्राप्त होंगे। उस काल में मलेच्छ सभ्यता और मलेछ आचरण सर्वत्र होगा। मलेच्छ ''धर्म'' और उसके कर्मों को नकारेंगे। मलेच्छ संगठन बना कर हर शक्ति के माध्यम से सत्य धर्म पर आक्रमण करेंगे। किन्तु कभी भी विजयी नहीं होंगे। वो दिन-रात सभी छल-बलों आदि का सहारा ले कर, मनुष्य सभ्यता को इश्वर से विमुख और ईश्वरीय साधकों से विमुख करने का प्रयास करेंगे। सत्व पर तमस की विजय दिखाई देने लगेगी। किन्तु हो नहीं पाएगी। जिसका कारण है देवताओं द्वारा निमिष भर काल को संतुलित न कर पाना। कलिकाल में यही निमिष प्रबल हो कर ब्रह्माण्ड में फैलेगा। तब सिद्ध इसका स्पर्श पा कर सत्य को उपलब्ध होंगे। तब असत्य पर फिर सत्य की जय होने लगेगी। असत्य की वाणी का प्रभाव निश्तेज होने लगेगा। तब भैरव विश्व की रक्षा और सतयुग के समर्थन के लिए सिद्धों को वीरता दे कर पृथ्वी पर सर्वत्र स्थापित करेंगे। भैरव शिव पुत्रों की स्थापना से कलिकाल काल का नियंत्रण अपने हाथों में लेंगे। सप्त ऋषियों द्वारा इस काल और घटना की भविष्यवाणी की जाएगी।
(मौखिक सम्प्रदयानुगत कथा)


कौलान्तक पीठ भारत की गोपनीय व रहस्य पीठ के रूप में प्रख्यात पीठ है। जिसके परम तेजस्वी साधक रूप बदल कर मानव मात्र के कल्याण में सदैव जुटे रहते हैं व रहस्य साधनाओं व तपोबल द्वारा गुप्त रूप से सृष्टि की रक्षा और मंगल की कामना करते हैं। इसी सिद्ध पीठ के पास सप्त ऋषियों का वो पंचांग है। जिसमें काल गणना व 'आंशिक सतयुग' की बात कही गयी है। किन्तु पीठ अपने प्राचीन मतों व परम्पराओं के कारण इसे सर्व साधारण के लिए प्रकट नहीं करती। इसी काल का निमिष शुरू हो चुका है। जिसका देवताओं के लिए तो कोई महत्त्व नहीं था। किन्तु देवताओं का ये काल मनुष्यों के लिए कम से कम दो सौ वर्ष व अधिक से अधिक छ: सौ वर्ष हो सकता है।
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हिमालय के सिद्ध योगियों के प्रताप को भला कौन नहीं जानता? इन सिद्धों के अनेकों रहस्यों के कारण ही मानव सभ्यता सदा इनकी ओर आकर्षित होती रही है। इन्हीं सिद्धों की मठ रहित परम्परा को देखना हर योगी, यति सन्यासी व अध्यात्मवादी की आखिरी इच्छा होती है। धर्म योद्धाओं के पर्यायवाची नाम से विभूषित इन्हीं सिद्धों की परम पीठ 'रहस्य पीठ' 'यानि की कौलान्तक पीठ' में आयोजन हुआ था 'वैश्विक भैरव साधना शिविर' का । ये साधना शिविर आम जन-मानस हेतु नहीं था। केवल सिद्धों की परम्पराओं और आध्यात्मिक विश्वासों पर आँख मूँद कर श्रद्धा रखने वालों के लिए ही था। हालाँकि ये 'साधना शिविर' अत्यंत गोपनीय था, किन्तु हम इसे छुपाना नहीं चाहते। क्योंकि इतिहास के पन्नों पर कोई ये देखेगा की 'शिव और शक्ति' के पावन उत्सव से जगत को वंचित रखा गया। तो ये कलंक की भांति चुभता रहेगा। इसलिए हम साफ शब्दों में सर्वप्रथम ये बताना चाहेंगे की ये साधना शिविर और उसके समस्त तत्व आधुनिक विज्ञान और प्रमाण से इतर हैं। महाहिमालय पर महर्षि लोमेश जी नें पूर्व मन्वंतर में सिद्धों को एक रहस्य समझाया। कहा काल कि ''काल की गति को मृत्यु लोक में चार भागों में बांटा गया है। पहले से क्रमश: सतयुग, द्वापर, त्रेता फिर कलियुग। यही क्रम सृष्टि में सर्वत्र स्थित है। किन्तु वैवस्वत नामक मन्वंतर में एक चतुर्युगी में देवताओं द्वारा एक अद्भुत कृत्य संपन्न होगा। जिसे आवर्तन काल कहा जायेगा। अपने हितों व पृथ्वी की रक्षा हेतु काल की गति से देवता क्रीडा करेंगे। जिस कारण निरंतर प्रवाहमान समय चक्र में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलेगा। समय अपने क्रम को छोड़ कर आगे बढेगा। सतयुग के बाद सीधे त्रेता आएगा और त्रेता के बाद उलट कर द्वापर आएगा। जबकि कलियुग और सतयुग अपने ही समय पर स्थित रहेंगे। ये महारह्स्य बड़े से बड़े बुद्धिमान पुरुष की क्षमताओं से बाहर होगा। किन्तु सृष्टि का नियम है कि साक्षात देवता भी यदि चाहें कि उनके कार्यों से कोई प्रतिक्रिया न हो ये संभव नहीं है। विधि के विधान के विपरीत कार्य करने का एक दृष्य परिणाम रह जाएगा। अपने हित साधन में जुटे होने के कारण वो एक अति महीन चूक कर देंगे। क्योंकि वो चूक उनकी दृष्टि में नहीं आने वाली। सतयुग जिस क्षण समाप्त होगा ठीक उसी क्षण उनको द्वापर के स्थान पर त्रेता शुरू करना होगा। जिसके लिए अपरिमित उर्जा और तेजस्विता की आवश्यकता होगी। जब वो ये परिवर्तन करेंगे। तब देवताओं से समय परिवर्तन की शीघ्रता में एक निमिष भर समय सतुयग का शेष रह जाएगा। जो कलियुग के घोर काल में भी जीवनी शक्ति को बनाये रखेगा। कलियुग में शोषण, अन्याय, अत्याचार, स्वार्थ, अहंकार, अश्लीलता, माता-पिता और गुरु द्रोह जैसे जघन्य कर्मों के होने पर भी मनुष्य सभ्यता आगे गति करेगी। क्योंकि ये सतयुग का निमिष मात्र काल उनको तेजस्विता देता रहेगा। बार-बार प्रलय आदि संकटों से उस काल में भी धरती की रक्षा होगी। अन्याय के और असत्य के विरुद्ध आवाजें उठती रहेंगी। इश्वर के पुत्र धरती को धर्म और पुण्यों से रहित नहीं होने देंगे। सत्य के साधक अपने को बलि बेदी पर रख कर घोर अपमान पीते हुए हुए, हर अत्याचार से लड़ेंगे। अनेकों वीरगति को प्राप्त होंगे। उस काल में मलेच्छ सभ्यता और मलेछ आचरण सर्वत्र होगा। मलेच्छ ''धर्म'' और उसके कर्मों को नकारेंगे। मलेच्छ संगठन बना कर हर शक्ति के माध्यम से सत्य धर्म पर आक्रमण करेंगे। किन्तु कभी भी विजयी नहीं होंगे। वो दिन-रात सभी छल-बलों आदि का सहारा ले कर, मनुष्य सभ्यता को इश्वर से विमुख और ईश्वरीय साधकों से विमुख करने का प्रयास करेंगे। सत्व पर तमस की विजय दिखाई देने लगेगी। किन्तु हो नहीं पाएगी। जिसका कारण है देवताओं द्वारा निमिष भर काल को संतुलित न कर पाना। कलिकाल में यही निमिष प्रबल हो कर ब्रह्माण्ड में फैलेगा। तब सिद्ध इसका स्पर्श पा कर सत्य को उपलब्ध होंगे। तब असत्य पर फिर सत्य की जय होने लगेगी। असत्य की वाणी का प्रभाव निश्तेज होने लगेगा। तब भैरव विश्व की रक्षा और सतयुग के समर्थन के लिए सिद्धों को वीरता दे कर पृथ्वी पर सर्वत्र स्थापित करेंगे। भैरव शिव पुत्रों की स्थापना से कलिकाल काल का नियंत्रण अपने हाथों में लेंगे। सप्त ऋषियों द्वारा इस काल और घटना की भविष्यवाणी की जाएगी। (मौखिक सम्प्रदयानुगत कथा) कौलान्तक पीठ भारत की गोपनीय व रहस्य पीठ के रूप में प्रख्यात पीठ है। जिसके परम तेजस्वी साधक रूप बदल कर मानव मात्र के कल्याण में सदैव जुटे रहते हैं व रहस्य साधनाओं व तपोबल द्वारा गुप्त रूप से सृष्टि की रक्षा और मंगल की कामना करते हैं। इसी सिद्ध पीठ के पास सप्त ऋषियों का वो पंचांग है। जिसमें काल गणना व 'आंशिक सतयुग' की बात कही गयी है। किन्तु पीठ अपने प्राचीन मतों व परम्पराओं के कारण इसे सर्व साधारण के लिए प्रकट नहीं करती। इसी काल का निमिष शुरू हो चुका है। जिसका देवताओं के लिए तो कोई महत्त्व नहीं था। किन्तु देवताओं का ये काल मनुष्यों के लिए कम से कम दो सौ वर्ष व अधिक से अधिक छ: सौ वर्ष हो सकता है। #Ishaputra #KaulantakPeeth #HimalayanSiddhas #Scrolllink #KaulantakVani
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