• Chandrama aane waale hain parvaton ke upar se Kurukulla temple

    #karwachauth #moon #kurukullaTemple #scrolllink
    Chandrama aane waale hain parvaton ke upar se 🙏 Kurukulla temple 🛕 #karwachauth #moon #kurukullaTemple #scrolllink
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  • 'करवा चौथ' के सम्बन्ध में एक और बात की क्या पुरुषों को व्रत रखना चाहिए क्योंकि धर्म ग्रंथों व कथाओं में ऐसा कोई विवरण नहीं मिलता? इसका उत्तर ये है की करवा चौथ एक खगोलीय मुहूर्त है जिसका प्रयोग स्त्री व पुरुष सामान रूप से कर सकते हैं। आम जन व्रत के साधनात्मक पक्ष को नहीं जानते इस कारण व्रत कर महिलाये इसे पूर्ण समझ लेती है। हाँ ये जरूर है की भक्ति और श्रद्धा में शक्ति होती है तो व्रत फलीभूत हो जाता है। लेकिन इस पर्व विशेष में साधना आवश्यक होती है। साधना से ही सती स्त्रियां बल प्राप्त कर उसका बड़ा भाग पति को सौंपती थी जो आज भी संभव है साधना द्वारा। जो साधक काल ज्ञान के ज्ञाता हैं वो जानने हैं की इस काल खंड में की गई साधना से सर्व सौभाग्य आता है। इस कारण हिमालय के सिद्धों नें व्रत की परम्परा को बढ़ावा दिया। 'कौलान्तक संप्रदाय' में बहुत से वीर योद्धाओं का विवरण है व साथ ही 'देवराज इंद्रा द्वारा अपनी पत्नी शची' के व्रत काल में व्रत धारण करने की कथा का भी उल्लेख है। महाकैलाश पर देवी पार्वती के व्रतकाल में शिव भी व्रती होते हैं। इस प्रकार ये सिद्ध होता है की व्रत केवल स्त्री-पुरुष के भेद से नहीं अपितु ज्योतिषीय भेद से चलता है। हाँ पुरुषों के लिए ये व्रत रखना जटिल है उनके स्वभाव के कारण क्योंकि इस व्रत के नियमों में से कुछ अति आवश्यक है जिनका पालन कभी-कभी पुरुषों से नहीं हो पाता इस कारण अधिकांश पुरुष इससे दूर रहते है। पर जो स्त्री अपने पुरुष से अमर्यादित सम्भाषण करती हो। पुरुष से श्रेष्ठता चाहती हो, पुरुष के तर्कों को तर्कों से आंकती हो, पुरुष को प्रथम स्थान न देती हो ऐसी स्त्री द्वारा किया गया व्रत केवल ढोंग होता है व निष्फल ही रहता है। तो ऐसी स्त्री को भी ब्रत नहीं करना चाहिए। जो पुरुष पराई औरतों पर आसक्त है अपनी स्त्री में देवी का अंश नहीं देखता उसे न तो व्रत का अधिकार है ना ही अपनी अर्धांगिनी से पूजा ग्रहण का अधिकार। इस प्रकार बहुत से नियम और साधना मत 'करवा चौथ' से जुड़े हैं। जिनका भैरव-भैरवियों को अध्ययन कर व्रत साधना में उतरना चाहिए। ये व्रत पौराणिक व तांत्रिक दोनों मतों द्वारा प्रतिपादित है। शेष ज्ञान अपने श्री गुरु से ग्रहण करें। इस व्रत की रक्षा धर्मावलम्बियों का कार्य है। क्योंकि पतिव्रत को नष्ट करने का कार्य मलेच्छ करेंगे ऐसा पूर्व भविष्यवाणियों से सिद्ध होता है। कलियुग में कुलटा स्त्रियां व मलेच्छा पुरष तथा उनके विविध संगठन इस कार्य में जुट जाएंगे। क्योंकि अकारण भी सतित्व से भयभीत रहते मलेच्छों के ह्रदय को ऐसे पर्वों से अपार दुःख पहुँचता है तो वे षड्यंत्र व कृत्रिम बौद्धिक तर्कों व कुतर्कों द्वारा इन व्रतों की महिमा को खंडित करने का प्रयास करते है-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
    ऊँ ह्रौं श्रीं ऐं ह्रीं सर्वसौभाग्य चक्र स्वामिन्यै नमः #Parv
    'करवा चौथ' के सम्बन्ध में एक और बात की क्या पुरुषों को व्रत रखना चाहिए क्योंकि धर्म ग्रंथों व कथाओं में ऐसा कोई विवरण नहीं मिलता? इसका उत्तर ये है की करवा चौथ एक खगोलीय मुहूर्त है जिसका प्रयोग स्त्री व पुरुष सामान रूप से कर सकते हैं। आम जन व्रत के साधनात्मक पक्ष को नहीं जानते इस कारण व्रत कर महिलाये इसे पूर्ण समझ लेती है। हाँ ये जरूर है की भक्ति और श्रद्धा में शक्ति होती है तो व्रत फलीभूत हो जाता है। लेकिन इस पर्व विशेष में साधना आवश्यक होती है। साधना से ही सती स्त्रियां बल प्राप्त कर उसका बड़ा भाग पति को सौंपती थी जो आज भी संभव है साधना द्वारा। जो साधक काल ज्ञान के ज्ञाता हैं वो जानने हैं की इस काल खंड में की गई साधना से सर्व सौभाग्य आता है। इस कारण हिमालय के सिद्धों नें व्रत की परम्परा को बढ़ावा दिया। 'कौलान्तक संप्रदाय' में बहुत से वीर योद्धाओं का विवरण है व साथ ही 'देवराज इंद्रा द्वारा अपनी पत्नी शची' के व्रत काल में व्रत धारण करने की कथा का भी उल्लेख है। महाकैलाश पर देवी पार्वती के व्रतकाल में शिव भी व्रती होते हैं। इस प्रकार ये सिद्ध होता है की व्रत केवल स्त्री-पुरुष के भेद से नहीं अपितु ज्योतिषीय भेद से चलता है। हाँ पुरुषों के लिए ये व्रत रखना जटिल है उनके स्वभाव के कारण क्योंकि इस व्रत के नियमों में से कुछ अति आवश्यक है जिनका पालन कभी-कभी पुरुषों से नहीं हो पाता इस कारण अधिकांश पुरुष इससे दूर रहते है। पर जो स्त्री अपने पुरुष से अमर्यादित सम्भाषण करती हो। पुरुष से श्रेष्ठता चाहती हो, पुरुष के तर्कों को तर्कों से आंकती हो, पुरुष को प्रथम स्थान न देती हो ऐसी स्त्री द्वारा किया गया व्रत केवल ढोंग होता है व निष्फल ही रहता है। तो ऐसी स्त्री को भी ब्रत नहीं करना चाहिए। जो पुरुष पराई औरतों पर आसक्त है अपनी स्त्री में देवी का अंश नहीं देखता उसे न तो व्रत का अधिकार है ना ही अपनी अर्धांगिनी से पूजा ग्रहण का अधिकार। इस प्रकार बहुत से नियम और साधना मत 'करवा चौथ' से जुड़े हैं। जिनका भैरव-भैरवियों को अध्ययन कर व्रत साधना में उतरना चाहिए। ये व्रत पौराणिक व तांत्रिक दोनों मतों द्वारा प्रतिपादित है। शेष ज्ञान अपने श्री गुरु से ग्रहण करें। इस व्रत की रक्षा धर्मावलम्बियों का कार्य है। क्योंकि पतिव्रत को नष्ट करने का कार्य मलेच्छ करेंगे ऐसा पूर्व भविष्यवाणियों से सिद्ध होता है। कलियुग में कुलटा स्त्रियां व मलेच्छा पुरष तथा उनके विविध संगठन इस कार्य में जुट जाएंगे। क्योंकि अकारण भी सतित्व से भयभीत रहते मलेच्छों के ह्रदय को ऐसे पर्वों से अपार दुःख पहुँचता है तो वे षड्यंत्र व कृत्रिम बौद्धिक तर्कों व कुतर्कों द्वारा इन व्रतों की महिमा को खंडित करने का प्रयास करते है-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय। ऊँ ह्रौं श्रीं ऐं ह्रीं सर्वसौभाग्य चक्र स्वामिन्यै नमः #Parv
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  • 'करवा चौथ' के पावन अवसर पर उन सभी भैरव-भैरवियों हेतु मंत्र प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने अपने भैरव या भैरवी हेतु पवित्र व्रत धारण किया है। दिन भर इस मंत्र का मानसिक जाप करना श्रेष्ठ है व इसके प्रभाव से पति-पत्नी की लम्बी आयु के साथ ही धन-धान्य व दाम्पत्य सुख आदि की भी प्राप्ति होती है। ब्रत के दिन शिव-पार्वती का ध्यान व गुरु वंदना सहित अपने कुल देवी-देवताओं की स्तुति व पूजन भी करना चाहिए। यदि भैरव-भैरावियाँ कुंवारे हैं तो भी सुन्दर पति-पत्नी की कामना हेतु ब्रत धारण करने का विधान है। यदि आपका विवाह नहीं हुआ है तो आप अपने प्रेमी या प्रेमिका हेतु भी व्रत धारण कर सकते हैं। 'कौलान्तक संप्रदाय' में जिन भैरवियों या भैरवों की पत्नी अथवा पति इस लोक में नहीं हैं वो भैरव-भैरवी अपने गुरु या इष्ट के निम्मित भी इस व्रत को धारण कर सकते हैं। व्रत चन्द्रमा के दर्शन तक स्थित रहता है। किन्तु बिना मंत्र जाप 'कौलान्तक संप्रदाय' व्रत को महत्त्व नहीं देता। ये व्रत एक गोपनीय 'तांत्रिक साधना' है। इस व्रत की बहुत सी मनघडंत और व्यर्थ की कथाएं पुस्तक बाजारों में उपलब्ध है। जिस पर 'कौलान्तक पीठ' विश्वास नहीं करता। क्योंकि इस व्रत के नियम कथा आदि हमारी परम्परा में बिलकुल भिन्न हैं। अत: आप मंत्र पूर्वक व्रत को संपन्न करें। करवा चौथ के पर्व की हार्दिक शुभ कामनाएं और हाँ जाते-जाते ये बताना जरुरी है की भारत के कुछ मनहूस मीडिया घराने जो की हमेशा इस व्रत विपरीत कुछ न कुछ बताते रहते हैं हम उनको 'मलेच्छ संगठन' करार देते हैं व हिन्दू धर्म विरोधी घोषित कर उनका व उनके कर्मचारियों का मुँह काला करते हैं-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
    ऊँ ह्रौं श्रीं ऐं ह्रीं सर्वसौभाग्य चक्र स्वामिन्यै नमः #Parv
    'करवा चौथ' के पावन अवसर पर उन सभी भैरव-भैरवियों हेतु मंत्र प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने अपने भैरव या भैरवी हेतु पवित्र व्रत धारण किया है। दिन भर इस मंत्र का मानसिक जाप करना श्रेष्ठ है व इसके प्रभाव से पति-पत्नी की लम्बी आयु के साथ ही धन-धान्य व दाम्पत्य सुख आदि की भी प्राप्ति होती है। ब्रत के दिन शिव-पार्वती का ध्यान व गुरु वंदना सहित अपने कुल देवी-देवताओं की स्तुति व पूजन भी करना चाहिए। यदि भैरव-भैरावियाँ कुंवारे हैं तो भी सुन्दर पति-पत्नी की कामना हेतु ब्रत धारण करने का विधान है। यदि आपका विवाह नहीं हुआ है तो आप अपने प्रेमी या प्रेमिका हेतु भी व्रत धारण कर सकते हैं। 'कौलान्तक संप्रदाय' में जिन भैरवियों या भैरवों की पत्नी अथवा पति इस लोक में नहीं हैं वो भैरव-भैरवी अपने गुरु या इष्ट के निम्मित भी इस व्रत को धारण कर सकते हैं। व्रत चन्द्रमा के दर्शन तक स्थित रहता है। किन्तु बिना मंत्र जाप 'कौलान्तक संप्रदाय' व्रत को महत्त्व नहीं देता। ये व्रत एक गोपनीय 'तांत्रिक साधना' है। इस व्रत की बहुत सी मनघडंत और व्यर्थ की कथाएं पुस्तक बाजारों में उपलब्ध है। जिस पर 'कौलान्तक पीठ' विश्वास नहीं करता। क्योंकि इस व्रत के नियम कथा आदि हमारी परम्परा में बिलकुल भिन्न हैं। अत: आप मंत्र पूर्वक व्रत को संपन्न करें। करवा चौथ के पर्व की हार्दिक शुभ कामनाएं और हाँ जाते-जाते ये बताना जरुरी है की भारत के कुछ मनहूस मीडिया घराने जो की हमेशा इस व्रत विपरीत कुछ न कुछ बताते रहते हैं हम उनको 'मलेच्छ संगठन' करार देते हैं व हिन्दू धर्म विरोधी घोषित कर उनका व उनके कर्मचारियों का मुँह काला करते हैं-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय। ऊँ ह्रौं श्रीं ऐं ह्रीं सर्वसौभाग्य चक्र स्वामिन्यै नमः #Parv
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  • Sambhala Samrajya Diwas is celebrated every year on the auspicious occasion of Sharad Purnima, marking the divine appearance of Maa Kurukulla Bhagwati, a radiant and powerful form of Devi Parvati. According to the ancient Siddha Dharma tradition, there came a time when Devi Parvati expressed her wish to attain supreme knowledge. Lord Shiva, smiling compassionately, reminded her that all wisdom already resided within her, for she herself is the embodiment of divine knowledge. Yet, acknowledging her sacred play, Shiva agreed to impart the ultimate wisdom, saying that to truly receive and assimilate this profound knowledge, she must first manifest in her Kurukulla form—the aspect of the Goddess who governs knowledge, attraction, and siddhi (spiritual accomplishment). Thus, on the full moon night of Sharad Purnima, Devi Parvati manifested as Maa Kurukulla Bhagwati, glowing with divine brilliance.

    To bestow this sacred knowledge upon her, Lord Shiva manifested as Swachchhand Bhairava, the free and boundless aspect of Mahadeva, and created the divine realm of Sambhala Lok. Within this mystical and sacred domain, Lord Shiva transmitted the complete and eternal wisdom of Siddha Dharma to Maa Kurukulla. This sacred transmission marked the beginning of the Siddha Dharma Parampara, the lineage of enlightened knowledge that has since flowed unbroken through the ages. After receiving the wisdom, Maa Kurukulla created various Kulas (spiritual lineages), each embodying unique streams of knowledge. These teachings were received and preserved by the Mahasiddhas, ensuring the continuation and protection of Siddha Dharma through countless generations.

    Within the revered Kaulantak Peeth, Sambhala Samrajya Diwas is regarded as one of the most sacred and auspicious days of the year. On this day, all Bhairavas and Bhairavis, the dedicated disciples and followers of Kaulantak Nath, come together to perform special worship and rituals in honor of Maa Kurukulla Bhagwati. The celebrations culminate in the Kala Pradarshan, a sacred performance of art, dance, and music that symbolizes the creative expression of divine energy. The day is not merely a festival but a spiritual remembrance—an invocation of the moment when eternal wisdom descended into the universe and when the Goddess herself became the vessel of divine knowledge. Sambhala Samrajya Diwas thus stands as a celebration of the eternal unity of Shiva and Shakti, the harmony of knowledge and devotion, and the timeless flow of divine wisdom through the sacred Siddha tradition.

    Part -3

    #siddhadharma #sambhala #sambhalasamrajya #jaisambhalasamrajya #ishaputra #mahasiddha #kaulantakpeeth #kulantpeeth #kaulantaknath #MahayogiSatyendraNath #kurukulla #Shiva #himalayansiddhatradition
    Sambhala Samrajya Diwas is celebrated every year on the auspicious occasion of Sharad Purnima, marking the divine appearance of Maa Kurukulla Bhagwati, a radiant and powerful form of Devi Parvati. According to the ancient Siddha Dharma tradition, there came a time when Devi Parvati expressed her wish to attain supreme knowledge. Lord Shiva, smiling compassionately, reminded her that all wisdom already resided within her, for she herself is the embodiment of divine knowledge. Yet, acknowledging her sacred play, Shiva agreed to impart the ultimate wisdom, saying that to truly receive and assimilate this profound knowledge, she must first manifest in her Kurukulla form—the aspect of the Goddess who governs knowledge, attraction, and siddhi (spiritual accomplishment). Thus, on the full moon night of Sharad Purnima, Devi Parvati manifested as Maa Kurukulla Bhagwati, glowing with divine brilliance. To bestow this sacred knowledge upon her, Lord Shiva manifested as Swachchhand Bhairava, the free and boundless aspect of Mahadeva, and created the divine realm of Sambhala Lok. Within this mystical and sacred domain, Lord Shiva transmitted the complete and eternal wisdom of Siddha Dharma to Maa Kurukulla. This sacred transmission marked the beginning of the Siddha Dharma Parampara, the lineage of enlightened knowledge that has since flowed unbroken through the ages. After receiving the wisdom, Maa Kurukulla created various Kulas (spiritual lineages), each embodying unique streams of knowledge. These teachings were received and preserved by the Mahasiddhas, ensuring the continuation and protection of Siddha Dharma through countless generations. Within the revered Kaulantak Peeth, Sambhala Samrajya Diwas is regarded as one of the most sacred and auspicious days of the year. On this day, all Bhairavas and Bhairavis, the dedicated disciples and followers of Kaulantak Nath, come together to perform special worship and rituals in honor of Maa Kurukulla Bhagwati. The celebrations culminate in the Kala Pradarshan, a sacred performance of art, dance, and music that symbolizes the creative expression of divine energy. The day is not merely a festival but a spiritual remembrance—an invocation of the moment when eternal wisdom descended into the universe and when the Goddess herself became the vessel of divine knowledge. Sambhala Samrajya Diwas thus stands as a celebration of the eternal unity of Shiva and Shakti, the harmony of knowledge and devotion, and the timeless flow of divine wisdom through the sacred Siddha tradition. Part -3 #siddhadharma #sambhala #sambhalasamrajya #jaisambhalasamrajya #ishaputra #mahasiddha #kaulantakpeeth #kulantpeeth #kaulantaknath #MahayogiSatyendraNath #kurukulla #Shiva #himalayansiddhatradition
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  • Sambhala Samrajya Diwas is celebrated every year on the auspicious occasion of Sharad Purnima, marking the divine appearance of Maa Kurukulla Bhagwati, a radiant and powerful form of Devi Parvati. According to the ancient Siddha Dharma tradition, there came a time when Devi Parvati expressed her wish to attain supreme knowledge. Lord Shiva, smiling compassionately, reminded her that all wisdom already resided within her, for she herself is the embodiment of divine knowledge. Yet, acknowledging her sacred play, Shiva agreed to impart the ultimate wisdom, saying that to truly receive and assimilate this profound knowledge, she must first manifest in her Kurukulla form—the aspect of the Goddess who governs knowledge, attraction, and siddhi (spiritual accomplishment). Thus, on the full moon night of Sharad Purnima, Devi Parvati manifested as Maa Kurukulla Bhagwati, glowing with divine brilliance.

    To bestow this sacred knowledge upon her, Lord Shiva manifested as Swachchhand Bhairava, the free and boundless aspect of Mahadeva, and created the divine realm of Sambhala Lok. Within this mystical and sacred domain, Lord Shiva transmitted the complete and eternal wisdom of Siddha Dharma to Maa Kurukulla. This sacred transmission marked the beginning of the Siddha Dharma Parampara, the lineage of enlightened knowledge that has since flowed unbroken through the ages. After receiving the wisdom, Maa Kurukulla created various Kulas (spiritual lineages), each embodying unique streams of knowledge. These teachings were received and preserved by the Mahasiddhas, ensuring the continuation and protection of Siddha Dharma through countless generations.

    Within the revered Kaulantak Peeth, Sambhala Samrajya Diwas is regarded as one of the most sacred and auspicious days of the year. On this day, all Bhairavas and Bhairavis, the dedicated disciples and followers of Kaulantak Nath, come together to perform special worship and rituals in honor of Maa Kurukulla Bhagwati. The celebrations culminate in the Kala Pradarshan, a sacred performance of art, dance, and music that symbolizes the creative expression of divine energy. The day is not merely a festival but a spiritual remembrance—an invocation of the moment when eternal wisdom descended into the universe and when the Goddess herself became the vessel of divine knowledge. Sambhala Samrajya Diwas thus stands as a celebration of the eternal unity of Shiva and Shakti, the harmony of knowledge and devotion, and the timeless flow of divine wisdom through the sacred Siddha tradition.

    Part - 2

    #siddhadharma #sambhala #sambhalasamrajya #jaisambhalasamrajya #ishaputra #mahasiddha #kaulantakpeeth #kulantpeeth #kaulantaknath #MahayogiSatyendraNath #kurukulla #Shiva #himalayansiddhatradition
    Sambhala Samrajya Diwas is celebrated every year on the auspicious occasion of Sharad Purnima, marking the divine appearance of Maa Kurukulla Bhagwati, a radiant and powerful form of Devi Parvati. According to the ancient Siddha Dharma tradition, there came a time when Devi Parvati expressed her wish to attain supreme knowledge. Lord Shiva, smiling compassionately, reminded her that all wisdom already resided within her, for she herself is the embodiment of divine knowledge. Yet, acknowledging her sacred play, Shiva agreed to impart the ultimate wisdom, saying that to truly receive and assimilate this profound knowledge, she must first manifest in her Kurukulla form—the aspect of the Goddess who governs knowledge, attraction, and siddhi (spiritual accomplishment). Thus, on the full moon night of Sharad Purnima, Devi Parvati manifested as Maa Kurukulla Bhagwati, glowing with divine brilliance. To bestow this sacred knowledge upon her, Lord Shiva manifested as Swachchhand Bhairava, the free and boundless aspect of Mahadeva, and created the divine realm of Sambhala Lok. Within this mystical and sacred domain, Lord Shiva transmitted the complete and eternal wisdom of Siddha Dharma to Maa Kurukulla. This sacred transmission marked the beginning of the Siddha Dharma Parampara, the lineage of enlightened knowledge that has since flowed unbroken through the ages. After receiving the wisdom, Maa Kurukulla created various Kulas (spiritual lineages), each embodying unique streams of knowledge. These teachings were received and preserved by the Mahasiddhas, ensuring the continuation and protection of Siddha Dharma through countless generations. Within the revered Kaulantak Peeth, Sambhala Samrajya Diwas is regarded as one of the most sacred and auspicious days of the year. On this day, all Bhairavas and Bhairavis, the dedicated disciples and followers of Kaulantak Nath, come together to perform special worship and rituals in honor of Maa Kurukulla Bhagwati. The celebrations culminate in the Kala Pradarshan, a sacred performance of art, dance, and music that symbolizes the creative expression of divine energy. The day is not merely a festival but a spiritual remembrance—an invocation of the moment when eternal wisdom descended into the universe and when the Goddess herself became the vessel of divine knowledge. Sambhala Samrajya Diwas thus stands as a celebration of the eternal unity of Shiva and Shakti, the harmony of knowledge and devotion, and the timeless flow of divine wisdom through the sacred Siddha tradition. Part - 2 #siddhadharma #sambhala #sambhalasamrajya #jaisambhalasamrajya #ishaputra #mahasiddha #kaulantakpeeth #kulantpeeth #kaulantaknath #MahayogiSatyendraNath #kurukulla #Shiva #himalayansiddhatradition
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    To bestow this sacred knowledge upon her, Lord Shiva manifested as Swachchhand Bhairava, the free and boundless aspect of Mahadeva, and created the divine realm of Sambhala Lok. Within this mystical and sacred domain, Lord Shiva transmitted the complete and eternal wisdom of Siddha Dharma to Maa Kurukulla. This sacred transmission marked the beginning of the Siddha Dharma Parampara, the lineage of enlightened knowledge that has since flowed unbroken through the ages. After receiving the wisdom, Maa Kurukulla created various Kulas (spiritual lineages), each embodying unique streams of knowledge. These teachings were received and preserved by the Mahasiddhas, ensuring the continuation and protection of Siddha Dharma through countless generations.

    Within the revered Kaulantak Peeth, Sambhala Samrajya Diwas is regarded as one of the most sacred and auspicious days of the year. On this day, all Bhairavas and Bhairavis, the dedicated disciples and followers of Kaulantak Nath, come together to perform special worship and rituals in honor of Maa Kurukulla Bhagwati. The celebrations culminate in the Kala Pradarshan, a sacred performance of art, dance, and music that symbolizes the creative expression of divine energy. The day is not merely a festival but a spiritual remembrance—an invocation of the moment when eternal wisdom descended into the universe and when the Goddess herself became the vessel of divine knowledge. Sambhala Samrajya Diwas thus stands as a celebration of the eternal unity of Shiva and Shakti, the harmony of knowledge and devotion, and the timeless flow of divine wisdom through the sacred Siddha tradition.

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    Sambhala Samrajya Diwas is celebrated every year on the auspicious occasion of Sharad Purnima, marking the divine appearance of Maa Kurukulla Bhagwati, a radiant and powerful form of Devi Parvati. According to the ancient Siddha Dharma tradition, there came a time when Devi Parvati expressed her wish to attain supreme knowledge. Lord Shiva, smiling compassionately, reminded her that all wisdom already resided within her, for she herself is the embodiment of divine knowledge. Yet, acknowledging her sacred play, Shiva agreed to impart the ultimate wisdom, saying that to truly receive and assimilate this profound knowledge, she must first manifest in her Kurukulla form—the aspect of the Goddess who governs knowledge, attraction, and siddhi (spiritual accomplishment). Thus, on the full moon night of Sharad Purnima, Devi Parvati manifested as Maa Kurukulla Bhagwati, glowing with divine brilliance. To bestow this sacred knowledge upon her, Lord Shiva manifested as Swachchhand Bhairava, the free and boundless aspect of Mahadeva, and created the divine realm of Sambhala Lok. Within this mystical and sacred domain, Lord Shiva transmitted the complete and eternal wisdom of Siddha Dharma to Maa Kurukulla. This sacred transmission marked the beginning of the Siddha Dharma Parampara, the lineage of enlightened knowledge that has since flowed unbroken through the ages. After receiving the wisdom, Maa Kurukulla created various Kulas (spiritual lineages), each embodying unique streams of knowledge. These teachings were received and preserved by the Mahasiddhas, ensuring the continuation and protection of Siddha Dharma through countless generations. Within the revered Kaulantak Peeth, Sambhala Samrajya Diwas is regarded as one of the most sacred and auspicious days of the year. On this day, all Bhairavas and Bhairavis, the dedicated disciples and followers of Kaulantak Nath, come together to perform special worship and rituals in honor of Maa Kurukulla Bhagwati. The celebrations culminate in the Kala Pradarshan, a sacred performance of art, dance, and music that symbolizes the creative expression of divine energy. The day is not merely a festival but a spiritual remembrance—an invocation of the moment when eternal wisdom descended into the universe and when the Goddess herself became the vessel of divine knowledge. Sambhala Samrajya Diwas thus stands as a celebration of the eternal unity of Shiva and Shakti, the harmony of knowledge and devotion, and the timeless flow of divine wisdom through the sacred Siddha tradition. #siddhadharma #sambhala #sambhalasamrajya #jaisambhalasamrajya #ishaputra #mahasiddha #kaulantakpeeth #kulantpeeth #kaulantaknath #MahayogiSatyendraNath #kurukulla #Shiva #himalayansiddhatradition
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  • Sambhala Samrajya Diwas ke shubh avsar par,
    Sabhi Bhairav aur Bhairaviyo ko hardik shubhkamnayein.
    Yeh divya parv aapke jeevan mein khushi aur samriddhi laye!

    #SambhalaSamrajyaDiwas #SambhalaMahotsav #MahaSiddhaIshaputra #KurukullaBhagwati #KurukullaTemple #KaulantakPeeth #KulantPeeth #Shambhala
    Sambhala Samrajya Diwas ke shubh avsar par, Sabhi Bhairav aur Bhairaviyo ko hardik shubhkamnayein. Yeh divya parv aapke jeevan mein khushi aur samriddhi laye! #SambhalaSamrajyaDiwas #SambhalaMahotsav #MahaSiddhaIshaputra #KurukullaBhagwati #KurukullaTemple #KaulantakPeeth #KulantPeeth #Shambhala
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  • New Trend with Shiv Parvati #trending #love #shorts #ShivParvati
    New Trend with Shiv Parvati 🥰❤️🙏 #trending #love #shorts #ShivParvati
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  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार सप्तम नवरात्र की देवी का नाम कालरात्रि है, शिव ने सृष्टि को बनाया शिव ही इसे नष्ट करेंगे, शिव की इस महालीला में जो सबसे गुप्त पहलू है वो है कालरात्रि, प्राचीन कथा के अनुसार एक बार शिव नें ये जानना चाहा कि वे कितने शक्तिशाली हैं, सबसे पहले उनहोंने सात्विक शक्ति को पुकारा तो योगमाया हाथ जोड़ सम्मुख आ गयी और उनहोंने शिव को सारी शक्तियों के बारे में बताया, फिर शिव ने राजसी शक्ति को पुकारा तो माँ पार्वती देवी दुर्गा व दस महाविद्याओं के साथ उपस्थित हो गयीं, देवी ने शिव को सबकुछ बताया जो जानना चाहते थे, तब शिव ने तामसी और सृष्टि कि आखिरी शक्ति को बुलाया तो कालरात्रि प्रकट हुई, काल रात्रि से जब शिव ने प्रश्न किया तो कालरात्रि ने अपनी शक्ति से दिखाया कि वो ही सृष्टि कि सबसे बड़ी शक्ति हैं गुप्त रूप से वही योगमाया, दुर्गा पार्वती है, एक क्षण में देवी ने कई सृष्टियों को निगल लिया, कई नीच राक्षस पल बर में मिट गए, देवी के क्रोध से नक्षत्र मंडल विचलित हो गया, सूर्य का तेज मलीन हो गया, तीनो लोक भस्म होने लगे, तब शिव नें देवी को शांत होने के लिए कहा लेकिन देवी शांत नहीं हुई, उनके शरीर से 64 कृत्याएं पैदा हुई, स्वर्ग सहित, विष्णु लोक, ब्रम्ह्म लोक, शिवलोक व पृथ्वी मंडल कांपने लगे, 64 कृत्याओं ने महाविनाश शुरू कर दिया, सर्वत्र आकाश से बिजलियाँ गिरने लगी तब समस्त ऋषि मुनि ब्रह्मा-विष्णु देवगण कैलाश जा पहुंचे शिव के नेत्रित्व में सबने देवी की स्तुति करते हुये शांत होने की प्रार्थना, तब देवी ने कृत्याओं को भीतर ही समां लिया, सभी को उपस्थित देख देवी ने अभय प्रदान किया, सबसे शक्तिशालिनी देवी ही कालरात्रि हैं जो महाकाली का ही स्वरुप हैं, जो भी साधक भक्त देवी की पूजा करता है पूरी सृष्टि में उसे अभय होता है, देवी भक्त पर कोई अस्त्र शास्त्र मंत्र तंत्र कृत्या औषधि विष कार्य नहीं करता, देवी की पूजा से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं

    शिव ने सबसे बड़ी शक्ति को को जानने के लिए जिस देवी को उत्पन्न किया वही कालरात्रि हैं, महाशक्ति कालरात्रि स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि का आदि थी अब अंत है, उतपन्न करने तथा महाविनाश की शक्ति होने से प्रलय काल की भाँती देवी को कालरात्रि कहा गया है, देवी के उपासक के जीवन में कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए सातवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का पाठ करना चाहिए
    पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,

    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
    (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)

    देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है,

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै नम:

    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें,

    जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै स्वाहा:

    माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा हकीक की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ

    यन्त्र-
    090 010 070
    080 030 020
    040 050 060

    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को काले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कालरात्रि देवी का श्रृंगार काले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा रात्री को ही की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी शाम के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक व चौमुखा दिया जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल

    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को नारियल व उर्द की ड़ाल काली मिर्च आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठी रोटी का भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र में देवी का ध्यान करने से सातवां चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में अदरक का रस , लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,

    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै

    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, सातवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे शत्रुओं कि समस्या हो या बार बार धन हानि होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं , देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ तृम तृषास्वरूपिन्ये चंडमुण्डबधकारिनयै नम:(न आधा लगेगा)
    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें
    व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
    ॐ सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोकस्याखिलेश्वरी
    एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम

    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा सातवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी कालिका शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज सातवें नवरात्र को सात कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ भोजन पात्र जैसे थाली गिलास आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, सातवें नवरात्र को अपने गुरु से "सह्स्त्रहार भेदन दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूरनता को अनुभव कर सकें व वैखरी वाणी की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, सातवें नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा व काली मिर्च की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले सातवें नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाबन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर व फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल पीले व चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल पीले व चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri #Parv
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार सप्तम नवरात्र की देवी का नाम कालरात्रि है, शिव ने सृष्टि को बनाया शिव ही इसे नष्ट करेंगे, शिव की इस महालीला में जो सबसे गुप्त पहलू है वो है कालरात्रि, प्राचीन कथा के अनुसार एक बार शिव नें ये जानना चाहा कि वे कितने शक्तिशाली हैं, सबसे पहले उनहोंने सात्विक शक्ति को पुकारा तो योगमाया हाथ जोड़ सम्मुख आ गयी और उनहोंने शिव को सारी शक्तियों के बारे में बताया, फिर शिव ने राजसी शक्ति को पुकारा तो माँ पार्वती देवी दुर्गा व दस महाविद्याओं के साथ उपस्थित हो गयीं, देवी ने शिव को सबकुछ बताया जो जानना चाहते थे, तब शिव ने तामसी और सृष्टि कि आखिरी शक्ति को बुलाया तो कालरात्रि प्रकट हुई, काल रात्रि से जब शिव ने प्रश्न किया तो कालरात्रि ने अपनी शक्ति से दिखाया कि वो ही सृष्टि कि सबसे बड़ी शक्ति हैं गुप्त रूप से वही योगमाया, दुर्गा पार्वती है, एक क्षण में देवी ने कई सृष्टियों को निगल लिया, कई नीच राक्षस पल बर में मिट गए, देवी के क्रोध से नक्षत्र मंडल विचलित हो गया, सूर्य का तेज मलीन हो गया, तीनो लोक भस्म होने लगे, तब शिव नें देवी को शांत होने के लिए कहा लेकिन देवी शांत नहीं हुई, उनके शरीर से 64 कृत्याएं पैदा हुई, स्वर्ग सहित, विष्णु लोक, ब्रम्ह्म लोक, शिवलोक व पृथ्वी मंडल कांपने लगे, 64 कृत्याओं ने महाविनाश शुरू कर दिया, सर्वत्र आकाश से बिजलियाँ गिरने लगी तब समस्त ऋषि मुनि ब्रह्मा-विष्णु देवगण कैलाश जा पहुंचे शिव के नेत्रित्व में सबने देवी की स्तुति करते हुये शांत होने की प्रार्थना, तब देवी ने कृत्याओं को भीतर ही समां लिया, सभी को उपस्थित देख देवी ने अभय प्रदान किया, सबसे शक्तिशालिनी देवी ही कालरात्रि हैं जो महाकाली का ही स्वरुप हैं, जो भी साधक भक्त देवी की पूजा करता है पूरी सृष्टि में उसे अभय होता है, देवी भक्त पर कोई अस्त्र शास्त्र मंत्र तंत्र कृत्या औषधि विष कार्य नहीं करता, देवी की पूजा से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं शिव ने सबसे बड़ी शक्ति को को जानने के लिए जिस देवी को उत्पन्न किया वही कालरात्रि हैं, महाशक्ति कालरात्रि स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि का आदि थी अब अंत है, उतपन्न करने तथा महाविनाश की शक्ति होने से प्रलय काल की भाँती देवी को कालरात्रि कहा गया है, देवी के उपासक के जीवन में कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए सातवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का पाठ करना चाहिए पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें, महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है, मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें, जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा हकीक की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 090 010 070 080 030 020 040 050 060 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को काले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कालरात्रि देवी का श्रृंगार काले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा रात्री को ही की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी शाम के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक व चौमुखा दिया जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को नारियल व उर्द की ड़ाल काली मिर्च आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठी रोटी का भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र में देवी का ध्यान करने से सातवां चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में अदरक का रस , लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए, चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, सातवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे शत्रुओं कि समस्या हो या बार बार धन हानि होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं , देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ तृम तृषास्वरूपिन्ये चंडमुण्डबधकारिनयै नम:(न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोकस्याखिलेश्वरी एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा सातवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी कालिका शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज सातवें नवरात्र को सात कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ भोजन पात्र जैसे थाली गिलास आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, सातवें नवरात्र को अपने गुरु से "सह्स्त्रहार भेदन दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूरनता को अनुभव कर सकें व वैखरी वाणी की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, सातवें नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा व काली मिर्च की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले सातवें नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाबन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर व फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल पीले व चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल पीले व चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri #Parv
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  • https://kaulantakvani.blogspot.com/2018/11/blog-post_6.html #KaulantakVani #Parv #Utsav #Deepawali #Diwali #Sadhana
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  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार प्रथम नवरात्र की देवी का नाम शैलपुत्री देवी है, इन शैलपुत्री देवी को गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में हम जानते हैं, शैलपुत्री के नाम से माँ पार्वती जी को त्रिलोकी भर में पूजा जाता है, और यही देवी सबकी अधीश्वरी है, एक समय की बात है कि पर्वत राज हिमालय ने कठोर तप कर माँ योगमाया को प्रसन्न किया, जब योगमाया के उनको दिव्य दर्शन हुये तो माता ने हिमालय को वर माँगने को कहा, तब पर्वत राज हिमालय ने योगमाया से कहा कि वे उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेँ, माता ने प्रसन्न हो कर पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लिया, हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में हिमाचल के घर पैदा हुई, पर्वत राज की पुत्री होने के कारण व कठोर तपस्वी सवभाव के कारण उनका नाम शैल पुत्री पड़ गया, माता शैल पुत्री का भक्त जीवन में कभी हारता नहीं, दुःख कोसों दूर से भक्त को देख कर भाग जाते हैं, शैल पुत्री के भक्त दृद निश्चयी, विश्वविजेता होते हैं, यदि आप सदा भयभीत रहते हों, जीवन कि सही दिशा नहीं ढून्ढ पा रहे हों, उदास जीवन में कोई सहारा न बचा हो, सब और शत्रु ही शत्रु हो गए हों, तो माता को मनाने का सबसे सही वक्त आ गया है, अब माता की पूजा आपकी सदा रक्षा करेगी,शुम्भ-निशुम्भ जैसे राक्षसों का नाश करने वाली देवी आपके जीवन के सब संकट हर लेगी, नवरात्रों में देवी स्वयं भक्तों के पास चल कर आती हैं, केवल उनको सच्चे मन से पुकारने की जरूरत होती है, आज हम आपको बताएँगे कि कैसे होंगी देवी शैलपुत्री प्रसन्न, वो कौन से मंत्र हैं जो माँ को खींच कर आपकी और ले आयेंगे, वो कौन सा यन्त्र हैं जिसकी सथापना से शैलपुत्री की सथापना हो जायेगी, किस रंग के वस्त्र माता को पहनाएं अथवा माता का श्रृंगार कैसे करें ? यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो आज हम आपको बताएँगे सही बिधि-बिधान जो माता कि कृपा ले कर आएगा





    हिमालय के घर पैदा होने के करण देवी का नाम पड़ा शैलपुत्री,शैलपुत्री माँ पार्वती जी का ही नाम है , कठोर तपस्वी स्वभाव के कारण भी देवी को शैल पुत्री कहा जाता है , देवी शैलपुत्री का भक्त जीवन में कभी नहीं हारता, देवी का नाम भर लेने से दुःख कोसों दूर से भाग जाते हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए पहले नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय का पाठ करना चाहिए, जब भी पाठ करें तो पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, सकाम इच्छा के लिए तो विशुद्ध संस्कृत में ही पाठ होना चाहिए लेकिन निष्काम भक्त हिंदी में व संस्कृत दोनों में पाठ कर सकते हैं, यदि आप किसी मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो देवी के नवारण महामंत्र का जाप पूरे नवरात्र भर करते रहें

    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे ।

    देवी शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए पहले दिन का प्रमुख मंत्र है

    मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं शैलपुत्री देव्यै नम: ।


    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें

    जैसे मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं शैलपुत्री देव्यै स्वाहा:


    माता के मात्र का जाप करने के लिए स्फटिक या रत्नों से बनी माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ पर बना लेँ

    यन्त्र-

    578 098 395

    842 576 998

    224 862 627


    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को गुलाबी रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार गुलाबी रंग के वस्त्रों से किया जाता है, इसी रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की पूजा सुबह और शाम दोनों समय की जाती है, शाम की पूजा मध्य रात्री तक होती है और रात्री की पूजा का ही सबसे ज्यादा महत्त्व माना गया है

    मंत्र जाप के लिए भी रात्री के समय का ही प्रयोग करें, यदि आप पूरे नवरात्रों की पूजा कर रहे हों तो एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन का बड़ा ही महत्त्व है, आप भी एक कलश में गंगाजल भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करें, पूजा स्थान पर एक भगवे रंग की ध्वजा जरूर स्थापित करें जो सब बाधाओं का नाश करती है, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें

    यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए,

    मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं


    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी के वाहन बृषभ यानि कि बैल कि पूजा करनी चाहिए तथा बैलों को भोजन घास आदि देना चाहिए, मंदिर में त्रिशूल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, मूलाधार चक्र में देवी का ध्यान करने से प्रथम चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए


    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै


    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और तीन नदियों का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए

    नवरात्रों में तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, सुहागिन स्त्रियों को श्रृंगार करके व मेहंदी आदि लगा कर ही सौभाग्यशालिनी बन ब्रत व पूजा करनी चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे घर, वाहन, की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं,

    देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ ह्रीं रेत: स्वरूपिन्ये मधु कैटभमर्दिन्ये नम:

    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें

    व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें

    ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसी देवी भगवती ही सा

    बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति


    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा पहले नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी परवत पर स्थित शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज प्रथम नवरात्र को एक कन्या का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ पत्थर का एक शिवलिंग देना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, प्रथम नवरात्र को अपने गुरु से "बज्र दीक्षा"लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्व जन्म की स्मृति व भविष्य बोध की स्मृति शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, प्रथम नवरात्र पर होने वाले हवन में गुगुल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व गूगुल जलना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले प्रथम नवरात्र का ब्रत सवा आठ बजे खोलेंगे,ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर बूंदी का प्रसाद बांटना चाहिए, श्रृंगार अवश्य करें,किन्तु अति और अभद्र श्रृंगार से बचाना चाहिए न ही ऐसे वस्त्र धारण करने चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए
    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
    #Navaratri #नवरात्रि #Parv #Utsav #Sadhana #साधना #Mantra #मंत्र #Ishaputra
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार प्रथम नवरात्र की देवी का नाम शैलपुत्री देवी है, इन शैलपुत्री देवी को गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में हम जानते हैं, शैलपुत्री के नाम से माँ पार्वती जी को त्रिलोकी भर में पूजा जाता है, और यही देवी सबकी अधीश्वरी है, एक समय की बात है कि पर्वत राज हिमालय ने कठोर तप कर माँ योगमाया को प्रसन्न किया, जब योगमाया के उनको दिव्य दर्शन हुये तो माता ने हिमालय को वर माँगने को कहा, तब पर्वत राज हिमालय ने योगमाया से कहा कि वे उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेँ, माता ने प्रसन्न हो कर पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लिया, हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में हिमाचल के घर पैदा हुई, पर्वत राज की पुत्री होने के कारण व कठोर तपस्वी सवभाव के कारण उनका नाम शैल पुत्री पड़ गया, माता शैल पुत्री का भक्त जीवन में कभी हारता नहीं, दुःख कोसों दूर से भक्त को देख कर भाग जाते हैं, शैल पुत्री के भक्त दृद निश्चयी, विश्वविजेता होते हैं, यदि आप सदा भयभीत रहते हों, जीवन कि सही दिशा नहीं ढून्ढ पा रहे हों, उदास जीवन में कोई सहारा न बचा हो, सब और शत्रु ही शत्रु हो गए हों, तो माता को मनाने का सबसे सही वक्त आ गया है, अब माता की पूजा आपकी सदा रक्षा करेगी,शुम्भ-निशुम्भ जैसे राक्षसों का नाश करने वाली देवी आपके जीवन के सब संकट हर लेगी, नवरात्रों में देवी स्वयं भक्तों के पास चल कर आती हैं, केवल उनको सच्चे मन से पुकारने की जरूरत होती है, आज हम आपको बताएँगे कि कैसे होंगी देवी शैलपुत्री प्रसन्न, वो कौन से मंत्र हैं जो माँ को खींच कर आपकी और ले आयेंगे, वो कौन सा यन्त्र हैं जिसकी सथापना से शैलपुत्री की सथापना हो जायेगी, किस रंग के वस्त्र माता को पहनाएं अथवा माता का श्रृंगार कैसे करें ? यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो आज हम आपको बताएँगे सही बिधि-बिधान जो माता कि कृपा ले कर आएगा हिमालय के घर पैदा होने के करण देवी का नाम पड़ा शैलपुत्री,शैलपुत्री माँ पार्वती जी का ही नाम है , कठोर तपस्वी स्वभाव के कारण भी देवी को शैल पुत्री कहा जाता है , देवी शैलपुत्री का भक्त जीवन में कभी नहीं हारता, देवी का नाम भर लेने से दुःख कोसों दूर से भाग जाते हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए पहले नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय का पाठ करना चाहिए, जब भी पाठ करें तो पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, सकाम इच्छा के लिए तो विशुद्ध संस्कृत में ही पाठ होना चाहिए लेकिन निष्काम भक्त हिंदी में व संस्कृत दोनों में पाठ कर सकते हैं, यदि आप किसी मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो देवी के नवारण महामंत्र का जाप पूरे नवरात्र भर करते रहें महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे । देवी शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए पहले दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं शैलपुत्री देव्यै नम: । दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं शैलपुत्री देव्यै स्वाहा: माता के मात्र का जाप करने के लिए स्फटिक या रत्नों से बनी माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ पर बना लेँ यन्त्र- 578 098 395 842 576 998 224 862 627 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को गुलाबी रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार गुलाबी रंग के वस्त्रों से किया जाता है, इसी रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की पूजा सुबह और शाम दोनों समय की जाती है, शाम की पूजा मध्य रात्री तक होती है और रात्री की पूजा का ही सबसे ज्यादा महत्त्व माना गया है मंत्र जाप के लिए भी रात्री के समय का ही प्रयोग करें, यदि आप पूरे नवरात्रों की पूजा कर रहे हों तो एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन का बड़ा ही महत्त्व है, आप भी एक कलश में गंगाजल भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करें, पूजा स्थान पर एक भगवे रंग की ध्वजा जरूर स्थापित करें जो सब बाधाओं का नाश करती है, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए, मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी के वाहन बृषभ यानि कि बैल कि पूजा करनी चाहिए तथा बैलों को भोजन घास आदि देना चाहिए, मंदिर में त्रिशूल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, मूलाधार चक्र में देवी का ध्यान करने से प्रथम चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और तीन नदियों का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए नवरात्रों में तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, सुहागिन स्त्रियों को श्रृंगार करके व मेहंदी आदि लगा कर ही सौभाग्यशालिनी बन ब्रत व पूजा करनी चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे घर, वाहन, की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ ह्रीं रेत: स्वरूपिन्ये मधु कैटभमर्दिन्ये नम: नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसी देवी भगवती ही सा बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा पहले नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी परवत पर स्थित शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज प्रथम नवरात्र को एक कन्या का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ पत्थर का एक शिवलिंग देना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, प्रथम नवरात्र को अपने गुरु से "बज्र दीक्षा"लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्व जन्म की स्मृति व भविष्य बोध की स्मृति शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, प्रथम नवरात्र पर होने वाले हवन में गुगुल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व गूगुल जलना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले प्रथम नवरात्र का ब्रत सवा आठ बजे खोलेंगे,ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर बूंदी का प्रसाद बांटना चाहिए, श्रृंगार अवश्य करें,किन्तु अति और अभद्र श्रृंगार से बचाना चाहिए न ही ऐसे वस्त्र धारण करने चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज #Navaratri #नवरात्रि #Parv #Utsav #Sadhana #साधना #Mantra #मंत्र #Ishaputra
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  • In Siddha Dharma, Mount Kailash holds a very special and sacred place. It is believed that performing sādhana (spiritual practice) on Kailash yields results thousands of times greater than elsewhere, because the mountain itself radiates divine energy. Kailash gives seekers the living experience of being in the direct presence of Lord Shiva. Siddha yogis, along with countless divine beings—various devas, devis, celestial beings like kinnaras, kiraatas, and other higher beings—continuously arrive at Kailash to engage in sādhana and deep tapasya. This makes Mount Kailash not just a physical mountain but an eternal spiritual hub, where the vibrations of penance, meditation, and divine grace are ever-present. For a seeker, being connected to Kailash means being constantly connected to Lord Shiva’s boundless energy and blessings.

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    In Siddha Dharma, Mount Kailash holds a very special and sacred place. It is believed that performing sādhana (spiritual practice) on Kailash yields results thousands of times greater than elsewhere, because the mountain itself radiates divine energy. Kailash gives seekers the living experience of being in the direct presence of Lord Shiva. Siddha yogis, along with countless divine beings—various devas, devis, celestial beings like kinnaras, kiraatas, and other higher beings—continuously arrive at Kailash to engage in sādhana and deep tapasya. This makes Mount Kailash not just a physical mountain but an eternal spiritual hub, where the vibrations of penance, meditation, and divine grace are ever-present. For a seeker, being connected to Kailash means being constantly connected to Lord Shiva’s boundless energy and blessings. #kailash #kailashparvat #mountkailash #scrolllink #shiva #ishaputra #MahayogiSatyendraNath #kulantpeeth #kaulantakpeeth
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