• महादेव की कृपा दृष्टि आप एवं आपके सपरिवार पर सदैव बनी रहे, आप सभी का दिन शुभ और मंगलमय हो!

    #ॐ_नमः_शिवायः
    #हर_हर_महादेव
    #शुभ_प्रभात_वंदन
    #शुभ_सोमवार

    #goodmorning #mahadev #scrolllink
    महादेव की कृपा दृष्टि आप एवं आपके सपरिवार पर सदैव बनी रहे, आप सभी का दिन शुभ और मंगलमय हो!🙏 🚩 #ॐ_नमः_शिवायः 💮🌼🙏 #हर_हर_महादेव 🔱🌿🙏 #शुभ_प्रभात_वंदन 🌹🙏 #शुभ_सोमवार🌻🌼🙏 #goodmorning #mahadev #scrolllink
    Love
    3
    0 Commentaires 0 Parts 39 Vue 0 Aperçu
  • कल्प भी शिव, काल भी शिव है,
    जीवन का उद्धार भी शिव ...!

    ॐ नम: शिवाय..!!

    #shiva #rudra #mahadeva #scrolllink
    कल्प भी शिव, काल भी शिव है, जीवन का उद्धार भी शिव ...!✨❤ ॐ नम: शिवाय..!! #shiva #rudra #mahadeva #scrolllink
    Love
    3
    0 Commentaires 0 Parts 30 Vue 0 Aperçu
  • जय श्री हरि नारायण

    नारायण नाम स्वयं में अमृत है
    जिसके स्मरण मात्र से मन शांत हो जाता है, और जीवन में दिव्यता उतर आती है..।

    जो प्रेम से “ॐ नमो नारायणाय” का जाप करता है,
    उसके हर संकट, हर भ्रम दूर हो जाते हैं..।

    श्री वासुदेव का नाम आत्मा को शुद्ध करता है,
    श्रीहरि विष्णु की कृपा से हृदय में करुणा और प्रकाश भर जाता है..।

    नारायण ही पालनहार हैं, नारायण ही मोक्ष के द्वार हैं।
    उनकी भक्ति से ही जीवन में सच्चा आनंद और शांति मिलती है..।

    नमो नारायण नमो वासुदेवाय जय श्री विष्णु हरि नारायण

    #vishnu #narayan #ishaputra #scrolllink
    🌺 जय श्री हरि नारायण 🌺 नारायण नाम स्वयं में अमृत है जिसके स्मरण मात्र से मन शांत हो जाता है, और जीवन में दिव्यता उतर आती है..। जो प्रेम से “ॐ नमो नारायणाय” का जाप करता है, उसके हर संकट, हर भ्रम दूर हो जाते हैं..। श्री वासुदेव का नाम आत्मा को शुद्ध करता है, श्रीहरि विष्णु की कृपा से हृदय में करुणा और प्रकाश भर जाता है..। नारायण ही पालनहार हैं, नारायण ही मोक्ष के द्वार हैं। उनकी भक्ति से ही जीवन में सच्चा आनंद और शांति मिलती है..। 🌿🙏 नमो नारायण नमो वासुदेवाय जय श्री विष्णु हरि नारायण 🌸 #vishnu #narayan #ishaputra #scrolllink
    Love
    Like
    3
    0 Commentaires 0 Parts 38 Vue 0 Aperçu
  • नवम नवरात्र वर देंगी महाशक्ति सिद्धिदात्री

    मार्कंडेय पुराण के अनुसार नवम नवरात्र की देवी का नाम सिद्धिदात्री है, एक बार कैलाशाधिपति भगवान शिव से देवी पार्वती नें पूछा की भगवन आप इतने विराट और अंतहीन कैसे हैं और सभी सिद्धियाँ आप में कैसे निहित हैं, तो शिव देवी स बोले देवी आप ही वो शक्ति हैं जो मेरी समस्त शक्तियों का मूल हैं किन्तु पर्वतराज के घर उत्पन्न होने से आप पूर्व भूल गयी हैं, अत: आप ज्ञान प्राप्त करें, तब देवी नें शिव से पहले ज्ञान प्राप्त किया जो आगम निगम बने, फिर आगमों निगमों से परिपूर्ण हो देवी को अपने वास्तविक स्वरूप का बोध हुआ, तब देवी सभी सिद्धियों को धारण किये परात्पर मंडल में विराजमान हुई,माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं, इनका वाहन सिंह है, ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं, इनके नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है, माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाता है, देवी की आराधना से भक्त को अणिमा , लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता , दूर श्रवण , परकाया प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है, यदि कोई अत्यंत कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर भी माँ की कृपा का पात्र बन सकता है, ऐसी देवी की महिमा तो शास्त्र भी नहीं बता सकते, बड़े-बड़े ऋषि मुनि भी देवी की अपार क्षमताओं के आगे नतमस्तक हैं, देवी को पूर्णावतार भी माना गया है, इनकी साधना से ही सभी प्रकार की सिद्धियाँ व शक्तियां साधक प्राप्त करता है, देवी महा महिमा के करण इनको सिद्धिदात्री पुकारा गया है

    परात्पर मंडल में स्थित सर्व सिद्धियों वाली महादेवी ही सिद्धिदात्री देवी हैं, महाशक्ति सिद्धिदात्री स्वयं योगमाया ही हैं जो सारी शक्तियों व सिद्धियों की मूल है, यह भी कथा आती है की शिव द्वारा देवी को को ज्ञान देने से जब देव पूर्ण हुई तब सिद्धिदात्री स्वरुप में प्रकट हुई, देवी के उपासक देवी से आशीष ले कर सभी सिद्धियाँ प्राप्त कर लेते हैं, देवी सिद्धिदात्री की भक्ति करने वाले भक्त की त्रिलोकी भर में जय-जयकार होती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए नवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के तेहरवें अध्याय का पाठ करना चाहिए
    पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें

    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
    (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
    देवी सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए नौवें दिन का प्रमुख मंत्र है
    मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्री देव्यै नम:

    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें

    जैसे मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्री देव्यै स्वाहा:
    माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा मोतियों की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
    यन्त्र-

    990 022 500 707 210 880
    009 321 690

    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल या पीले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, सिद्धिदात्री देवी का श्रृंगार लाल व पीले वस्त्रों व आभूषणों से ही किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा प्रभात व संध्या अथवा रात्री को की जा सकती है, संध्या व रात्री की पूजा का समय देवी सिद्धिदात्री की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी संध्या या रात्री के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
    मन्त्र - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ॥

    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को रुद्राक्ष या सोने चाँदी से बने आभूषण माला आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में पूजा का सामान नारियल वस्त्र चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र के गुरुमंडल में देवी का ध्यान करने से साधक महासमाधी प्राप्त करता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए

    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, आठवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी,देवी से अणिमादी सिद्धियों की प्राप्ति होती है या कोई गुप्त इच्छा हो तो पूर्ण होती है, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ जां जातिस्वरूपिन्ये निशुम्भबधकारिनयै नम:
    (न आधा लगेगा)
    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें

    ॐ या श्री: स्वयं सुकृतानाम भवनेश्वलक्ष्मी:
    पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:,
    श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
    तां त्वां नता: स्म परिपालय देवी विश्वं

    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा नौवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी भी निकट के क्षेत्रीय शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज नौवें नवरात्र को नौ कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, नौवें नवरात्र को अपने गुरु से "पूर्णत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूर्णता और तृप्ति को अनुभव कर सकें व आनन्दमय शरीर की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, नौवें नवरात्र पर होने वाले हवन में खीर व पंचमेवा की आहुतियाँ देनी चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले नौवें नवरात्र का ब्रत साय ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों व मिठाइयों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल व पीले रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
    कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani
    नवम नवरात्र वर देंगी महाशक्ति सिद्धिदात्री मार्कंडेय पुराण के अनुसार नवम नवरात्र की देवी का नाम सिद्धिदात्री है, एक बार कैलाशाधिपति भगवान शिव से देवी पार्वती नें पूछा की भगवन आप इतने विराट और अंतहीन कैसे हैं और सभी सिद्धियाँ आप में कैसे निहित हैं, तो शिव देवी स बोले देवी आप ही वो शक्ति हैं जो मेरी समस्त शक्तियों का मूल हैं किन्तु पर्वतराज के घर उत्पन्न होने से आप पूर्व भूल गयी हैं, अत: आप ज्ञान प्राप्त करें, तब देवी नें शिव से पहले ज्ञान प्राप्त किया जो आगम निगम बने, फिर आगमों निगमों से परिपूर्ण हो देवी को अपने वास्तविक स्वरूप का बोध हुआ, तब देवी सभी सिद्धियों को धारण किये परात्पर मंडल में विराजमान हुई,माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं, इनका वाहन सिंह है, ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं, इनके नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है, माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाता है, देवी की आराधना से भक्त को अणिमा , लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता , दूर श्रवण , परकाया प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है, यदि कोई अत्यंत कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर भी माँ की कृपा का पात्र बन सकता है, ऐसी देवी की महिमा तो शास्त्र भी नहीं बता सकते, बड़े-बड़े ऋषि मुनि भी देवी की अपार क्षमताओं के आगे नतमस्तक हैं, देवी को पूर्णावतार भी माना गया है, इनकी साधना से ही सभी प्रकार की सिद्धियाँ व शक्तियां साधक प्राप्त करता है, देवी महा महिमा के करण इनको सिद्धिदात्री पुकारा गया है परात्पर मंडल में स्थित सर्व सिद्धियों वाली महादेवी ही सिद्धिदात्री देवी हैं, महाशक्ति सिद्धिदात्री स्वयं योगमाया ही हैं जो सारी शक्तियों व सिद्धियों की मूल है, यह भी कथा आती है की शिव द्वारा देवी को को ज्ञान देने से जब देव पूर्ण हुई तब सिद्धिदात्री स्वरुप में प्रकट हुई, देवी के उपासक देवी से आशीष ले कर सभी सिद्धियाँ प्राप्त कर लेते हैं, देवी सिद्धिदात्री की भक्ति करने वाले भक्त की त्रिलोकी भर में जय-जयकार होती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए नवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के तेहरवें अध्याय का पाठ करना चाहिए पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए नौवें दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्री देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्री देव्यै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा मोतियों की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 990 022 500 707 210 880 009 321 690 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल या पीले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, सिद्धिदात्री देवी का श्रृंगार लाल व पीले वस्त्रों व आभूषणों से ही किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा प्रभात व संध्या अथवा रात्री को की जा सकती है, संध्या व रात्री की पूजा का समय देवी सिद्धिदात्री की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी संध्या या रात्री के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मन्त्र - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ॥ मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को रुद्राक्ष या सोने चाँदी से बने आभूषण माला आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में पूजा का सामान नारियल वस्त्र चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र के गुरुमंडल में देवी का ध्यान करने से साधक महासमाधी प्राप्त करता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, आठवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी,देवी से अणिमादी सिद्धियों की प्राप्ति होती है या कोई गुप्त इच्छा हो तो पूर्ण होती है, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ जां जातिस्वरूपिन्ये निशुम्भबधकारिनयै नम: (न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ या श्री: स्वयं सुकृतानाम भवनेश्वलक्ष्मी: पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:, श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नता: स्म परिपालय देवी विश्वं यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा नौवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी भी निकट के क्षेत्रीय शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज नौवें नवरात्र को नौ कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, नौवें नवरात्र को अपने गुरु से "पूर्णत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूर्णता और तृप्ति को अनुभव कर सकें व आनन्दमय शरीर की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, नौवें नवरात्र पर होने वाले हवन में खीर व पंचमेवा की आहुतियाँ देनी चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले नौवें नवरात्र का ब्रत साय ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों व मिठाइयों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल व पीले रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani
    0 Commentaires 0 Parts 357 Vue 0 Aperçu
  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार अष्टम नवरात्र की देवी का नाम महागौरी है, एक बार कैलाशाधिपति भगवान शिव से विवाह करने के लिए देवी पार्वती ने अत्यंत कठोर तप किया, कई सहस्त्र वर्षों तक दिन रात तपस्या करने से देवी अत्यंत कम्जूर क्षीण काय हो गयीं, देवी पार्वती की त्वचा का रंग बहुत काला पड़ गया, चमड़ी जगह-जगह से फट गयी, तब भगवान शिव ने उनको गंगा जल से दिव्य देह प्रदान की, तब देवी अत्यंत गौर वर्ण की अत्यंत सुन्दर बालिका बन गयीं, शास्त्रों में निहित महिमा के अनुसार देवी महागौरी की आयु केवल आठ वर्ष ही है, देवी बृषभ बहन पर बैठी हुई हैं, चतुर्भुज रूप में बर अभय मुद्रा के साथ ही एक हाथ में त्रिशूल धारण किये दूसरे में डमरू धरे हुये देवी अत्यंत श्वेत वस्त्रों व आभूषणों से प्रकाशित हो रही हैं, देवी महागौरी की उपासना करने वाला साधक कभी बृद्ध नहीं होता, साधना व अध्यातम धर्म के पथ पर चलने वाले तपस्वी साधकों को अवश्य देवी महागौरी की उपासना करनी चाहिए, देवी की पूजा से अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, सकल मनोकामना पूरी करने वाली देवी बहुत ही शांत एवं शीघ्र प्रसन्न हो कर अपने भक्त को वर देती हैं,देवी पूजा कर शिव की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है, देवी महागौरी की पूजा से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं नौ देवियों के महानवरात्र
    शिव ने महातपस्विनी पार्वती को गंगाजल से जो दिव्य रूप प्रदान किया वही देवी महागौरी हैं, महाशक्ति महागौरी स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि की मूल शक्ति व जननी है, यह भी कथा आती है की शिव द्वारा देवी को काली पुकारे जाने पर देवी ने गौर वर्ण धारण कर शिव को प्रसन्न किया था अत: देवी को महागौरी कहा गया है, देवी के उपासक भी देवी सामान ही अत्यंत सुदर देह प्राप्त करते हैं व कभी बूढ़े नहीं होते, देवी महागौरी की भक्ति करने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देवी अद्भुत कृपा व प्रेम बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए आठवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के ग्यारवें व बारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,

    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
    (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)

    देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं प्रज्वल-प्रज्वल महागौरी देव्यै नम:

    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें

    जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं प्रज्वल-प्रज्वल महागौरी देव्यै स्वाहा:



    माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
    यन्त्र-
    587 923 398
    597 335 132
    577 834 989

    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को सफेद रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, गौरी देवी का श्रृंगार सफेद वस्त्रों व आभूषणों से ही किया जाता है, सफेद रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा प्रभात को ही की जा सकती है, सुबह की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी सुबह के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व इत्र सुगंधी अर्पित कर गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए व अष्टम नवरात्र को ध्वजा पर फूल माला अर्पित करनी चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं प्रज्वल-प्रज्वल

    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को सफेद चन्दन से बने आभूषण माला तिलक आदि अर्पित करना चाहिए
    मंदिर में फल व सफेद वस्त्र चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र के ब्रह्मरंध्र में देवी का ध्यान करने से साधक पूर्णप्रग्य होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में तुलसी का रस व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए

    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै

    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, आठवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा तीर्थ का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी,देवी से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है सभी तरह की समस्याओं का अंत होता है या कोई गुप्त इच्छा हो तो पूर्ण होती है, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिन्ये रक्बीजबधकारिनयै नम:
    (न आधा लगेगा)

    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें

    ॐ त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
    विश्वस्य बीजं परमासि माया
    सम्मोहितं देवी समस्तमेतत
    त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:

    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा आठवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी पर्वतीय शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज आठवें नवरात्र को आठ कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ वस्त्र आभूषण आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, आठवें नवरात्र को अपने गुरु से "कालातीत दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन कीउच्चता और नित्यता को अनुभव कर सकें व विज्ञानमय शरीर की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, आठवें नवरात्र पर होने वाले हवन में मुनक्का व सफेद तिल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले आठवें नवरात्र का ब्रत साय ठीक सात सत्तावन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को हल्के रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार अष्टम नवरात्र की देवी का नाम महागौरी है, एक बार कैलाशाधिपति भगवान शिव से विवाह करने के लिए देवी पार्वती ने अत्यंत कठोर तप किया, कई सहस्त्र वर्षों तक दिन रात तपस्या करने से देवी अत्यंत कम्जूर क्षीण काय हो गयीं, देवी पार्वती की त्वचा का रंग बहुत काला पड़ गया, चमड़ी जगह-जगह से फट गयी, तब भगवान शिव ने उनको गंगा जल से दिव्य देह प्रदान की, तब देवी अत्यंत गौर वर्ण की अत्यंत सुन्दर बालिका बन गयीं, शास्त्रों में निहित महिमा के अनुसार देवी महागौरी की आयु केवल आठ वर्ष ही है, देवी बृषभ बहन पर बैठी हुई हैं, चतुर्भुज रूप में बर अभय मुद्रा के साथ ही एक हाथ में त्रिशूल धारण किये दूसरे में डमरू धरे हुये देवी अत्यंत श्वेत वस्त्रों व आभूषणों से प्रकाशित हो रही हैं, देवी महागौरी की उपासना करने वाला साधक कभी बृद्ध नहीं होता, साधना व अध्यातम धर्म के पथ पर चलने वाले तपस्वी साधकों को अवश्य देवी महागौरी की उपासना करनी चाहिए, देवी की पूजा से अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, सकल मनोकामना पूरी करने वाली देवी बहुत ही शांत एवं शीघ्र प्रसन्न हो कर अपने भक्त को वर देती हैं,देवी पूजा कर शिव की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है, देवी महागौरी की पूजा से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं नौ देवियों के महानवरात्र शिव ने महातपस्विनी पार्वती को गंगाजल से जो दिव्य रूप प्रदान किया वही देवी महागौरी हैं, महाशक्ति महागौरी स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि की मूल शक्ति व जननी है, यह भी कथा आती है की शिव द्वारा देवी को काली पुकारे जाने पर देवी ने गौर वर्ण धारण कर शिव को प्रसन्न किया था अत: देवी को महागौरी कहा गया है, देवी के उपासक भी देवी सामान ही अत्यंत सुदर देह प्राप्त करते हैं व कभी बूढ़े नहीं होते, देवी महागौरी की भक्ति करने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देवी अद्भुत कृपा व प्रेम बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए आठवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के ग्यारवें व बारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें, महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं प्रज्वल-प्रज्वल महागौरी देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं प्रज्वल-प्रज्वल महागौरी देव्यै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 587 923 398 597 335 132 577 834 989 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को सफेद रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, गौरी देवी का श्रृंगार सफेद वस्त्रों व आभूषणों से ही किया जाता है, सफेद रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा प्रभात को ही की जा सकती है, सुबह की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी सुबह के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व इत्र सुगंधी अर्पित कर गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए व अष्टम नवरात्र को ध्वजा पर फूल माला अर्पित करनी चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं प्रज्वल-प्रज्वल मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को सफेद चन्दन से बने आभूषण माला तिलक आदि अर्पित करना चाहिए मंदिर में फल व सफेद वस्त्र चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र के ब्रह्मरंध्र में देवी का ध्यान करने से साधक पूर्णप्रग्य होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में तुलसी का रस व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, आठवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा तीर्थ का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी,देवी से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है सभी तरह की समस्याओं का अंत होता है या कोई गुप्त इच्छा हो तो पूर्ण होती है, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिन्ये रक्बीजबधकारिनयै नम: (न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया सम्मोहितं देवी समस्तमेतत त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु: यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा आठवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी पर्वतीय शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज आठवें नवरात्र को आठ कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ वस्त्र आभूषण आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, आठवें नवरात्र को अपने गुरु से "कालातीत दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन कीउच्चता और नित्यता को अनुभव कर सकें व विज्ञानमय शरीर की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, आठवें नवरात्र पर होने वाले हवन में मुनक्का व सफेद तिल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले आठवें नवरात्र का ब्रत साय ठीक सात सत्तावन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को हल्के रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri
    Like
    1
    0 Commentaires 0 Parts 551 Vue 0 Aperçu
  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार सप्तम नवरात्र की देवी का नाम कालरात्रि है, शिव ने सृष्टि को बनाया शिव ही इसे नष्ट करेंगे, शिव की इस महालीला में जो सबसे गुप्त पहलू है वो है कालरात्रि, प्राचीन कथा के अनुसार एक बार शिव नें ये जानना चाहा कि वे कितने शक्तिशाली हैं, सबसे पहले उनहोंने सात्विक शक्ति को पुकारा तो योगमाया हाथ जोड़ सम्मुख आ गयी और उनहोंने शिव को सारी शक्तियों के बारे में बताया, फिर शिव ने राजसी शक्ति को पुकारा तो माँ पार्वती देवी दुर्गा व दस महाविद्याओं के साथ उपस्थित हो गयीं, देवी ने शिव को सबकुछ बताया जो जानना चाहते थे, तब शिव ने तामसी और सृष्टि कि आखिरी शक्ति को बुलाया तो कालरात्रि प्रकट हुई, काल रात्रि से जब शिव ने प्रश्न किया तो कालरात्रि ने अपनी शक्ति से दिखाया कि वो ही सृष्टि कि सबसे बड़ी शक्ति हैं गुप्त रूप से वही योगमाया, दुर्गा पार्वती है, एक क्षण में देवी ने कई सृष्टियों को निगल लिया, कई नीच राक्षस पल बर में मिट गए, देवी के क्रोध से नक्षत्र मंडल विचलित हो गया, सूर्य का तेज मलीन हो गया, तीनो लोक भस्म होने लगे, तब शिव नें देवी को शांत होने के लिए कहा लेकिन देवी शांत नहीं हुई, उनके शरीर से 64 कृत्याएं पैदा हुई, स्वर्ग सहित, विष्णु लोक, ब्रम्ह्म लोक, शिवलोक व पृथ्वी मंडल कांपने लगे, 64 कृत्याओं ने महाविनाश शुरू कर दिया, सर्वत्र आकाश से बिजलियाँ गिरने लगी तब समस्त ऋषि मुनि ब्रह्मा-विष्णु देवगण कैलाश जा पहुंचे शिव के नेत्रित्व में सबने देवी की स्तुति करते हुये शांत होने की प्रार्थना, तब देवी ने कृत्याओं को भीतर ही समां लिया, सभी को उपस्थित देख देवी ने अभय प्रदान किया, सबसे शक्तिशालिनी देवी ही कालरात्रि हैं जो महाकाली का ही स्वरुप हैं, जो भी साधक भक्त देवी की पूजा करता है पूरी सृष्टि में उसे अभय होता है, देवी भक्त पर कोई अस्त्र शास्त्र मंत्र तंत्र कृत्या औषधि विष कार्य नहीं करता, देवी की पूजा से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं

    शिव ने सबसे बड़ी शक्ति को को जानने के लिए जिस देवी को उत्पन्न किया वही कालरात्रि हैं, महाशक्ति कालरात्रि स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि का आदि थी अब अंत है, उतपन्न करने तथा महाविनाश की शक्ति होने से प्रलय काल की भाँती देवी को कालरात्रि कहा गया है, देवी के उपासक के जीवन में कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए सातवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का पाठ करना चाहिए
    पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,

    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
    (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)

    देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है,

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै नम:

    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें,

    जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै स्वाहा:

    माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा हकीक की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ

    यन्त्र-
    090 010 070
    080 030 020
    040 050 060

    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को काले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कालरात्रि देवी का श्रृंगार काले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा रात्री को ही की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी शाम के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक व चौमुखा दिया जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल

    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को नारियल व उर्द की ड़ाल काली मिर्च आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठी रोटी का भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र में देवी का ध्यान करने से सातवां चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में अदरक का रस , लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,

    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै

    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, सातवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे शत्रुओं कि समस्या हो या बार बार धन हानि होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं , देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ तृम तृषास्वरूपिन्ये चंडमुण्डबधकारिनयै नम:(न आधा लगेगा)
    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें
    व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
    ॐ सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोकस्याखिलेश्वरी
    एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम

    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा सातवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी कालिका शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज सातवें नवरात्र को सात कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ भोजन पात्र जैसे थाली गिलास आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, सातवें नवरात्र को अपने गुरु से "सह्स्त्रहार भेदन दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूरनता को अनुभव कर सकें व वैखरी वाणी की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, सातवें नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा व काली मिर्च की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले सातवें नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाबन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर व फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल पीले व चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल पीले व चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri #Parv
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार सप्तम नवरात्र की देवी का नाम कालरात्रि है, शिव ने सृष्टि को बनाया शिव ही इसे नष्ट करेंगे, शिव की इस महालीला में जो सबसे गुप्त पहलू है वो है कालरात्रि, प्राचीन कथा के अनुसार एक बार शिव नें ये जानना चाहा कि वे कितने शक्तिशाली हैं, सबसे पहले उनहोंने सात्विक शक्ति को पुकारा तो योगमाया हाथ जोड़ सम्मुख आ गयी और उनहोंने शिव को सारी शक्तियों के बारे में बताया, फिर शिव ने राजसी शक्ति को पुकारा तो माँ पार्वती देवी दुर्गा व दस महाविद्याओं के साथ उपस्थित हो गयीं, देवी ने शिव को सबकुछ बताया जो जानना चाहते थे, तब शिव ने तामसी और सृष्टि कि आखिरी शक्ति को बुलाया तो कालरात्रि प्रकट हुई, काल रात्रि से जब शिव ने प्रश्न किया तो कालरात्रि ने अपनी शक्ति से दिखाया कि वो ही सृष्टि कि सबसे बड़ी शक्ति हैं गुप्त रूप से वही योगमाया, दुर्गा पार्वती है, एक क्षण में देवी ने कई सृष्टियों को निगल लिया, कई नीच राक्षस पल बर में मिट गए, देवी के क्रोध से नक्षत्र मंडल विचलित हो गया, सूर्य का तेज मलीन हो गया, तीनो लोक भस्म होने लगे, तब शिव नें देवी को शांत होने के लिए कहा लेकिन देवी शांत नहीं हुई, उनके शरीर से 64 कृत्याएं पैदा हुई, स्वर्ग सहित, विष्णु लोक, ब्रम्ह्म लोक, शिवलोक व पृथ्वी मंडल कांपने लगे, 64 कृत्याओं ने महाविनाश शुरू कर दिया, सर्वत्र आकाश से बिजलियाँ गिरने लगी तब समस्त ऋषि मुनि ब्रह्मा-विष्णु देवगण कैलाश जा पहुंचे शिव के नेत्रित्व में सबने देवी की स्तुति करते हुये शांत होने की प्रार्थना, तब देवी ने कृत्याओं को भीतर ही समां लिया, सभी को उपस्थित देख देवी ने अभय प्रदान किया, सबसे शक्तिशालिनी देवी ही कालरात्रि हैं जो महाकाली का ही स्वरुप हैं, जो भी साधक भक्त देवी की पूजा करता है पूरी सृष्टि में उसे अभय होता है, देवी भक्त पर कोई अस्त्र शास्त्र मंत्र तंत्र कृत्या औषधि विष कार्य नहीं करता, देवी की पूजा से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं शिव ने सबसे बड़ी शक्ति को को जानने के लिए जिस देवी को उत्पन्न किया वही कालरात्रि हैं, महाशक्ति कालरात्रि स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि का आदि थी अब अंत है, उतपन्न करने तथा महाविनाश की शक्ति होने से प्रलय काल की भाँती देवी को कालरात्रि कहा गया है, देवी के उपासक के जीवन में कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए सातवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का पाठ करना चाहिए पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें, महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है, मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें, जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा हकीक की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 090 010 070 080 030 020 040 050 060 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को काले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कालरात्रि देवी का श्रृंगार काले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा रात्री को ही की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी शाम के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक व चौमुखा दिया जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को नारियल व उर्द की ड़ाल काली मिर्च आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठी रोटी का भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र में देवी का ध्यान करने से सातवां चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में अदरक का रस , लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए, चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, सातवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे शत्रुओं कि समस्या हो या बार बार धन हानि होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं , देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ तृम तृषास्वरूपिन्ये चंडमुण्डबधकारिनयै नम:(न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोकस्याखिलेश्वरी एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा सातवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी कालिका शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज सातवें नवरात्र को सात कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ भोजन पात्र जैसे थाली गिलास आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, सातवें नवरात्र को अपने गुरु से "सह्स्त्रहार भेदन दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूरनता को अनुभव कर सकें व वैखरी वाणी की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, सातवें नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा व काली मिर्च की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले सातवें नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाबन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर व फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल पीले व चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल पीले व चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri #Parv
    Like
    1
    0 Commentaires 0 Parts 689 Vue 0 Aperçu
  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार षष्टम नवरात्र की देवी का नाम कात्यायनी है, प्राचीन कथा के अनुसार प्राचीन काल में कत नामक एक बड़े ही प्रसिद्ध महर्षि हुये, उनके यहाँ एक तेजस्वी बालक हुआ जो बड़ा हो कर ऋषि कात्य के नाम से महान ज्ञानी के रूप में प्रसिद्द हुआ, इन्हीं कात्य ऋषि के गोत्र में अत्यंत तेजस्वी एवं दिव्य महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे, जिनके नाम पर देवी का नाम पड़ा, इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन और घोर तपस्या की, देवी को प्रसन्न कर उन्होंने देवी से वर माँगा कि माँ भगवती स्वयं उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें, प्रसन्न हो कर देवी माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली तथा कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश एक बालिका को देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया, ये देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न हुई व सर्वप्रथम महर्षि कात्यायन ने इनकी पूजा की, इसी कारण ये देवी कात्यायनी कहलाईं, इसी देवी ने तेज से परिपूर्ण हो कर बवानी का स्वरुप लिया महिषासुर का वध किया था, देवी कात्यायिनी को बहुत ही शक्तिशाली देवी के रूप में माना जाता है, यही देवी अनेक प्रकार कि लीलाएं रचती रहती हैं, देवी कि भक्ति पूजा से रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं, जन्म-जन्मांतर के पापों को नष्ट करने के लिए माँ की रति भर कृपा दृष्टि ही काफी है

    महर्षि कात्यायन जी के आश्रम में कन्या रूप में प्रकट होने के कारण ही देवी को कात्यायनी कहा जाता है, महाशक्ति कात्यायनी योगमाया का ही अंश हैं जो महिषासुर के बध के लिए उत्पन्न हुई थीं, महारिषि कात्यायन को वर देने के कारण भी देवी को कात्यायनी कहा जाता है, देवी के उपासक के जीवन में कभी रोग, शोक, संताप, भय आदि नहीं आते, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए छठे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के आठवें एवं नौवें अध्याय का पाठ करना चाहिए , पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें

    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
    (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)

    देवी कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-ज्वालय कात्यायनी देव्यै नम:

    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-ज्वालय कात्यायनी देव्यै स्वाहा:


    माता के मंत्र का जाप करने के लिए मोतियों की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
    यन्त्र-
    668 967 290
    081 777 886
    769 180 998

    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को चमीले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कात्यायनी देवी का श्रृंगार चमकीले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा सुबह व शाम की जा सकती है, सुबह की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी प्रात: मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें,
    पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए

    मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-जवालय

    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को मीठी रोटी व घी से बनी हुई रोटी का भोग आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठा भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, आज्ञा चक्र में देवी का ध्यान करने से छठा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर, इलाइची,लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए

    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै

    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, छठे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा किसी झरने का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे धन की समस्या हो,ग्रह बाधा, या रोग शोक की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ शं शक्तिस्वरूपिन्ये धूम्रलोचन घातिनयै नम:
    (न आधा लगेगा)

    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें

    ॐ रोगानशेषनपहंसी तुष्टा
    रुष्टा तु कामान सकलानभिष्टआन
    त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
    त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति

    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा छठे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी मैदानी शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज छठे नवरात्र को छ: कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ आइना तथा कंघी देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, छठे नवरात्र को अपने गुरु से "ब्राह्मी दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्णता प्राप्त कर सकें व सिद्धि की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, छठे नवरात्र पर होने वाले हवन में शहद व गुगुल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले छठे नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाईस साय खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर मिठाइयों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार षष्टम नवरात्र की देवी का नाम कात्यायनी है, प्राचीन कथा के अनुसार प्राचीन काल में कत नामक एक बड़े ही प्रसिद्ध महर्षि हुये, उनके यहाँ एक तेजस्वी बालक हुआ जो बड़ा हो कर ऋषि कात्य के नाम से महान ज्ञानी के रूप में प्रसिद्द हुआ, इन्हीं कात्य ऋषि के गोत्र में अत्यंत तेजस्वी एवं दिव्य महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे, जिनके नाम पर देवी का नाम पड़ा, इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन और घोर तपस्या की, देवी को प्रसन्न कर उन्होंने देवी से वर माँगा कि माँ भगवती स्वयं उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें, प्रसन्न हो कर देवी माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली तथा कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश एक बालिका को देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया, ये देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न हुई व सर्वप्रथम महर्षि कात्यायन ने इनकी पूजा की, इसी कारण ये देवी कात्यायनी कहलाईं, इसी देवी ने तेज से परिपूर्ण हो कर बवानी का स्वरुप लिया महिषासुर का वध किया था, देवी कात्यायिनी को बहुत ही शक्तिशाली देवी के रूप में माना जाता है, यही देवी अनेक प्रकार कि लीलाएं रचती रहती हैं, देवी कि भक्ति पूजा से रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं, जन्म-जन्मांतर के पापों को नष्ट करने के लिए माँ की रति भर कृपा दृष्टि ही काफी है महर्षि कात्यायन जी के आश्रम में कन्या रूप में प्रकट होने के कारण ही देवी को कात्यायनी कहा जाता है, महाशक्ति कात्यायनी योगमाया का ही अंश हैं जो महिषासुर के बध के लिए उत्पन्न हुई थीं, महारिषि कात्यायन को वर देने के कारण भी देवी को कात्यायनी कहा जाता है, देवी के उपासक के जीवन में कभी रोग, शोक, संताप, भय आदि नहीं आते, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए छठे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के आठवें एवं नौवें अध्याय का पाठ करना चाहिए , पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-ज्वालय कात्यायनी देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-ज्वालय कात्यायनी देव्यै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए मोतियों की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 668 967 290 081 777 886 769 180 998 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को चमीले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कात्यायनी देवी का श्रृंगार चमकीले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा सुबह व शाम की जा सकती है, सुबह की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी प्रात: मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-जवालय मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को मीठी रोटी व घी से बनी हुई रोटी का भोग आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठा भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, आज्ञा चक्र में देवी का ध्यान करने से छठा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर, इलाइची,लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, छठे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा किसी झरने का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे धन की समस्या हो,ग्रह बाधा, या रोग शोक की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ शं शक्तिस्वरूपिन्ये धूम्रलोचन घातिनयै नम: (न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ रोगानशेषनपहंसी तुष्टा रुष्टा तु कामान सकलानभिष्टआन त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा छठे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी मैदानी शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज छठे नवरात्र को छ: कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ आइना तथा कंघी देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, छठे नवरात्र को अपने गुरु से "ब्राह्मी दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्णता प्राप्त कर सकें व सिद्धि की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, छठे नवरात्र पर होने वाले हवन में शहद व गुगुल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले छठे नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाईस साय खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर मिठाइयों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani
    Like
    Love
    2
    0 Commentaires 0 Parts 631 Vue 0 Aperçu
  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार पंचम नवरात्र की देवी का नाम स्कंदमाता है, प्राचीन कथा के अनुसार एक बाद देवराज इन्द्र ने बालक कार्तिकेय को कहा की देवी गौरी तो अपने प्रिय पुत्र गणेश को ही अधिक चाहती है, तुम्हारी और कभी दयां नहीं देती, क्योंकि तुम केवल शिव के पुत्र हो व तुमको तो देवी कृत्तिकाओं ने ही पाला है, इस पर कार्तिकेय मुस्कुराए और बोले जो माता संसार का लालन पालन करती है, जिसकी कृपा से भाई गणेश को देवताओं में अग्रणी बनाया, वो क्या मेरी माता होते हुये भेद-भाव करेगी, तुम्हारे मन में जो संदेह पैदा हुआ है उसकी आधार भी मेरी माता ही हैं, मैं उनका पुत्र तो हूँ ही लेकिन उनका भक्त भी हूँ, हे इन्द्र जग का कल्याण करने वाली मेरी माता निसंदेह भक्तबत्सल भवानी है, ऐसे बचन सुन कर ममतामयी देवी सकन्दमाता प्रकट हुई और उनहोंने अपनी गोद में कार्तिकेय को बिठा कर दिव्य तेजोमय रूप धार लिया, जिसे देखते ही देवराज इन्द्र क्षमा याचना करने लगे, सभी देवगणों सहित इंद्र ने माता की स्तुति की, माता चतुर्भुजा रूप में अत्यंत ममता से भरी हुई थी, दोनों हाथों में पुष्प एक हाथ से वर देती व कार्तिकेय को संभाले हुये देवी तब सिंह पर आरूढ़ थी, देवी का कमल का आसन था, तब देवताओं के द्वारा स्तुति किये जाने पर देवी बोली मैं ही संसार की जननी हूँ मेरे होते भला कोई कैसे अनाथ हो सकता है? मेरा प्रेम सदा अपने पुत्रों व भक्तों के बरसता रहता है, सृष्टि में मैं ही ममता हूँ, ऐसी ममतामयी माँ की पूजा से भला भक्त को किस चीज की चिंता हो सकती है? बस माँ को पुकारने भर की देर है, वो तो सदा प्रेम लुटती आई है, भगवान् कार्तिकेय जी के कारण उतपन्न हुई देवी ही स्कंदमाता है , महाशक्ति स्कंदमाता पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को माँ के रूप में ममत्व और प्रेम प्रदान करती हैं, भगवान् कार्तिकेय का लालन पालन करने के कारण ही द्वि को स्कंदमाता कहा जाता है, देवी के उपासक जीवन में कभी अकेले नहीं होते ममतामयी स्कंदमाता सदा उनके साथ रह कर उनकी रक्षा करती है, संकट की स्थित में पुकारे पर देवी सहायता व कृपा करने में बिलम्ब नहीं करती, थोड़ी सी प्रार्थना व स्तुति से ही प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए पांचवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए , पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें , फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है , यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए पांचवें दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए कमलगट्टे की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 929 345 224 677 632 891 654 756 879 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, स्कंदमाता देवी का श्रृंगार लाल रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को कुमकुम,केसर, लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा सुबह व शाम की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है , मंत्र जाप के लिए भी संध्या व प्रात: मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व कलश को जनेऊ जरूर अर्पित करना चाहिए, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को गिरने से बचाना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को हलवे का प्रसाद तथा फलाहार या मीठा भोग आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मिठाई व फल चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है , विशुद्ध चक्र में देवी का ध्यान करने से पांचवा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं ,प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पांचवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल लाना या अर्पित करना बहुत बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे अकेलेपन की समस्या हो या न्याय न मिल पाने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ छां छायास्वरूपिन्ये दूतसंवादिनयै नम:(न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते भयेभ्यस्त्राही नो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा पांचवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो इच्छानुसार किसी भी शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज पांचवें नवरात्र को पांच कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ बटुआ धन कोष गुल्लक आदि भेंट करना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें पांचवें नवरात्र को अपने गुरु से "कालज्ञान दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप विविध काल और सृष्टि चक्र को जान सकें,समत्व की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, पांचवें नवरात्र पर होने वाले हवन में जौ की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व देसी घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले पांचवें नवरात्र का ब्रत ठीक सात पचपन पर सायं खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल अथवा मेरून रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और रक्त वस्त्र धारण कर सकते हैं , भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार पंचम नवरात्र की देवी का नाम स्कंदमाता है, प्राचीन कथा के अनुसार एक बाद देवराज इन्द्र ने बालक कार्तिकेय को कहा की देवी गौरी तो अपने प्रिय पुत्र गणेश को ही अधिक चाहती है, तुम्हारी और कभी दयां नहीं देती, क्योंकि तुम केवल शिव के पुत्र हो व तुमको तो देवी कृत्तिकाओं ने ही पाला है, इस पर कार्तिकेय मुस्कुराए और बोले जो माता संसार का लालन पालन करती है, जिसकी कृपा से भाई गणेश को देवताओं में अग्रणी बनाया, वो क्या मेरी माता होते हुये भेद-भाव करेगी, तुम्हारे मन में जो संदेह पैदा हुआ है उसकी आधार भी मेरी माता ही हैं, मैं उनका पुत्र तो हूँ ही लेकिन उनका भक्त भी हूँ, हे इन्द्र जग का कल्याण करने वाली मेरी माता निसंदेह भक्तबत्सल भवानी है, ऐसे बचन सुन कर ममतामयी देवी सकन्दमाता प्रकट हुई और उनहोंने अपनी गोद में कार्तिकेय को बिठा कर दिव्य तेजोमय रूप धार लिया, जिसे देखते ही देवराज इन्द्र क्षमा याचना करने लगे, सभी देवगणों सहित इंद्र ने माता की स्तुति की, माता चतुर्भुजा रूप में अत्यंत ममता से भरी हुई थी, दोनों हाथों में पुष्प एक हाथ से वर देती व कार्तिकेय को संभाले हुये देवी तब सिंह पर आरूढ़ थी, देवी का कमल का आसन था, तब देवताओं के द्वारा स्तुति किये जाने पर देवी बोली मैं ही संसार की जननी हूँ मेरे होते भला कोई कैसे अनाथ हो सकता है? मेरा प्रेम सदा अपने पुत्रों व भक्तों के बरसता रहता है, सृष्टि में मैं ही ममता हूँ, ऐसी ममतामयी माँ की पूजा से भला भक्त को किस चीज की चिंता हो सकती है? बस माँ को पुकारने भर की देर है, वो तो सदा प्रेम लुटती आई है, भगवान् कार्तिकेय जी के कारण उतपन्न हुई देवी ही स्कंदमाता है , महाशक्ति स्कंदमाता पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को माँ के रूप में ममत्व और प्रेम प्रदान करती हैं, भगवान् कार्तिकेय का लालन पालन करने के कारण ही द्वि को स्कंदमाता कहा जाता है, देवी के उपासक जीवन में कभी अकेले नहीं होते ममतामयी स्कंदमाता सदा उनके साथ रह कर उनकी रक्षा करती है, संकट की स्थित में पुकारे पर देवी सहायता व कृपा करने में बिलम्ब नहीं करती, थोड़ी सी प्रार्थना व स्तुति से ही प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए पांचवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए , पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें , फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है , यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए पांचवें दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए कमलगट्टे की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 929 345 224 677 632 891 654 756 879 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, स्कंदमाता देवी का श्रृंगार लाल रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को कुमकुम,केसर, लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा सुबह व शाम की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है , मंत्र जाप के लिए भी संध्या व प्रात: मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व कलश को जनेऊ जरूर अर्पित करना चाहिए, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को गिरने से बचाना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को हलवे का प्रसाद तथा फलाहार या मीठा भोग आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मिठाई व फल चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है , विशुद्ध चक्र में देवी का ध्यान करने से पांचवा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं ,प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पांचवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल लाना या अर्पित करना बहुत बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे अकेलेपन की समस्या हो या न्याय न मिल पाने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ छां छायास्वरूपिन्ये दूतसंवादिनयै नम:(न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते भयेभ्यस्त्राही नो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा पांचवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो इच्छानुसार किसी भी शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज पांचवें नवरात्र को पांच कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ बटुआ धन कोष गुल्लक आदि भेंट करना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें पांचवें नवरात्र को अपने गुरु से "कालज्ञान दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप विविध काल और सृष्टि चक्र को जान सकें,समत्व की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, पांचवें नवरात्र पर होने वाले हवन में जौ की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व देसी घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले पांचवें नवरात्र का ब्रत ठीक सात पचपन पर सायं खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल अथवा मेरून रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और रक्त वस्त्र धारण कर सकते हैं , भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani
    Like
    Love
    3
    0 Commentaires 0 Parts 806 Vue 1 Aperçu
  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार चतुर्थ नवरात्र की देवी का नाम कूष्मांडा देवी है, प्राचीन कथा के अनुसार जब ये ब्रह्माण्ड बना ही नहीं था, तब माँ योगमाया ने सृष्टि की उत्त्पति के लिए ब्रह्मा जी को ज्ञान दिया, किन्तु ब्रह्मा जी तो मन में कामना करते की ऐसी सृष्टि पैदा हो लेकिन उसे पूरा कैसे किया जाए तो योगमाया से ब्रह्मा जी ने सहायता मांगी,देवी को स्तुति से प्रसन्न कर ब्रह्मा जी को देवी से सृष्टि निर्माण की कला प्राप्त हुई, तब देवी ने सबसे पहले अंड अर्थात ब्रह्माण्ड पैदा किया, तथा सृष्टि में गर्भ के अतिरिक्त अण्डों से जीवन पैदा करने की शक्ति भी ब्रह्मा जी को दी, स्वयं भी देवी करोड़ों सूर्य के सामान तेजस्वी स्वरुप में, ब्रहमां में सूर्य मंडल के भीतर स्थित रहती हैं, ऐसी सामर्थ्य देवी के अतिरिक्त किसी और में नहीं है, देवी आठ भुजाओं वाली हैं, जिनमें कमल पुष्प, धनुष, तीर, कमंडल, चक्र, गदा,माला तथा अमृत कलश है धारण किये हुये हैं व सिंह के आसन पर सवार हैं, देवी साधक को अमरत्व का वरदान देने में समर्थ हैं, इच्छा मृत्यु का वर देने वाली देवी, साधक के सब दुखों को हरने में क्षण मात्र भी देर नहीं करती, देवी भक्ति, आयु, यश, बल, आरोग्य देने में जरा भी बिलम्ब नहीं करती, देवी पारलौकिक विद्याओं की जननी है, जीवन को धर्म एवं कृपा से भर देने में सामर्थ है

    ब्रह्माण्ड को पैदा करने के कारण देवी का नाम पड़ा कूष्मांडा, महाशक्ति कूष्मांडा योगमाया का दिव्य तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को पैदा करने के लिए उत्पन्न हुआ, संसार में अण्डों से जीवन की उत्त्पत्ति कराने की शक्ति ब्रह्मा जी को देने के कारण भी देवी को कूष्मांडा कहा जाता है, देवी के उपासक अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं तथा इछामृतु का वर देने वाली यही देवी हैं, देवी भक्ति, आयु, यश, बल, आरोग्य देने में जरा भी बिलम्ब नहीं करती, देवी को प्रसन्न करने के लिए चौथे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के पांचवें व छठे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
    (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)

    देवी कूष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है

    मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै नम:

    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें

    जैसे मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै स्वाहा:

    माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ

    यन्त्र-
    775 732 786
    151 181 102
    762 723 785


    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को भगवे रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार भगवे रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को केसर, लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा कभी भी की जा सकती है, रात्री की पूजा का देवी कूष्मांडा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है
    मंत्र जाप के लिए भी संध्या व रात्री मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक बड़ा घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व कलश को लाल कपडे से ढक कर रखें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए

    मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं

    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को भगवे वस्त्र, रुद्राक्ष माला तथा गेंदे के फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए
    मंदिर में भगवे रंग की ध्वजा चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, अनाहत चक्र में देवी का ध्यान करने से चौथा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में कपूर व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए

    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै

    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, चौथे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और दो अन्य नदियों का जल लाना बहुत बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे संतान प्राप्ति की समस्या हो या विदेश यात्रा की, या पद्दोंन्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ क्षूं क्षुधास्वरूपिन्ये देव बन्दितायै नम:

    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें

    ॐ शरणागतदीनार्त परित्राणपरायणे
    सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणी नमोस्तुते

    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा चौथे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी गुफा वाले शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज चौथे नवरात्र को चार कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ आभूषण देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, चौथे नवरात्र को अपने गुरु से "ब्रहमांड दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप देवत्व प्राप्त कर लेते हैं व ब्रह्म विद्या की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, चौथे नवरात्र पर होने वाले हवन में काले तिलों की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले चौथे नवरात्र का ब्रत ठीक सात पंद्रह बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर का प्रसाद बांटना चाहिए
    आज सुहागिन स्त्रियों को भगवे अथवा पीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और भगवे या पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार चतुर्थ नवरात्र की देवी का नाम कूष्मांडा देवी है, प्राचीन कथा के अनुसार जब ये ब्रह्माण्ड बना ही नहीं था, तब माँ योगमाया ने सृष्टि की उत्त्पति के लिए ब्रह्मा जी को ज्ञान दिया, किन्तु ब्रह्मा जी तो मन में कामना करते की ऐसी सृष्टि पैदा हो लेकिन उसे पूरा कैसे किया जाए तो योगमाया से ब्रह्मा जी ने सहायता मांगी,देवी को स्तुति से प्रसन्न कर ब्रह्मा जी को देवी से सृष्टि निर्माण की कला प्राप्त हुई, तब देवी ने सबसे पहले अंड अर्थात ब्रह्माण्ड पैदा किया, तथा सृष्टि में गर्भ के अतिरिक्त अण्डों से जीवन पैदा करने की शक्ति भी ब्रह्मा जी को दी, स्वयं भी देवी करोड़ों सूर्य के सामान तेजस्वी स्वरुप में, ब्रहमां में सूर्य मंडल के भीतर स्थित रहती हैं, ऐसी सामर्थ्य देवी के अतिरिक्त किसी और में नहीं है, देवी आठ भुजाओं वाली हैं, जिनमें कमल पुष्प, धनुष, तीर, कमंडल, चक्र, गदा,माला तथा अमृत कलश है धारण किये हुये हैं व सिंह के आसन पर सवार हैं, देवी साधक को अमरत्व का वरदान देने में समर्थ हैं, इच्छा मृत्यु का वर देने वाली देवी, साधक के सब दुखों को हरने में क्षण मात्र भी देर नहीं करती, देवी भक्ति, आयु, यश, बल, आरोग्य देने में जरा भी बिलम्ब नहीं करती, देवी पारलौकिक विद्याओं की जननी है, जीवन को धर्म एवं कृपा से भर देने में सामर्थ है ब्रह्माण्ड को पैदा करने के कारण देवी का नाम पड़ा कूष्मांडा, महाशक्ति कूष्मांडा योगमाया का दिव्य तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को पैदा करने के लिए उत्पन्न हुआ, संसार में अण्डों से जीवन की उत्त्पत्ति कराने की शक्ति ब्रह्मा जी को देने के कारण भी देवी को कूष्मांडा कहा जाता है, देवी के उपासक अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं तथा इछामृतु का वर देने वाली यही देवी हैं, देवी भक्ति, आयु, यश, बल, आरोग्य देने में जरा भी बिलम्ब नहीं करती, देवी को प्रसन्न करने के लिए चौथे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के पांचवें व छठे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी कूष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 775 732 786 151 181 102 762 723 785 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को भगवे रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार भगवे रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को केसर, लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा कभी भी की जा सकती है, रात्री की पूजा का देवी कूष्मांडा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है मंत्र जाप के लिए भी संध्या व रात्री मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक बड़ा घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व कलश को लाल कपडे से ढक कर रखें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को भगवे वस्त्र, रुद्राक्ष माला तथा गेंदे के फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए मंदिर में भगवे रंग की ध्वजा चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, अनाहत चक्र में देवी का ध्यान करने से चौथा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में कपूर व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, चौथे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और दो अन्य नदियों का जल लाना बहुत बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे संतान प्राप्ति की समस्या हो या विदेश यात्रा की, या पद्दोंन्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ क्षूं क्षुधास्वरूपिन्ये देव बन्दितायै नम: नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ शरणागतदीनार्त परित्राणपरायणे सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणी नमोस्तुते यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा चौथे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी गुफा वाले शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज चौथे नवरात्र को चार कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ आभूषण देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, चौथे नवरात्र को अपने गुरु से "ब्रहमांड दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप देवत्व प्राप्त कर लेते हैं व ब्रह्म विद्या की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, चौथे नवरात्र पर होने वाले हवन में काले तिलों की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले चौथे नवरात्र का ब्रत ठीक सात पंद्रह बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर का प्रसाद बांटना चाहिए आज सुहागिन स्त्रियों को भगवे अथवा पीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और भगवे या पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri
    Like
    Love
    2
    0 Commentaires 0 Parts 1KB Vue 0 Aperçu
  • वन्दे शिव परम्पराम्
    वन्दे कौल परम्पराम्
    वन्दे ईश परम्पराम्
    वन्दे सत्य परम्पराम्
    वन्दे नित्य परम्पराम्
    वन्दे अक्षर परम्पराम्
    वन्दे ज्ञान परम्पराम्
    ।।ॐ नमो कौलनाथाय ईशपुत्राय नम: त्वां चरणे अर्पणमस्तु।।
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #MahayogiSatyendraNath #SambhalaSamrajya
    वन्दे शिव परम्पराम् वन्दे कौल परम्पराम् वन्दे ईश परम्पराम् वन्दे सत्य परम्पराम् वन्दे नित्य परम्पराम् वन्दे अक्षर परम्पराम् वन्दे ज्ञान परम्पराम् ।।ॐ नमो कौलनाथाय ईशपुत्राय नम: त्वां चरणे अर्पणमस्तु।। #Ishaputra #KaulantakPeeth #MahayogiSatyendraNath #SambhalaSamrajya
    Love
    Like
    3
    0 Commentaires 0 Parts 988 Vue 0 Aperçu
  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार तृतीय नवरात्र की देवी का नाम चंद्रघंटा देवी है, निगम ग्रंथों में निहित कथा के अनुसार जब भगवान् शिव ने देवी को समस्त विद्ययों का ज्ञान प्रदान करना शुरू किया तो देवी उस ज्ञान का तप के लिए प्रयोग करने लगी, लगातार आगम निगमों का ज्ञान प्राप्त कर देवी महातेजस्विनी हो गयी व सभी कलाओं सहित तेज पुंज बन योगमाया के रूप में स्थित हो गयी, तब प्रसन्न हो कर शिव ने देवी को अपने साथ एकाकार कर अर्धनारीश्वर रूप धरा, उस समय देवी पार्वती जी को अपने वास्तविक स्वरुप का बोद्ध हुआ, तब शिव से अलग हो आकाश में देवी ने सिंह पर स्वर हो दस भुजाओं वाला एक अद्भुत रूप धारण किया, हाथों में कमल पुष्प धनुष त्रिशूल,गदा, तलवार सहित वर अभी मुद्रा धारण की, क्योंकि देवी तपस्विनी रूप में थी तो एक हाथ में माला और एक हाथ में उनहोंने कमंडल धारण कर लिया, सभी ऋषि मुनि देवता देवी के तेज को सः नहीं पा रहे थे तो भगवान शिव ने चन्द्रमा को देवी के शीर्ष स्थान पर बिराजने को कहा, जिससे उनका तेजस्वी स्वरूप अब और भी सुन्दर तथा शीतल हो गया, तब सभी देवताओं नें देवी की जय जयकार की तथा उनको चंद्रघंटा देवी के नाम से पुकारा,जो भी भक्त देवी के ऐसे दिव्य रूप की पूजा करता है, वो एक साथ संसार में भी तथा मुक्ति के मार्ग पर भी एक ही समय चल सकता है, भौतिक संसार में तो आगे बढ़ता ही है साथ अध्यात्म में भी शिखर पर रहता है, सभी विद्यार्थियों, साधको, भक्तों को ऐसी देवी के दर्शनों से महासिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, ऐसे व्यक्ति को अहंकार रहित ज्ञान प्राप्त होता है, देवी को पूजने वाले को सवयम देवता भी पूजते हैं

    आकाश मंडल में चन्द्रमा को अपने शीश पर धारण करने के कारण देवी का नाम पड़ा चंद्रघंटा, महाशक्ति चंद्रघंटा माँ पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सर्व कलाओं को धारण करने से उत्पन्न हुआ
    अपनी सभी कलाओं को अध्यात्म धर्म सहित धारण करने के कारण ही देवी को चंद्रघंटा कहा जाता है, देवी के उपासक एक साथ ही संसार में जीते हुये परम मुक्ति के मार्ग पर भी चल सकते है, जिस कारण देवी की बड़ी महिमा गई जाती है, देवी कृपा से ही भक्त को संसार के सभी सुख तथा मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए तीसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है
    यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,

    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
    (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)

    देवी चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है
    मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं चंद्रघंटा देव्यै नम:
    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
    जैसे मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं चंद्रघंटा देव्यै स्वाहा:
    माता के मंत्र का जाप करने के लिए रक्त चन्दन की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ

    यन्त्र-
    539 907 234
    227 876 191
    654 812 902

    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार लाल रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा केवल सायकाल को ही की जाती है, शाम की पूजा का चंद्रघंटा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी संध्या मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए

    मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं

    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को कमल पुष्प, रक्त चन्दन की माला तथा सफेद फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए,मंदिर में लाल रंग की चुनरी चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, मणिपुर चक्र में देवी का ध्यान करने से तृतीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,

    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै

    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, तीसरे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और बर्फ (हिमजल) का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए
    तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे घरेलु कलह से मुक्ति हो, विवाह नहीं हो पा रहा हो, प्रेम प्राप्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ रं रक्त स्वरूपिन्ये महिषासुर मर्दिन्ये नम:
    (न आधा लगेगा व न की जगह ण होगा )

    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें,

    ॐ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
    शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणि नमोस्तुते

    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा तीसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी नाड़ी के निकट स्थित शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज तीसरे नवरात्र को तीन कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ चूड़ियाँ व श्रृंगार प्रसाद देना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, तीसरे नवरात्र को अपने गुरु से "उज्जवल दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, तीसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में खीर से हवन करना चाहिए
    ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले तीसरे नवरात्र का ब्रत आठ बीस साय खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर हलवा पूरी का प्रसाद बांटना चाहिए,आज सुहागिन स्त्रियों को लाल वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और हल्के लाल रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri #Mantra #Tantra #Yantra
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार तृतीय नवरात्र की देवी का नाम चंद्रघंटा देवी है, निगम ग्रंथों में निहित कथा के अनुसार जब भगवान् शिव ने देवी को समस्त विद्ययों का ज्ञान प्रदान करना शुरू किया तो देवी उस ज्ञान का तप के लिए प्रयोग करने लगी, लगातार आगम निगमों का ज्ञान प्राप्त कर देवी महातेजस्विनी हो गयी व सभी कलाओं सहित तेज पुंज बन योगमाया के रूप में स्थित हो गयी, तब प्रसन्न हो कर शिव ने देवी को अपने साथ एकाकार कर अर्धनारीश्वर रूप धरा, उस समय देवी पार्वती जी को अपने वास्तविक स्वरुप का बोद्ध हुआ, तब शिव से अलग हो आकाश में देवी ने सिंह पर स्वर हो दस भुजाओं वाला एक अद्भुत रूप धारण किया, हाथों में कमल पुष्प धनुष त्रिशूल,गदा, तलवार सहित वर अभी मुद्रा धारण की, क्योंकि देवी तपस्विनी रूप में थी तो एक हाथ में माला और एक हाथ में उनहोंने कमंडल धारण कर लिया, सभी ऋषि मुनि देवता देवी के तेज को सः नहीं पा रहे थे तो भगवान शिव ने चन्द्रमा को देवी के शीर्ष स्थान पर बिराजने को कहा, जिससे उनका तेजस्वी स्वरूप अब और भी सुन्दर तथा शीतल हो गया, तब सभी देवताओं नें देवी की जय जयकार की तथा उनको चंद्रघंटा देवी के नाम से पुकारा,जो भी भक्त देवी के ऐसे दिव्य रूप की पूजा करता है, वो एक साथ संसार में भी तथा मुक्ति के मार्ग पर भी एक ही समय चल सकता है, भौतिक संसार में तो आगे बढ़ता ही है साथ अध्यात्म में भी शिखर पर रहता है, सभी विद्यार्थियों, साधको, भक्तों को ऐसी देवी के दर्शनों से महासिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, ऐसे व्यक्ति को अहंकार रहित ज्ञान प्राप्त होता है, देवी को पूजने वाले को सवयम देवता भी पूजते हैं आकाश मंडल में चन्द्रमा को अपने शीश पर धारण करने के कारण देवी का नाम पड़ा चंद्रघंटा, महाशक्ति चंद्रघंटा माँ पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सर्व कलाओं को धारण करने से उत्पन्न हुआ अपनी सभी कलाओं को अध्यात्म धर्म सहित धारण करने के कारण ही देवी को चंद्रघंटा कहा जाता है, देवी के उपासक एक साथ ही संसार में जीते हुये परम मुक्ति के मार्ग पर भी चल सकते है, जिस कारण देवी की बड़ी महिमा गई जाती है, देवी कृपा से ही भक्त को संसार के सभी सुख तथा मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए तीसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें, महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं चंद्रघंटा देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं चंद्रघंटा देव्यै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए रक्त चन्दन की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 539 907 234 227 876 191 654 812 902 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार लाल रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा केवल सायकाल को ही की जाती है, शाम की पूजा का चंद्रघंटा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी संध्या मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को कमल पुष्प, रक्त चन्दन की माला तथा सफेद फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए,मंदिर में लाल रंग की चुनरी चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, मणिपुर चक्र में देवी का ध्यान करने से तृतीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए, चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, तीसरे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और बर्फ (हिमजल) का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे घरेलु कलह से मुक्ति हो, विवाह नहीं हो पा रहा हो, प्रेम प्राप्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ रं रक्त स्वरूपिन्ये महिषासुर मर्दिन्ये नम: (न आधा लगेगा व न की जगह ण होगा ) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें, ॐ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणि नमोस्तुते यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा तीसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी नाड़ी के निकट स्थित शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज तीसरे नवरात्र को तीन कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ चूड़ियाँ व श्रृंगार प्रसाद देना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, तीसरे नवरात्र को अपने गुरु से "उज्जवल दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, तीसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में खीर से हवन करना चाहिए ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले तीसरे नवरात्र का ब्रत आठ बीस साय खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर हलवा पूरी का प्रसाद बांटना चाहिए,आज सुहागिन स्त्रियों को लाल वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और हल्के लाल रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri #Mantra #Tantra #Yantra
    Love
    1
    0 Commentaires 0 Parts 1KB Vue 0 Aperçu
  • मार्कण्डेय पुराण के अनुसार द्वितीय नवरात्र की देवी का नाम ब्रह्मचारिणी देवी है, ये ब्रह्मचारिणी देवी भी गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती ही हैं, एक समय की बात है कि देव ऋषि नारद पर्वतराज हिमालय के महल पहुंचे, जहाँ पर्वत राज हिमालय की प्रार्थना पर उनहोंने बालिका पार्वती की जन्म पत्रिका शोधी और उनका भाग्य बताते हुये कहा कि इस कन्या का विवाह तो त्रिलोकीनाथ भगवान शिव से होगा, ये सुन कर देवी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने कि इच्छा से कठोर तप करना शुरू कर दिया, देवी ने भोजन पानी त्याग दिया श्वेत वस्त्र धारण कर लिए, हाथों में कमंडल और माला ले कर, कठोर तपस्वियों जैसा जीवन जीने लगी, जैसे जैसे तप बढ़ता गया, तीनो लोकों में हा हा कार मच गया, इन्द्र की पदवी भी स्वर्ग में डोलने लगी, तब सभी देवताओं को जिज्ञासा हुई कि पृथ्वी पर कौन ऐसा तपस्वी है और वे उसे ढूडने हिमालय जा पहुंचे, जहाँ उनहोंने देवी पार्वती जी के दर्शन ब्रह्मचारिणी देवी के रूप में किये, जिनके दिव्य तेज से समस्त लोक प्रकाशित हो रहे थे, महाशक्ति के ऐसे रूप के दर्शन कर सभी पवित्र हो गए, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं व मुक्ति प्राप्त करते है, सभी आध्यात्मिक शक्तियों कि जननी भी ब्रह्मचारिणी देवी ही हैं,

    हिमालय पर कठोर तपस्या करने के कारण व तपस्या नियमों को पालने के कारने देवी का नाम पड़ा ब्रह्मचारिणी, महाशक्ति ब्रह्मचारिणी माँ पार्वती जी का तपस्वी स्वरुप का ही नाम है, कठोर सात्विक तपस्या से तीनों लोकों को प्रभावित करने के कारण भी देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं, देवी कृपा से ही मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय व तीसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,



    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)



    देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे दिन का प्रमुख मंत्र है

    मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै नम:

    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें

    जैसे मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै स्वाहा:



    माता के मात्र का जाप करने के लिए तुलसी की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ



    यन्त्र-

    777 298 307

    621 543 991

    931 053 777



    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को saphed रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार लाल किनारे वाले सफेद रंग के वस्त्रों से किया जाता है, सफेद या लाल रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को सफेद चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा केवल सुबह ही की जाती है, शाम की पूजा की अपेक्षा देवी ब्रह्मचारिणी की साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त का ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी ब्रह्म मुहूर्त या सुबह के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन किया होना चाहिए साथ ही मंत्र जाप को फलीभूत होने के लिए रेत में कलश के निकट गेहूं के जवारे उगायें, कलश में गंगाजल और पंचामृत भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करना चाहिए यदि पहले दिन कलश स्थापित किया है तो केवल कलश पूजा करें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए



    मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं



    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को श्वेत वस्त्र तुलसी माला तथा कुशा का आसन आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में कमंडल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, स्वाधिष्ठान चक्र में देवी का ध्यान करने से द्वितीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में दूध मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,



    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै



    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और कूएं का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए , आज सुहागिन स्त्रियों को भी अधिक श्रृंगारनहीं करना चाहिए, स्वयम भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे विद्या रोजगार की समस्या हो या याददाश्त कमजोर होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं

    देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ श्रीं बुद्धि स्वरूपिन्ये महिषासुर सैन्यनाशिनयै नम:(न आधा लगेगा)

    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें

    व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें

    ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भितिमशेषजन्तो:

    स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि

    दारिद्रयदुःखभयहारिणी का त्वदन्या

    सर्वोपकारकरणाय सदाआर्द्रचित्ता



    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा दूसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी सात्विक शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज दूसरे नवरात्र को दो कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ मोतियों या रक्तचंदन की माला देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, दूसरे नवरात्र को अपने गुरु से "सत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्ण आत्मिक, दैहिक, मानसिक पवित्रता की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, दूसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले दूसरे नवरात्र का ब्रत ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्या पराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर

    महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
    #Navaratri #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani
    मार्कण्डेय पुराण के अनुसार द्वितीय नवरात्र की देवी का नाम ब्रह्मचारिणी देवी है, ये ब्रह्मचारिणी देवी भी गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती ही हैं, एक समय की बात है कि देव ऋषि नारद पर्वतराज हिमालय के महल पहुंचे, जहाँ पर्वत राज हिमालय की प्रार्थना पर उनहोंने बालिका पार्वती की जन्म पत्रिका शोधी और उनका भाग्य बताते हुये कहा कि इस कन्या का विवाह तो त्रिलोकीनाथ भगवान शिव से होगा, ये सुन कर देवी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने कि इच्छा से कठोर तप करना शुरू कर दिया, देवी ने भोजन पानी त्याग दिया श्वेत वस्त्र धारण कर लिए, हाथों में कमंडल और माला ले कर, कठोर तपस्वियों जैसा जीवन जीने लगी, जैसे जैसे तप बढ़ता गया, तीनो लोकों में हा हा कार मच गया, इन्द्र की पदवी भी स्वर्ग में डोलने लगी, तब सभी देवताओं को जिज्ञासा हुई कि पृथ्वी पर कौन ऐसा तपस्वी है और वे उसे ढूडने हिमालय जा पहुंचे, जहाँ उनहोंने देवी पार्वती जी के दर्शन ब्रह्मचारिणी देवी के रूप में किये, जिनके दिव्य तेज से समस्त लोक प्रकाशित हो रहे थे, महाशक्ति के ऐसे रूप के दर्शन कर सभी पवित्र हो गए, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं व मुक्ति प्राप्त करते है, सभी आध्यात्मिक शक्तियों कि जननी भी ब्रह्मचारिणी देवी ही हैं, हिमालय पर कठोर तपस्या करने के कारण व तपस्या नियमों को पालने के कारने देवी का नाम पड़ा ब्रह्मचारिणी, महाशक्ति ब्रह्मचारिणी माँ पार्वती जी का तपस्वी स्वरुप का ही नाम है, कठोर सात्विक तपस्या से तीनों लोकों को प्रभावित करने के कारण भी देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं, देवी कृपा से ही मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय व तीसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें, महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै स्वाहा: माता के मात्र का जाप करने के लिए तुलसी की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 777 298 307 621 543 991 931 053 777 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को saphed रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार लाल किनारे वाले सफेद रंग के वस्त्रों से किया जाता है, सफेद या लाल रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को सफेद चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा केवल सुबह ही की जाती है, शाम की पूजा की अपेक्षा देवी ब्रह्मचारिणी की साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त का ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी ब्रह्म मुहूर्त या सुबह के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन किया होना चाहिए साथ ही मंत्र जाप को फलीभूत होने के लिए रेत में कलश के निकट गेहूं के जवारे उगायें, कलश में गंगाजल और पंचामृत भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करना चाहिए यदि पहले दिन कलश स्थापित किया है तो केवल कलश पूजा करें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को श्वेत वस्त्र तुलसी माला तथा कुशा का आसन आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में कमंडल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, स्वाधिष्ठान चक्र में देवी का ध्यान करने से द्वितीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में दूध मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए, चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और कूएं का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए , आज सुहागिन स्त्रियों को भी अधिक श्रृंगारनहीं करना चाहिए, स्वयम भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे विद्या रोजगार की समस्या हो या याददाश्त कमजोर होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ श्रीं बुद्धि स्वरूपिन्ये महिषासुर सैन्यनाशिनयै नम:(न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भितिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि दारिद्रयदुःखभयहारिणी का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाआर्द्रचित्ता यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा दूसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी सात्विक शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज दूसरे नवरात्र को दो कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ मोतियों या रक्तचंदन की माला देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, दूसरे नवरात्र को अपने गुरु से "सत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्ण आत्मिक, दैहिक, मानसिक पवित्रता की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, दूसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले दूसरे नवरात्र का ब्रत ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्या पराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज #Navaratri #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani
    Love
    3
    0 Commentaires 1 Parts 1KB Vue 0 Aperçu
Plus de résultats