• हताहत इंदौरी ने नरक से गजल भेजी है -

    यहां यमदूत बहुत पीट रहे हैं, जन्नत इसका नाम थोड़ी है... चित्रगुप्त हिसाब कर रहे हैं, किसी अल्लाह का निजाम थोड़ी है....

    ओसामा है, कसाब है और अफजल भी है यहां,
    यह कोई फरिश्तों का मुकाम थोड़ी है.......
    घूमते हैं हर तरफ़ लिजलिजे सूअर यहां, बहत्तर हूरों का जाम थोड़ी है.......

    भरे पड़े हैं तमाम भारत के गद्दार मेरे ही जैसे यहां,
    किसी मुल्क की शरीफ अवाम थोड़ी है.....

    मुल्क से गद्दारी पे सौ-सौ बार मुझको "लानत" है,
    उसी की सज़ा मिली है, देशभक्ति का इनाम थोड़ी है.......

    हताहत इन्दौरी
    Note - इनको सिर्फ 62 मिली है बाकी 10 नहीं मिल पाई।

    #RahatIndori #Nark #Gazal #Shayari #malechchh #islam #hooren #muslim #jehadi #malechchh
    हताहत इंदौरी ने नरक से गजल भेजी है - यहां यमदूत बहुत पीट रहे हैं, जन्नत इसका नाम थोड़ी है... चित्रगुप्त हिसाब कर रहे हैं, किसी अल्लाह का निजाम थोड़ी है.... ओसामा है, कसाब है और अफजल भी है यहां, यह कोई फरिश्तों का मुकाम थोड़ी है....... घूमते हैं हर तरफ़ लिजलिजे सूअर यहां, बहत्तर हूरों का जाम थोड़ी है....... भरे पड़े हैं तमाम भारत के गद्दार मेरे ही जैसे यहां, किसी मुल्क की शरीफ अवाम थोड़ी है..... मुल्क से गद्दारी पे सौ-सौ बार मुझको "लानत" है, उसी की सज़ा मिली है, देशभक्ति का इनाम थोड़ी है....... 😝 हताहत इन्दौरी ✍️ Note - इनको सिर्फ 62 मिली है बाकी 10 नहीं मिल पाई। #RahatIndori #Nark #Gazal #Shayari #malechchh #islam #hooren #muslim #jehadi #malechchh
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  • "मोहल्लों की तरह नदियों का नाम नहीं बदल पाए"

    #Rivers #hindu #scrolllinks #bharat
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  • केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर दो अलग-अलग पोस्ट में लिखा, "बिहारवासियों का एक-एक वोट भारत की सुरक्षा और संसाधनों से खेलने वाले घुसपैठियों और उनके हितैषियों के खिलाफ मोदी सरकार की नीति में विश्वास का प्रतीक है. वोटबैंक के लिए घुसपैठियों को बचाने वालों को जनता ने करारा जवाब दिया है. बिहार की जनता ने पूरे देश का मूड बता दिया है कि मतदाता सूची शुद्धिकरण अनिवार्य है और इसके खिलाफ राजनीति की कोई जगह नहीं है. इसीलिए राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस आज बिहार में आखिरी पायदान पर आ गई है."

    उन्होंने आगे कहा, " यह ‘विकसित बिहार’ में विश्वास रखने वाले हर बिहारवासी की जीत है. जंगलराज और तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले किसी भी भेष में आएँ, उन्हें लूटने का मौका नहीं मिलेगा. जनता अब सिर्फ और सिर्फ ‘Politics of performance’ के आधार पर जनादेश देती है. नरेंद्रल मोदी और नीतीश कुमार व NDA के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को बधाई देता हूं. साथ ही, अपने अथक परिश्रम से इस परिणाम को चरितार्थ करने वाले बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक के

    बीजेपी के सभी कार्यकर्ताओं का अभिवादन करता हूं. मैं बिहार की जनता और विशेषकर हमारी माताओं-बहनों को आश्वस्त करता हूँ कि जिस आशा और विश्वास के साथ आपने NDA को यह जनादेश दिया है, मोदी जी के नेतृत्व में NDA सरकार उससे अधिक समर्पण से उसे पूरा करेगी."

    #AmitSha #BiharResults #scrolllink
    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर दो अलग-अलग पोस्ट में लिखा, "बिहारवासियों का एक-एक वोट भारत की सुरक्षा और संसाधनों से खेलने वाले घुसपैठियों और उनके हितैषियों के खिलाफ मोदी सरकार की नीति में विश्वास का प्रतीक है. वोटबैंक के लिए घुसपैठियों को बचाने वालों को जनता ने करारा जवाब दिया है. बिहार की जनता ने पूरे देश का मूड बता दिया है कि मतदाता सूची शुद्धिकरण अनिवार्य है और इसके खिलाफ राजनीति की कोई जगह नहीं है. इसीलिए राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस आज बिहार में आखिरी पायदान पर आ गई है." उन्होंने आगे कहा, " यह ‘विकसित बिहार’ में विश्वास रखने वाले हर बिहारवासी की जीत है. जंगलराज और तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले किसी भी भेष में आएँ, उन्हें लूटने का मौका नहीं मिलेगा. जनता अब सिर्फ और सिर्फ ‘Politics of performance’ के आधार पर जनादेश देती है. नरेंद्रल मोदी और नीतीश कुमार व NDA के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को बधाई देता हूं. साथ ही, अपने अथक परिश्रम से इस परिणाम को चरितार्थ करने वाले बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक के बीजेपी के सभी कार्यकर्ताओं का अभिवादन करता हूं. मैं बिहार की जनता और विशेषकर हमारी माताओं-बहनों को आश्वस्त करता हूँ कि जिस आशा और विश्वास के साथ आपने NDA को यह जनादेश दिया है, मोदी जी के नेतृत्व में NDA सरकार उससे अधिक समर्पण से उसे पूरा करेगी." #AmitSha #BiharResults #scrolllink
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  • विज्ञान भैरव तंत्र परिचय
    https://www.mayotube.co/watch?v=7e6fc73e-72fc-4a14-8b55-901220dd3e61

    "ईश्वर सदाशिव महादेव" इस नाम में जो उच्चता है, जो गरिमा है, जो पवित्रता है वो इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में किसी तत्व में नहीं। उनके अनंत नाम है और वे हिमालय के शिखरों पर विराजते है। एक और जहां हिमालय के मध्य में रत्न के समान कैलाश पर्वत चमकता है उसी प्रकार वह कैलाश पर्वत हर भक्त के भीतर उसके हृदय में, इसके आज्ञाचक्र में, ब्रह्मरंध्र और कपाल में भी स्थित है! यही विराट दिव्य कैलाश इस ब्रह्मांड के बाहर दिव्य ब्रह्मांड में भी अन्य अन्य रूपों में प्रकट होता रहता है! महादेव ज्ञान के वोे भंडार है, महादेव सृष्टि के वह प्रथम पुरुष है जहां से ज्ञान की ये अविरल धारा, ये दिव्य गंगा प्रवाहित होती है। एक ओर जहां योग है, अध्यात्म है, तपस्या है और गरिमा है वही महादेव अपने आपको इस ब्रह्मांड का नायक होने के बाद भी मनुष्य के रूप में, साधारण देह धारण करके मां पार्वती को भी उसी शरीर में आबद्ध कर के कैलाश के दिव्य शिखर पर ज्ञान प्रदान करते हैं! बहुत कम लोग ऐसे हैं जो यह जानते हैं कि, क्या महादेव ने मनुष्य शरीर धारण किया? यदि नहीं किया तो कैलाश के शिखर पर जो महादेव भस्म लगाए हुए हैं देह पर, चंद्रमा को धारण किए हुए हैं, बाघम्बर अपने शरीर पर धारण करने वाले हैं, त्रिशूल धारण करके जो मां पार्वती को ज्ञान दे रहे हैं, आगम और निगम की उत्पत्ति कर्ता वो महादेव कौन है? यह अपने आप में एक रहस्य है और इसे शायद वेद, पुराण, शास्त्र भी प्रकट नहीं करना चाहते! इस तथ्य को लेकर वह भी मौन रहना ही उत्तम समझते हैं।

    किंतु प्रश्न यह भी है कि वह सदाशिव ईश्वर महादेव उस स्वरूप को कब और कैसे धारण करते हैं? क्या शिव में, महेश में, महादेव में कोई अंतर है? क्या रूद्र कोई और है और काल के नियंता महाकाल कोई और ? क्या सदाशिव कोई और है और पारब्रह्म ईश्वर कोई और? अनेकों प्रश्न है। और इनका उत्तर केवल एक है। और वह है कैलाश का रम्य शिखर। कैलाश का वह रम्य शिखर जहां साक्षात् योग माया, साक्षात जगत जननी, साक्षात सूक्ष्मा रूप में, शक्ति के रूप में सर्वत्र उपस्थित रहने वाली मां शक्ति स्वयं देवाधिदेव ईश्वर से प्रार्थना करती है और उनसे प्रश्न करती है; अपनी जिज्ञासाएं प्रकट करती है एक साधारण मनुष्य की भांति। और महादेव भी अपने पारब्रह्म वाले स्वरूप को भूलकर, अपने आप को गुरु के रूप में स्थित कर के एक एक शंका, प्रश्न का समाधान प्रस्तुत करते हैं। जितने विचित्र महादेव है उतने ही विचित्र उनके अलंकरण है। जितनी अद्भुत और श्रेष्ठ मां पार्वती है, मां शक्ति है उतने ही अद्भुत उनके प्रश्न! ऐसा लगता है कि मां पार्वती आपका और मेरा प्रतिनिधित्व कर रही है! हमारे प्रश्नों को वह महादेव के सम्मुख रखती है, एक श्रेष्ठ गुरू के सम्मुख रखती है। और विचित्र अद्भुत, अवधूतेश्वर, महाकपालिक, परम तांत्रिक, परम योगी, समस्त विद्याओं को धारण करने वाले, 64 कलाओं के अधिपति, स्वयं भूत भावन महादेव समस्त प्रश्नों का उत्तर अपनी विचित्र रीति से प्रदान करते हैं !


    एक अद्भुत ग्रंथ है जिसे कहा जाता है "विज्ञान भैरव"! याद रखिए यह ज्ञान भैरव नहीं है... विज्ञान भैरव। ज्ञान परिचर्चा का विषय है । मैंने आपको कुछ कहा, आपने सीख लिया यह ज्ञान है। लेकिन मैंने आपको कुछ दिया और उस प्रणाली से आपने कुछ प्राप्त कर लिया वह विज्ञान है! जो प्रयोगात्मक होता है वही विज्ञान होता है। और जो तथ्यात्मक होता है, परिचर्चा जिस पर की जा सके वह ज्ञान होता है! ज्ञान में भी कमियां हो सकती है लेकिन विज्ञान में कमी नहीं होती क्योंकि विज्ञान केवल तर्कों पर नहीं अपितु प्रयोगों पर चलता है, उसके पीछे पूरा एक गंभीर धरातल रहता है। तो प्रश्न ज्ञान के रूप में प्रकट होते हैं और उत्तर विज्ञान के रूप में दिए जाते हैं। अद्भुत ग्रंथ है विज्ञान भैरव। लेकिन क्या है विज्ञान भैरव? कौन है यह विज्ञान भैरव? वास्तव में स्वयं महादेव ही अपने आप को "भैरव" कहते हैं और मां शक्ति को "है भैरवी!" कहते हुए संबोधित करते हैं! और वही मां भैरवी.. भैरव रूप महादेव से प्रश्न करती है! किस महादेव के सहस्त्रों सहस्त्र नाम है। जिस महादेव का ना आदी है ना अंत है! जो अत्यंत प्रखरतम है! और जिनकी माया इतनी अभिभूत कर देने वाली है कि आज तक कोई मनुष्य इस धरा पर उत्पन्न नहीं हो सका जो महादेव के दिव्य स्वरूपों को जान सके! जितना जानते हैं उतना कम रहता है! जितना हम प्रयास करते हैं उतना अधूरा रह जाता है! महादेव जटा जूट थारी है, महादेव काल को संचालित करने वाली सत्ता है, महादेव आपके और मेरे भीतर है,वह सृष्टि को नष्ट करने का अद्भुत सौंदर्य तांडव के रूप में संजोकर रखते हैं! जो स्वयं नटराज है! स्वयं संगीत को धारण करने वाले हैं! जिनकी माया अपरंपार है वह स्वयं को महादेव, शिव, रूद्र, अथवा अन्य नामों से पुकारने की अपेक्षा, यह ज्यादा रुचिकर उनको लगता है, प्रतीत होता है कि उन्हें कोई "भैरव" कहे! साक्षात मां भैरवी, मां जोगमाया उनको भैरव कह कर पुकारती है।

    जहां एक और पृथ्वी के कैलाश मंडल पर महादेव विराजमान है, वहीं आपके और मेरे भीतर के कैलाश मंडल पर भी वही महादेव विराजमान है! और वही महाभैरव इस ब्रह्मांड में अनेकों तत्वों के रूप में अन्य अन्य स्थानों पर भी प्रकट होते हैं!

    भैरव-भयों से मुक्त जो है एकमात्र, न जीवन, ना मान अपमान, न मृत्यु, ना काल... हर तत्व से उस पार है; और वही महाभैरव अपनी शक्ति को भैरवी कहते हैं! इसी महा भैरव के द्वारा देवी को जो दिया गया वह ज्ञान नहीं है! आगम निगम में ज्ञान अवश्य दिखाई देता है लेकिन उसकी गहराई में उतर जाए तो वहां विज्ञान है! इसी कारण महादेव ने जो कहा, महा भैरव ने जो कहा वह महाविज्ञान अपने आप में "विज्ञान भैरव" बन जाता है! यह एक अभूतपूर्व ग्रंथ भी है! और प्रयोग का इतना सुंदर ग्रंथ कि महादेव देवी को ज्यों ज्यों वह प्रश्न करती है क्यों क्यों धीमे धीमे धीमे ध्यान के बारे में बताते चले जाते हैं! ध्यान के भीतर उतरकर जीवन के प्रश्नों को खोजने की और उनका चित्त प्रेरित करते हैं! महादेव देवी को ज्ञान नहीं देते! उन्हें सूत्र देते चले जाते हैं! उन्हें परंपराएं नहीं देते बल्कि उन्हें प्रयोग देते चले जाते हैं! यह एक प्राचीन विद्या है, प्राचीन परंपरा है और एक पुस्तक में 112 से अधिक ध्यान की परंपराओं, ध्यान की विधियों के बारे में स्वयं महादेव बताते हैं और देवी उस ज्ञान को धारण करती है! प्रश्न होते हैं, उसका उत्तर मिलता है, और प्रणालियां उतनी अद्भुत कि यह केवल पुरुषों का एकाधिकार नहीं है कि केवल पुरुष ही ध्यान में उतर जाए; स्त्रियों के लिए विशेष तौर पर एक अलग सी प्रणाली ध्यान की महादेव पार्वती माता को प्रदान करते हैं! उनके माध्यम से वह हमको, आपको, समस्त सृष्टि को प्राप्त होता है। तो वही ध्यान की प्रणालियां, वही योग की प्रणालियां, वही तंत्र की संपुटित प्रणालियां भेरवो के लिए है, भैरवियों के लिए है।

    भैरव कौन? भैरवियां कौन?जिनको महादेव रूद्र से इतना प्रेम हो जाए कि वह अपने हृदय में महादेव का ही प्रतिबिंब देखने लग जाए; ऐसा ही ह्रदय अपने आप में भैरव हो जाता है! जो उस महाभैरव को देखकर कहें कि मैं भी भैरव हूं! उस शिव को देखकर कहे कि मैं भी शिव हूं! उस पार्वती को देखकर जो कहे कि मैं भी भैरवी हूं! उस पार्वती मां की झलक, उस शक्ति की झलक अपने हृदय प्रांगण में देख सके! वही भैरवी है। तो आपको भैरव और भैरवी तत्व को धारण करना है, इस हृदय को धारण करना है! और वह जो ग्रंथ है विज्ञान भैरव.. उसके भीतर की सूक्ष्म प्रणालियों को गुरु के सानिध्य में ग्रहण करना है! बेहद अद्भुत परंपराएं, रीतियां, उसके भीतर का सूक्ष्म ज्ञान आपको न जाने किस दूसरे आध्यात्मिक संसार में ले जा सकता है लेकिन उसके लिए सबसे पहले यह जरूरी है कि आप के भीतर यह भैरव तत्व हो और दूसरा आपके भीतर विज्ञान नाम का तत्व भी हो! इस विज्ञान को अगर आप धारण करना चाहते हो,भीतर के इस विज्ञान को यदि आप समझना चाहते हैं तो शिव के सूत्रों को समझना होगा। शिव ज्ञान जाता है लेकिन ज्ञान धारण करने के लिए मां शक्ति बैठी है। आपको भी ज्ञान धारण करना होगा तो गुरु के चरणों में आपको बैठना ही पड़ेगा और गुरु के ज्ञान को शिव मानना होगा और स्वयं को मां शक्ति पार्वती की तरह हृदय प्रधान... क्योंकि मां पार्वती का ह्रदय ममता से भरा है, स्नेह से भरा है, प्रेम से भरा है... उसमें श्रद्धा है और समर्पण है महादेव के प्रति! आपको भी जब हृदय में इसी प्रकार गुरु के प्रति समर्पण, प्रेम, स्नेह और श्रद्धा अनुभव होने लगे तो विज्ञान भैरव के द्वार आपके लिए खुलने लगते हैं! किंतु विज्ञान भैरव का पात्र कौन? कौन पुरुष, कौन सा भैरव अपने भीतर इस विज्ञान भैरव नाम के इस दिव्य भैरव को उतार सकता है? कौन भैरव अपने नाम के आगे विज्ञान भैरव जोड़ सकता है? और कौन सा पुरुष इस पृथ्वी पर, भूमंडल पर है जो विचरण करें और समस्त संसार उसको विज्ञान भैरव के दृष्टिकोण से देखें! इसके लिए आपको अपने भीतर उतरना पड़ेगा!आपको अपने भीतर की यात्रा करनी होगी और उस यात्रा का प्रारंभ होता है विज्ञान भैरव नाम की दीक्षा से...

    विज्ञान भैरव दीक्षा! एक दीक्षा तो वह है जो आपको भैरव बना देती है, एक दीक्षा वह है जो भैरव के मन मस्तिष्क के भीतर विज्ञान की दृष्टि उत्पन्न कर देती है! विज्ञान यदि ना हो तो भ्रमों का संसार है! आप ध्यान भी करेंगे तो किसी को रंग दिखाई देते हैं! किसी को सुगंध आती, है तो किसी को अमृत का स्वाद अनुभव होता है! किसी को कंप कंपी महसूस होती है, तो किसी के सभी चक्रों में स्पंदन होने लगता है... यह सभी भ्रम है, सत्य नहीं है और यदि आप इन भ्रमों में फंसे रह गए, यदि आपने इन भ्रमों को सत्य मान लिया तो आप ज्ञानी तो कहला सकते हो विज्ञानी नहीं कहलाने वाले; विज्ञान वह है जो अपने मस्तिष्क और मन के सारे तलों से उस पार विशुद्ध सत्य की ओर जाए, उसे नहीं लेना देना कि कौन सी गंध है, उसे नहीं लेना देना कि कौन सा अनुभव हो रहा है, उत्तर नहीं लेना देना कि मैं 4 घंटे या 10 घंटे समाधि में हूं, वह अपनी यात्रा जारी रखेगा और इन सभी तत्वों को असत्य के रूप में स्वीकार करेगा। विज्ञान बड़ा कठोर है, वह आपके हृदय की भावनाओं के बारे में सोचता नहीं है! आधुनिक विज्ञान से प्रेरणा लीजिए... आप आसमान में चंद्रमा देखते हो, बचपन से चंद्रमा की कहानी सुनाते हो, अपनी प्रेमिका को कहते हो तुम चांद सी सुंदर हो,बचपन में बालक को कहते हो कि यह चंदा तुम्हारे मामा है, न जाने चांद की कितनी कहानियां, चांद पर कैसी कैसी दादियां और नानियां है! लेकिन ज्यों ही आप बड़े होते हैं, विज्ञान से आप का सामना होता है तो आपकी सारी इन कहानियों को टूट जाना होगा, इनको गिर जाना होगा, इनको नष्ट हो जाना होगा क्योंकि यह चंद्रमा जो आपके हृदय में बसने वाला है, आपके हृदय में कल्पना के रूप में स्थापित है वह चंद्रमा छद्म है! विज्ञान उस काल्पनिक चंद्रमा को नष्ट कर देगा। आपको पीड़ा हो सकती है, आपके हृदय में चोट पहुंच सकती है किंतु विज्ञान इस तत्व की चिंता नहीं करेगा। वह तो कहेगा भले ही तुम पीड़ा में से गुजरो, भले ही तुम इस सत्य को न स्वीकारो लेकिन सत्य तो यही है कि यह चंद्रमा एक पिंड है और इस पृथ्वी के चारों तरफ घूमने वाला एक और छोटा लघु उपग्रह है!

    आप अक्सर धर्मगुरुओं के पास, धर्मगुरुओं के सानिध्य में जाने वाले आध्यात्मिक लोगों के पास जाइए, न जाने कैसी कैसी कूड़ा करकट रूपी भ्रांतियों से भरे पड़े हैं उनके मस्तिष्क। कोई अपने आप को भगवान का अवतार मानता है, किसी को लगता है मैं ही शिव हूं, कोई अपने आप को भगवान विष्णु का अवतार बताने पर जुटा है, कोई अपने आपको कल्कि कहता है, तो कोई अपने आप को दैत्य या रावण कहने से से भी नहीं चुकता, कोई अपने आप को ऋषि मुनि बताता है, तो कोई अपने आप को दिव्य सत्ता बताता है...अजीबो गरीब किस्म के ये भ्रम मस्तिष्क में घर कर गए है। लगता है मनासोपचर की जगह मानस मानस के उपचार की आवश्यकता है...पूजन की नहीं चिकित्सा कि आवश्यकता है! मस्तिष्क के ततुओंं में न जाने ऐसे कौन कौन से भ्रम और ऐसे कौन कौन से तत्त्व और रसायन है जो अजीबो गरीब भ्रम पैदा कर देते हैं। योगी ध्यान कर रहे है और कहते है में ब्रह्मांड में गति कर रहा हूं, मेरे पांच शरीर बन गए हैं, मेरे सौ शरीर बन गए है...लेकिन शिव कहते है कि तुम्हे प्रयोग करना है उस प्रयोग में भीतर उतरते चले जाना है। विज्ञान भैरव कौन है? आप और हम विज्ञान भैरव है लेकिन कब? जब हमारे ये भ्रम जब हमारी ये भ्रांतियां एक ओर हो जाएं, हम इनसे दूर हो जाए, ये छन जाए, परिष्कृत हो जाए, संस्कारित हो जाए। अध्यात्म को छानते जाइए, भक्ति को छानते जाइए, श्रद्धा को छानते जाइए, हृदय को छानते जाइए, जिव्हा को छानते जाइए, अध्यात्म के तमाम रसों को छानते जाइए तो अंत में बुद्धि जो उत्पन्न होगी सत्यमय वह विज्ञानमय होगी।

    तो आप और हम... वह सभी लोग जो शिव के भैरव है, अपने हृदय में शिव को प्राप्त करते हैं, शिव को मानते हैं और जो इस शिव की योगिनी कौल सिद्ध परंपरा से जुड़े हैं, जो कुल्लू की कौलांतक दिव्य परंपरा से जुड़े हैं, जो कौलांतक पीठ से जुड़े हैं, शास्त्र जिस कौलांतक पीठ को कुलांत पीठ कहकर संबोधित करता है; कुरुकुल्ला इत्यादि शक्तियां जिसकी नायिका है, चौसठ योगिनीयां जहां योग को प्रकट करने वाली है! एक एक योगिनी एक एक योग की परंपरा की नायिका शक्तियां है, तो 64 योग की परंपराएं उन योगिनियों ने संभाल कर रखी है और तंत्र ने उसका तांत्रिक स्वरूप सहेज कर रखा है लेकिन कितनों को आप और हम जानते हैं? इसका सा केवल वह भैरव धारण करता है जो गुरु रूपी शिव के सानिध्य में बैठकर सर्वप्रथम दीक्षा तत्व को शाक्त कुल से प्राप्त करता है...शैव कुल से नहीं! विज्ञान भैरव पुरुष प्रधान है लेकिन इसके ध्यान के भीतर जब जाएंगे...कुछ प्रणालियां केवल शाक्त प्रधान (स्त्री प्रधान) है। समझना होगा शिव अर्धनारीश्वर है, शक्ति भी स्वयं है और शिव के रूप में स्थूल भी स्वयं है! वही शिव आपके और मेरे भीतर भी विद्यमान है बस हमें उसकी यात्रा में उतरना है। विज्ञान रूपी ज्ञान प्राप्त करना है, छद्मता नहीं।

    इसीलिए गुरु के पास जाकर विज्ञान भैरव दीक्षा प्राप्त करनी होगी! विज्ञान भैरव वह दीक्षा है जो आपके भीतर एक प्रणाली के रूप में बस जाएगी इसलिए उसे तंत्र का नाम दिया! तंत्र कोई खून खराबा नहीं है, कोई हिंसा नहीं है, कोई शोषण नहीं है, तंत्र एक पद्धति है! तो विज्ञान भैरव के इस तंत्र रूपी सिद्धांत को अपने भीतर दीक्षा के माध्यम से उतार लेना! शाक्ति दीक्षा आवश्यक है इसमें ! शाक्ति दीक्षा के माध्यम से आपके भीतर वह तत्व उतर जाए फिर योग को समझ लेना, 64 योग की परंपराओं को समझ लेना; की एक-एक योगिनी के पास आखिर कौन-कौन सा योग अवस्थित है, कौन सी योग की और तंत्र की वो परंपराएं है जिसकी वो नायिका शक्तियां है और क्यों शिव बिना उनका नाम लिए मां पार्वती को अत्यंत सहज सूत्र देते हैं लेकिन सहज दिखने वाले सूत्र की थाह कितनी गहरी है! ज्यों ही दीक्षा घटित हुई त्यों ही योग की यात्रा में उतर आना, क्यों ही समाधि की ओर दृष्टिपात करना, त्यों ही कुंडलिनी को समझने की कोशिश करना, त्यों ही शिव और शक्ति को जानने के रहस्य में जूट जाना और त्यों ही विज्ञान भैरव तंत्र के अद्भुत ग्रंथ को सीने से लगा लेना! यह वह अद्भुत ग्रंथ है कि इस पृथ्वी पर महात्मा बुद्ध जैसे अवतार भी आए, उन्होंने भी विज्ञान भैरव तंत्र के सूत्र को अपना कर ध्यान के लिए उसी के सूत्र को अपने जीवन में उतारा है... हालांकि कालांतर में बहुत सारे लोग यह कहते हैं कि बौद्ध धर्म से यह सूत्र विज्ञान भैरव में आया... लेकिन याद रखिए, विज्ञान और भैरव है... भैरव याचक नहीं है; भैरव ज्ञान के किसी उपाय, किसी शैली, किसी पद्धति के याचक या उसे एकत्रित करने वाले, बीनने वाले काक अर्थात् कौवे नहीं है! भैरव सत्य के ऊपर चलने वाले, सत्य को अपने गंभीर मति से समझने वाले, और सत्य यदि समझ में ना आए तो अपने मस्तिष्क में नवीन नाड़ी तंत्र का विकास करने वाले अद्भुत शिव के गण होते हैं! आप और हम याचक नहीं है! आप और हम पुरुषार्थी है! कर्मयोग को समझने वाले हैं। इसलिए हम विज्ञान भैरव को एक नई दृष्टि से समझते हैं, हमारे भीतर विज्ञान भैरव का एक एक हिस्सा ऐसे बसा है, एक एक श्लोक, एक एक पन्ना, एक एक शब्द ऐसे बसा है जैसे हमारी इन नलिकाओं में रक्त बसा है! हम शिव की परंपराओं में पैदा होने वाले, पलने बढ़ने वाले वह नन्हे शिशु है जो युवा हो जाते है, फिर योगी बनते हैं, वृद्ध हो कर भी अपनी गरिमा को नष्ट नहीं होने देते, अपने इस विज्ञान को नष्ट नहीं होने देते,अपनी बुद्धि को भ्रमों में नहीं जाने देते! हम बाह्य आडंबरों से मुक्त है । हम विज्ञान भैरव को पढ़ते नहीं है, हम विज्ञान भैरव के सिद्धांतों को सीखते नहीं है हम उनको जीते हैं! हम गुरु से विज्ञान भैरव दीक्षा प्राप्त कर स्वयं को विज्ञान भैरव बनाने के पथ पर अग्रसर होते हैं और एक एक सांस हमारी अपने आप में विज्ञान भैरव के सूत्र है!

    आपके जीवन में यह विज्ञान भैरव उतर जाए, आप यह समझ सके कि आपके भीतर भी एक स्त्री है, आप यह समझ जाए कि आपके भीतर भी एक पुरुष है, आप यह समझ जाए कि आप स्त्री और पुरुष के तत्व से भी ऊपर हो, आप किसी तत्व से भयभीत ना हो। कुछ लोग, कुछ धर्म ऐसे हैं मूर्तियों को देखकर कांप जाते हैं कहते हैं यह भगवान नहीं! और कुछ धर्म ऐसे हैं जो कहते हैं कि वह सूक्ष्म भगवान नहीं, कुछ जीवित मनुष्यों में भगवान को देखते हैं,कुछ प्रकृति के तत्वों में भगवान को देखते हैं लेकिन विज्ञान भैरव वह है जो कहीं भी भ्रमित नहीं, वैज्ञानिक दृष्टि से, परम प्रज्ञा से बेहद उत्तम, पवित्र, स्थिर बुद्धि से उस परम ज्ञान को समजते है, धारण करते है... इसीलिए वो विज्ञान भैरव है!

    क्या आप विज्ञान भैरव हो? क्या आपके अंदर विज्ञान भैरव तत्व है? क्या आपके भीतर मां पार्वती, मां शक्ति, मां विज्ञान भैरवी आपके मस्तिष्क और हृदय में निवास करने वाली शक्ति है? जीवन में ग्रंथ केवल ग्रंथ नहीं है... याद रखिए तंत्र के ग्रंथ ग्रंथ या पुस्तकें नहीं है, कि कोई लेखक उसे लिख से और आप उसे पढ़ ले, या कोई तंत्र आचार्य या कोई तांत्रिक एक पुस्तक लिखे और कहे, "देखिए मैंने विज्ञान भैरव की व्याख्या लिख दी है और मै तुम्हे इसका उपदेश करता हूं, तुम इसे समझ जाओगे!"...गुरु का स्पर्श लीजिए ; यहां स्पर्श की अनिवार्यता है! ये तुम्हारी मनघड़ंत व्याख्याओं पर नहीं चलेगा, यहां तुम्हारे कुतर्क नहीं चलेंगे, यहां पर तुम्हारे बहाने नहीं चलेंगे! यहां को गुरु कहेगा वो तुम्हे धारण करना ही होगा। यहां जो शिव ने परंपरा दी उसको तुम्हे सत्य स्वरूप में स्वीकारना ही होगा! यहां तुम्हे इसे परंपरा के साथ इसे धारण करना होगा, तब ये ग्रंथ नहीं रहेगा, तब ये जीवित पुरुष हो जाएगा !विज्ञान भैरव तंत्र के भीतर इतने रहस्य छिपे हैं कि जानना बड़ा जटिल लगता है लेकिन परेशान होने की आवश्यकता नहीं है; गुरु शिष्य परंपरा है, मै अभी जीवित हूं! तुम भी अभी जीवित हो! मेरे बाद भी इस रहस्य को बतनेवाले हमारी परम्पराओं के पुरोधा आगे आएंगे! जिन पुरोधाओं से मैंने सीखा उन्होंने मेरे भीतर भी इसका बीज डालकर स्थापित किया था, आज अंकुरित है! आज मै चाहता हूं कि ये परंपरा मुझ तक न रहे; तुम इसे स्वीकारो, धारण करो। एक ओर भैरव जहां विकराल है वहीं सौंदर्यशाली! एक ओर जहां वो तांडव करते हैं वहीं को लास नृत्य में भी भगवती के स्वरूप के भीतर ही विद्यमान रहते हैं! जहां वो रूद्र वीणा धारण करनेवाले है, नाद और संगीत के अधिपति है, उस सदाशिव ईश्वर महादेव के बारे में मै केवल ये कह सकता हूं कि, "वही विज्ञान भैरव है!" उनके सूत्रों को समझने के लिए आपको भी विज्ञान भैरव ही होना होगा! इससे कम में समझौता होने की गुंजाइश नहीं है, संभावनाएं नहीं है; इसलिए जीवन में जितनी भी तकलीफें हो तुम्हारी मुझे नहीं पता; तुम भैरव हो लडो, पैदा ही लड़ने के लिए हुए हो; हारने के लिए नहीं। विज्ञान भैरव हो तो अपने भीतर की वीरता को जागृत रखना, अपने भयों को रोंद कर रखना और भयों से उस पार निकाल जाओ। आओ हम इस विज्ञान भैरव के एक एक पृष्ठ पर अपने आप को बिछा देते हैं! विज्ञान भैरव के एक एक शब्द को सत्य स्वरूप अपने भीतर प्रयोगात्मक रीति से उतारते है, इसे समझते हैं! मै गुरु के सानिध्य में इसे समझ रहा हूं, स्वीकार रहा हूं; तुम्हे अपने गुरु के सानिध्य में इसे समझना है! श्रेष्ठ गुरु..श्रेष्ठ शिष्य...महा भैरव.. महा भैरव के महा भैरव पुत्र... इसी प्रकार ये परंपरा आगे बढ़ रही है, बढ़ेगी। इसलिए विज्ञान भैरव को पढ़ना नहीं धारण करना! स्वीकारना नहीं आत्मसात् कर लेना! इसे गुरु से खरीद मत लेना, धारण कर लेना! आज्ञा चक्र से ब्रह्मरंध में स्थापित कर लेना, यहां से विज्ञान भैरव की शुरुआत होगी । पुस्तक से उस पार एक और विज्ञान भैरव आपकी प्रतीक्षा कर रहा है उसकी तलाश में निकल जाओ, अभी इसी समय।
    - महासिद्ध ईशपुत्र
    विज्ञान भैरव तंत्र परिचय https://www.mayotube.co/watch?v=7e6fc73e-72fc-4a14-8b55-901220dd3e61 "ईश्वर सदाशिव महादेव" इस नाम में जो उच्चता है, जो गरिमा है, जो पवित्रता है वो इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में किसी तत्व में नहीं। उनके अनंत नाम है और वे हिमालय के शिखरों पर विराजते है। एक और जहां हिमालय के मध्य में रत्न के समान कैलाश पर्वत चमकता है उसी प्रकार वह कैलाश पर्वत हर भक्त के भीतर उसके हृदय में, इसके आज्ञाचक्र में, ब्रह्मरंध्र और कपाल में भी स्थित है! यही विराट दिव्य कैलाश इस ब्रह्मांड के बाहर दिव्य ब्रह्मांड में भी अन्य अन्य रूपों में प्रकट होता रहता है! महादेव ज्ञान के वोे भंडार है, महादेव सृष्टि के वह प्रथम पुरुष है जहां से ज्ञान की ये अविरल धारा, ये दिव्य गंगा प्रवाहित होती है। एक ओर जहां योग है, अध्यात्म है, तपस्या है और गरिमा है वही महादेव अपने आपको इस ब्रह्मांड का नायक होने के बाद भी मनुष्य के रूप में, साधारण देह धारण करके मां पार्वती को भी उसी शरीर में आबद्ध कर के कैलाश के दिव्य शिखर पर ज्ञान प्रदान करते हैं! बहुत कम लोग ऐसे हैं जो यह जानते हैं कि, क्या महादेव ने मनुष्य शरीर धारण किया? यदि नहीं किया तो कैलाश के शिखर पर जो महादेव भस्म लगाए हुए हैं देह पर, चंद्रमा को धारण किए हुए हैं, बाघम्बर अपने शरीर पर धारण करने वाले हैं, त्रिशूल धारण करके जो मां पार्वती को ज्ञान दे रहे हैं, आगम और निगम की उत्पत्ति कर्ता वो महादेव कौन है? यह अपने आप में एक रहस्य है और इसे शायद वेद, पुराण, शास्त्र भी प्रकट नहीं करना चाहते! इस तथ्य को लेकर वह भी मौन रहना ही उत्तम समझते हैं। किंतु प्रश्न यह भी है कि वह सदाशिव ईश्वर महादेव उस स्वरूप को कब और कैसे धारण करते हैं? क्या शिव में, महेश में, महादेव में कोई अंतर है? क्या रूद्र कोई और है और काल के नियंता महाकाल कोई और ? क्या सदाशिव कोई और है और पारब्रह्म ईश्वर कोई और? अनेकों प्रश्न है। और इनका उत्तर केवल एक है। और वह है कैलाश का रम्य शिखर। कैलाश का वह रम्य शिखर जहां साक्षात् योग माया, साक्षात जगत जननी, साक्षात सूक्ष्मा रूप में, शक्ति के रूप में सर्वत्र उपस्थित रहने वाली मां शक्ति स्वयं देवाधिदेव ईश्वर से प्रार्थना करती है और उनसे प्रश्न करती है; अपनी जिज्ञासाएं प्रकट करती है एक साधारण मनुष्य की भांति। और महादेव भी अपने पारब्रह्म वाले स्वरूप को भूलकर, अपने आप को गुरु के रूप में स्थित कर के एक एक शंका, प्रश्न का समाधान प्रस्तुत करते हैं। जितने विचित्र महादेव है उतने ही विचित्र उनके अलंकरण है। जितनी अद्भुत और श्रेष्ठ मां पार्वती है, मां शक्ति है उतने ही अद्भुत उनके प्रश्न! ऐसा लगता है कि मां पार्वती आपका और मेरा प्रतिनिधित्व कर रही है! हमारे प्रश्नों को वह महादेव के सम्मुख रखती है, एक श्रेष्ठ गुरू के सम्मुख रखती है। और विचित्र अद्भुत, अवधूतेश्वर, महाकपालिक, परम तांत्रिक, परम योगी, समस्त विद्याओं को धारण करने वाले, 64 कलाओं के अधिपति, स्वयं भूत भावन महादेव समस्त प्रश्नों का उत्तर अपनी विचित्र रीति से प्रदान करते हैं ! एक अद्भुत ग्रंथ है जिसे कहा जाता है "विज्ञान भैरव"! याद रखिए यह ज्ञान भैरव नहीं है... विज्ञान भैरव। ज्ञान परिचर्चा का विषय है । मैंने आपको कुछ कहा, आपने सीख लिया यह ज्ञान है। लेकिन मैंने आपको कुछ दिया और उस प्रणाली से आपने कुछ प्राप्त कर लिया वह विज्ञान है! जो प्रयोगात्मक होता है वही विज्ञान होता है। और जो तथ्यात्मक होता है, परिचर्चा जिस पर की जा सके वह ज्ञान होता है! ज्ञान में भी कमियां हो सकती है लेकिन विज्ञान में कमी नहीं होती क्योंकि विज्ञान केवल तर्कों पर नहीं अपितु प्रयोगों पर चलता है, उसके पीछे पूरा एक गंभीर धरातल रहता है। तो प्रश्न ज्ञान के रूप में प्रकट होते हैं और उत्तर विज्ञान के रूप में दिए जाते हैं। अद्भुत ग्रंथ है विज्ञान भैरव। लेकिन क्या है विज्ञान भैरव? कौन है यह विज्ञान भैरव? वास्तव में स्वयं महादेव ही अपने आप को "भैरव" कहते हैं और मां शक्ति को "है भैरवी!" कहते हुए संबोधित करते हैं! और वही मां भैरवी.. भैरव रूप महादेव से प्रश्न करती है! किस महादेव के सहस्त्रों सहस्त्र नाम है। जिस महादेव का ना आदी है ना अंत है! जो अत्यंत प्रखरतम है! और जिनकी माया इतनी अभिभूत कर देने वाली है कि आज तक कोई मनुष्य इस धरा पर उत्पन्न नहीं हो सका जो महादेव के दिव्य स्वरूपों को जान सके! जितना जानते हैं उतना कम रहता है! जितना हम प्रयास करते हैं उतना अधूरा रह जाता है! महादेव जटा जूट थारी है, महादेव काल को संचालित करने वाली सत्ता है, महादेव आपके और मेरे भीतर है,वह सृष्टि को नष्ट करने का अद्भुत सौंदर्य तांडव के रूप में संजोकर रखते हैं! जो स्वयं नटराज है! स्वयं संगीत को धारण करने वाले हैं! जिनकी माया अपरंपार है वह स्वयं को महादेव, शिव, रूद्र, अथवा अन्य नामों से पुकारने की अपेक्षा, यह ज्यादा रुचिकर उनको लगता है, प्रतीत होता है कि उन्हें कोई "भैरव" कहे! साक्षात मां भैरवी, मां जोगमाया उनको भैरव कह कर पुकारती है। जहां एक और पृथ्वी के कैलाश मंडल पर महादेव विराजमान है, वहीं आपके और मेरे भीतर के कैलाश मंडल पर भी वही महादेव विराजमान है! और वही महाभैरव इस ब्रह्मांड में अनेकों तत्वों के रूप में अन्य अन्य स्थानों पर भी प्रकट होते हैं! भैरव-भयों से मुक्त जो है एकमात्र, न जीवन, ना मान अपमान, न मृत्यु, ना काल... हर तत्व से उस पार है; और वही महाभैरव अपनी शक्ति को भैरवी कहते हैं! इसी महा भैरव के द्वारा देवी को जो दिया गया वह ज्ञान नहीं है! आगम निगम में ज्ञान अवश्य दिखाई देता है लेकिन उसकी गहराई में उतर जाए तो वहां विज्ञान है! इसी कारण महादेव ने जो कहा, महा भैरव ने जो कहा वह महाविज्ञान अपने आप में "विज्ञान भैरव" बन जाता है! यह एक अभूतपूर्व ग्रंथ भी है! और प्रयोग का इतना सुंदर ग्रंथ कि महादेव देवी को ज्यों ज्यों वह प्रश्न करती है क्यों क्यों धीमे धीमे धीमे ध्यान के बारे में बताते चले जाते हैं! ध्यान के भीतर उतरकर जीवन के प्रश्नों को खोजने की और उनका चित्त प्रेरित करते हैं! महादेव देवी को ज्ञान नहीं देते! उन्हें सूत्र देते चले जाते हैं! उन्हें परंपराएं नहीं देते बल्कि उन्हें प्रयोग देते चले जाते हैं! यह एक प्राचीन विद्या है, प्राचीन परंपरा है और एक पुस्तक में 112 से अधिक ध्यान की परंपराओं, ध्यान की विधियों के बारे में स्वयं महादेव बताते हैं और देवी उस ज्ञान को धारण करती है! प्रश्न होते हैं, उसका उत्तर मिलता है, और प्रणालियां उतनी अद्भुत कि यह केवल पुरुषों का एकाधिकार नहीं है कि केवल पुरुष ही ध्यान में उतर जाए; स्त्रियों के लिए विशेष तौर पर एक अलग सी प्रणाली ध्यान की महादेव पार्वती माता को प्रदान करते हैं! उनके माध्यम से वह हमको, आपको, समस्त सृष्टि को प्राप्त होता है। तो वही ध्यान की प्रणालियां, वही योग की प्रणालियां, वही तंत्र की संपुटित प्रणालियां भेरवो के लिए है, भैरवियों के लिए है। भैरव कौन? भैरवियां कौन?जिनको महादेव रूद्र से इतना प्रेम हो जाए कि वह अपने हृदय में महादेव का ही प्रतिबिंब देखने लग जाए; ऐसा ही ह्रदय अपने आप में भैरव हो जाता है! जो उस महाभैरव को देखकर कहें कि मैं भी भैरव हूं! उस शिव को देखकर कहे कि मैं भी शिव हूं! उस पार्वती को देखकर जो कहे कि मैं भी भैरवी हूं! उस पार्वती मां की झलक, उस शक्ति की झलक अपने हृदय प्रांगण में देख सके! वही भैरवी है। तो आपको भैरव और भैरवी तत्व को धारण करना है, इस हृदय को धारण करना है! और वह जो ग्रंथ है विज्ञान भैरव.. उसके भीतर की सूक्ष्म प्रणालियों को गुरु के सानिध्य में ग्रहण करना है! बेहद अद्भुत परंपराएं, रीतियां, उसके भीतर का सूक्ष्म ज्ञान आपको न जाने किस दूसरे आध्यात्मिक संसार में ले जा सकता है लेकिन उसके लिए सबसे पहले यह जरूरी है कि आप के भीतर यह भैरव तत्व हो और दूसरा आपके भीतर विज्ञान नाम का तत्व भी हो! इस विज्ञान को अगर आप धारण करना चाहते हो,भीतर के इस विज्ञान को यदि आप समझना चाहते हैं तो शिव के सूत्रों को समझना होगा। शिव ज्ञान जाता है लेकिन ज्ञान धारण करने के लिए मां शक्ति बैठी है। आपको भी ज्ञान धारण करना होगा तो गुरु के चरणों में आपको बैठना ही पड़ेगा और गुरु के ज्ञान को शिव मानना होगा और स्वयं को मां शक्ति पार्वती की तरह हृदय प्रधान... क्योंकि मां पार्वती का ह्रदय ममता से भरा है, स्नेह से भरा है, प्रेम से भरा है... उसमें श्रद्धा है और समर्पण है महादेव के प्रति! आपको भी जब हृदय में इसी प्रकार गुरु के प्रति समर्पण, प्रेम, स्नेह और श्रद्धा अनुभव होने लगे तो विज्ञान भैरव के द्वार आपके लिए खुलने लगते हैं! किंतु विज्ञान भैरव का पात्र कौन? कौन पुरुष, कौन सा भैरव अपने भीतर इस विज्ञान भैरव नाम के इस दिव्य भैरव को उतार सकता है? कौन भैरव अपने नाम के आगे विज्ञान भैरव जोड़ सकता है? और कौन सा पुरुष इस पृथ्वी पर, भूमंडल पर है जो विचरण करें और समस्त संसार उसको विज्ञान भैरव के दृष्टिकोण से देखें! इसके लिए आपको अपने भीतर उतरना पड़ेगा!आपको अपने भीतर की यात्रा करनी होगी और उस यात्रा का प्रारंभ होता है विज्ञान भैरव नाम की दीक्षा से... विज्ञान भैरव दीक्षा! एक दीक्षा तो वह है जो आपको भैरव बना देती है, एक दीक्षा वह है जो भैरव के मन मस्तिष्क के भीतर विज्ञान की दृष्टि उत्पन्न कर देती है! विज्ञान यदि ना हो तो भ्रमों का संसार है! आप ध्यान भी करेंगे तो किसी को रंग दिखाई देते हैं! किसी को सुगंध आती, है तो किसी को अमृत का स्वाद अनुभव होता है! किसी को कंप कंपी महसूस होती है, तो किसी के सभी चक्रों में स्पंदन होने लगता है... यह सभी भ्रम है, सत्य नहीं है और यदि आप इन भ्रमों में फंसे रह गए, यदि आपने इन भ्रमों को सत्य मान लिया तो आप ज्ञानी तो कहला सकते हो विज्ञानी नहीं कहलाने वाले; विज्ञान वह है जो अपने मस्तिष्क और मन के सारे तलों से उस पार विशुद्ध सत्य की ओर जाए, उसे नहीं लेना देना कि कौन सी गंध है, उसे नहीं लेना देना कि कौन सा अनुभव हो रहा है, उत्तर नहीं लेना देना कि मैं 4 घंटे या 10 घंटे समाधि में हूं, वह अपनी यात्रा जारी रखेगा और इन सभी तत्वों को असत्य के रूप में स्वीकार करेगा। विज्ञान बड़ा कठोर है, वह आपके हृदय की भावनाओं के बारे में सोचता नहीं है! आधुनिक विज्ञान से प्रेरणा लीजिए... आप आसमान में चंद्रमा देखते हो, बचपन से चंद्रमा की कहानी सुनाते हो, अपनी प्रेमिका को कहते हो तुम चांद सी सुंदर हो,बचपन में बालक को कहते हो कि यह चंदा तुम्हारे मामा है, न जाने चांद की कितनी कहानियां, चांद पर कैसी कैसी दादियां और नानियां है! लेकिन ज्यों ही आप बड़े होते हैं, विज्ञान से आप का सामना होता है तो आपकी सारी इन कहानियों को टूट जाना होगा, इनको गिर जाना होगा, इनको नष्ट हो जाना होगा क्योंकि यह चंद्रमा जो आपके हृदय में बसने वाला है, आपके हृदय में कल्पना के रूप में स्थापित है वह चंद्रमा छद्म है! विज्ञान उस काल्पनिक चंद्रमा को नष्ट कर देगा। आपको पीड़ा हो सकती है, आपके हृदय में चोट पहुंच सकती है किंतु विज्ञान इस तत्व की चिंता नहीं करेगा। वह तो कहेगा भले ही तुम पीड़ा में से गुजरो, भले ही तुम इस सत्य को न स्वीकारो लेकिन सत्य तो यही है कि यह चंद्रमा एक पिंड है और इस पृथ्वी के चारों तरफ घूमने वाला एक और छोटा लघु उपग्रह है! आप अक्सर धर्मगुरुओं के पास, धर्मगुरुओं के सानिध्य में जाने वाले आध्यात्मिक लोगों के पास जाइए, न जाने कैसी कैसी कूड़ा करकट रूपी भ्रांतियों से भरे पड़े हैं उनके मस्तिष्क। कोई अपने आप को भगवान का अवतार मानता है, किसी को लगता है मैं ही शिव हूं, कोई अपने आप को भगवान विष्णु का अवतार बताने पर जुटा है, कोई अपने आपको कल्कि कहता है, तो कोई अपने आप को दैत्य या रावण कहने से से भी नहीं चुकता, कोई अपने आप को ऋषि मुनि बताता है, तो कोई अपने आप को दिव्य सत्ता बताता है...अजीबो गरीब किस्म के ये भ्रम मस्तिष्क में घर कर गए है। लगता है मनासोपचर की जगह मानस मानस के उपचार की आवश्यकता है...पूजन की नहीं चिकित्सा कि आवश्यकता है! मस्तिष्क के ततुओंं में न जाने ऐसे कौन कौन से भ्रम और ऐसे कौन कौन से तत्त्व और रसायन है जो अजीबो गरीब भ्रम पैदा कर देते हैं। योगी ध्यान कर रहे है और कहते है में ब्रह्मांड में गति कर रहा हूं, मेरे पांच शरीर बन गए हैं, मेरे सौ शरीर बन गए है...लेकिन शिव कहते है कि तुम्हे प्रयोग करना है उस प्रयोग में भीतर उतरते चले जाना है। विज्ञान भैरव कौन है? आप और हम विज्ञान भैरव है लेकिन कब? जब हमारे ये भ्रम जब हमारी ये भ्रांतियां एक ओर हो जाएं, हम इनसे दूर हो जाए, ये छन जाए, परिष्कृत हो जाए, संस्कारित हो जाए। अध्यात्म को छानते जाइए, भक्ति को छानते जाइए, श्रद्धा को छानते जाइए, हृदय को छानते जाइए, जिव्हा को छानते जाइए, अध्यात्म के तमाम रसों को छानते जाइए तो अंत में बुद्धि जो उत्पन्न होगी सत्यमय वह विज्ञानमय होगी। तो आप और हम... वह सभी लोग जो शिव के भैरव है, अपने हृदय में शिव को प्राप्त करते हैं, शिव को मानते हैं और जो इस शिव की योगिनी कौल सिद्ध परंपरा से जुड़े हैं, जो कुल्लू की कौलांतक दिव्य परंपरा से जुड़े हैं, जो कौलांतक पीठ से जुड़े हैं, शास्त्र जिस कौलांतक पीठ को कुलांत पीठ कहकर संबोधित करता है; कुरुकुल्ला इत्यादि शक्तियां जिसकी नायिका है, चौसठ योगिनीयां जहां योग को प्रकट करने वाली है! एक एक योगिनी एक एक योग की परंपरा की नायिका शक्तियां है, तो 64 योग की परंपराएं उन योगिनियों ने संभाल कर रखी है और तंत्र ने उसका तांत्रिक स्वरूप सहेज कर रखा है लेकिन कितनों को आप और हम जानते हैं? इसका सा केवल वह भैरव धारण करता है जो गुरु रूपी शिव के सानिध्य में बैठकर सर्वप्रथम दीक्षा तत्व को शाक्त कुल से प्राप्त करता है...शैव कुल से नहीं! विज्ञान भैरव पुरुष प्रधान है लेकिन इसके ध्यान के भीतर जब जाएंगे...कुछ प्रणालियां केवल शाक्त प्रधान (स्त्री प्रधान) है। समझना होगा शिव अर्धनारीश्वर है, शक्ति भी स्वयं है और शिव के रूप में स्थूल भी स्वयं है! वही शिव आपके और मेरे भीतर भी विद्यमान है बस हमें उसकी यात्रा में उतरना है। विज्ञान रूपी ज्ञान प्राप्त करना है, छद्मता नहीं। इसीलिए गुरु के पास जाकर विज्ञान भैरव दीक्षा प्राप्त करनी होगी! विज्ञान भैरव वह दीक्षा है जो आपके भीतर एक प्रणाली के रूप में बस जाएगी इसलिए उसे तंत्र का नाम दिया! तंत्र कोई खून खराबा नहीं है, कोई हिंसा नहीं है, कोई शोषण नहीं है, तंत्र एक पद्धति है! तो विज्ञान भैरव के इस तंत्र रूपी सिद्धांत को अपने भीतर दीक्षा के माध्यम से उतार लेना! शाक्ति दीक्षा आवश्यक है इसमें ! शाक्ति दीक्षा के माध्यम से आपके भीतर वह तत्व उतर जाए फिर योग को समझ लेना, 64 योग की परंपराओं को समझ लेना; की एक-एक योगिनी के पास आखिर कौन-कौन सा योग अवस्थित है, कौन सी योग की और तंत्र की वो परंपराएं है जिसकी वो नायिका शक्तियां है और क्यों शिव बिना उनका नाम लिए मां पार्वती को अत्यंत सहज सूत्र देते हैं लेकिन सहज दिखने वाले सूत्र की थाह कितनी गहरी है! ज्यों ही दीक्षा घटित हुई त्यों ही योग की यात्रा में उतर आना, क्यों ही समाधि की ओर दृष्टिपात करना, त्यों ही कुंडलिनी को समझने की कोशिश करना, त्यों ही शिव और शक्ति को जानने के रहस्य में जूट जाना और त्यों ही विज्ञान भैरव तंत्र के अद्भुत ग्रंथ को सीने से लगा लेना! यह वह अद्भुत ग्रंथ है कि इस पृथ्वी पर महात्मा बुद्ध जैसे अवतार भी आए, उन्होंने भी विज्ञान भैरव तंत्र के सूत्र को अपना कर ध्यान के लिए उसी के सूत्र को अपने जीवन में उतारा है... हालांकि कालांतर में बहुत सारे लोग यह कहते हैं कि बौद्ध धर्म से यह सूत्र विज्ञान भैरव में आया... लेकिन याद रखिए, विज्ञान और भैरव है... भैरव याचक नहीं है; भैरव ज्ञान के किसी उपाय, किसी शैली, किसी पद्धति के याचक या उसे एकत्रित करने वाले, बीनने वाले काक अर्थात् कौवे नहीं है! भैरव सत्य के ऊपर चलने वाले, सत्य को अपने गंभीर मति से समझने वाले, और सत्य यदि समझ में ना आए तो अपने मस्तिष्क में नवीन नाड़ी तंत्र का विकास करने वाले अद्भुत शिव के गण होते हैं! आप और हम याचक नहीं है! आप और हम पुरुषार्थी है! कर्मयोग को समझने वाले हैं। इसलिए हम विज्ञान भैरव को एक नई दृष्टि से समझते हैं, हमारे भीतर विज्ञान भैरव का एक एक हिस्सा ऐसे बसा है, एक एक श्लोक, एक एक पन्ना, एक एक शब्द ऐसे बसा है जैसे हमारी इन नलिकाओं में रक्त बसा है! हम शिव की परंपराओं में पैदा होने वाले, पलने बढ़ने वाले वह नन्हे शिशु है जो युवा हो जाते है, फिर योगी बनते हैं, वृद्ध हो कर भी अपनी गरिमा को नष्ट नहीं होने देते, अपने इस विज्ञान को नष्ट नहीं होने देते,अपनी बुद्धि को भ्रमों में नहीं जाने देते! हम बाह्य आडंबरों से मुक्त है । हम विज्ञान भैरव को पढ़ते नहीं है, हम विज्ञान भैरव के सिद्धांतों को सीखते नहीं है हम उनको जीते हैं! हम गुरु से विज्ञान भैरव दीक्षा प्राप्त कर स्वयं को विज्ञान भैरव बनाने के पथ पर अग्रसर होते हैं और एक एक सांस हमारी अपने आप में विज्ञान भैरव के सूत्र है! आपके जीवन में यह विज्ञान भैरव उतर जाए, आप यह समझ सके कि आपके भीतर भी एक स्त्री है, आप यह समझ जाए कि आपके भीतर भी एक पुरुष है, आप यह समझ जाए कि आप स्त्री और पुरुष के तत्व से भी ऊपर हो, आप किसी तत्व से भयभीत ना हो। कुछ लोग, कुछ धर्म ऐसे हैं मूर्तियों को देखकर कांप जाते हैं कहते हैं यह भगवान नहीं! और कुछ धर्म ऐसे हैं जो कहते हैं कि वह सूक्ष्म भगवान नहीं, कुछ जीवित मनुष्यों में भगवान को देखते हैं,कुछ प्रकृति के तत्वों में भगवान को देखते हैं लेकिन विज्ञान भैरव वह है जो कहीं भी भ्रमित नहीं, वैज्ञानिक दृष्टि से, परम प्रज्ञा से बेहद उत्तम, पवित्र, स्थिर बुद्धि से उस परम ज्ञान को समजते है, धारण करते है... इसीलिए वो विज्ञान भैरव है! क्या आप विज्ञान भैरव हो? क्या आपके अंदर विज्ञान भैरव तत्व है? क्या आपके भीतर मां पार्वती, मां शक्ति, मां विज्ञान भैरवी आपके मस्तिष्क और हृदय में निवास करने वाली शक्ति है? जीवन में ग्रंथ केवल ग्रंथ नहीं है... याद रखिए तंत्र के ग्रंथ ग्रंथ या पुस्तकें नहीं है, कि कोई लेखक उसे लिख से और आप उसे पढ़ ले, या कोई तंत्र आचार्य या कोई तांत्रिक एक पुस्तक लिखे और कहे, "देखिए मैंने विज्ञान भैरव की व्याख्या लिख दी है और मै तुम्हे इसका उपदेश करता हूं, तुम इसे समझ जाओगे!"...गुरु का स्पर्श लीजिए ; यहां स्पर्श की अनिवार्यता है! ये तुम्हारी मनघड़ंत व्याख्याओं पर नहीं चलेगा, यहां तुम्हारे कुतर्क नहीं चलेंगे, यहां पर तुम्हारे बहाने नहीं चलेंगे! यहां को गुरु कहेगा वो तुम्हे धारण करना ही होगा। यहां जो शिव ने परंपरा दी उसको तुम्हे सत्य स्वरूप में स्वीकारना ही होगा! यहां तुम्हे इसे परंपरा के साथ इसे धारण करना होगा, तब ये ग्रंथ नहीं रहेगा, तब ये जीवित पुरुष हो जाएगा !विज्ञान भैरव तंत्र के भीतर इतने रहस्य छिपे हैं कि जानना बड़ा जटिल लगता है लेकिन परेशान होने की आवश्यकता नहीं है; गुरु शिष्य परंपरा है, मै अभी जीवित हूं! तुम भी अभी जीवित हो! मेरे बाद भी इस रहस्य को बतनेवाले हमारी परम्पराओं के पुरोधा आगे आएंगे! जिन पुरोधाओं से मैंने सीखा उन्होंने मेरे भीतर भी इसका बीज डालकर स्थापित किया था, आज अंकुरित है! आज मै चाहता हूं कि ये परंपरा मुझ तक न रहे; तुम इसे स्वीकारो, धारण करो। एक ओर भैरव जहां विकराल है वहीं सौंदर्यशाली! एक ओर जहां वो तांडव करते हैं वहीं को लास नृत्य में भी भगवती के स्वरूप के भीतर ही विद्यमान रहते हैं! जहां वो रूद्र वीणा धारण करनेवाले है, नाद और संगीत के अधिपति है, उस सदाशिव ईश्वर महादेव के बारे में मै केवल ये कह सकता हूं कि, "वही विज्ञान भैरव है!" उनके सूत्रों को समझने के लिए आपको भी विज्ञान भैरव ही होना होगा! इससे कम में समझौता होने की गुंजाइश नहीं है, संभावनाएं नहीं है; इसलिए जीवन में जितनी भी तकलीफें हो तुम्हारी मुझे नहीं पता; तुम भैरव हो लडो, पैदा ही लड़ने के लिए हुए हो; हारने के लिए नहीं। विज्ञान भैरव हो तो अपने भीतर की वीरता को जागृत रखना, अपने भयों को रोंद कर रखना और भयों से उस पार निकाल जाओ। आओ हम इस विज्ञान भैरव के एक एक पृष्ठ पर अपने आप को बिछा देते हैं! विज्ञान भैरव के एक एक शब्द को सत्य स्वरूप अपने भीतर प्रयोगात्मक रीति से उतारते है, इसे समझते हैं! मै गुरु के सानिध्य में इसे समझ रहा हूं, स्वीकार रहा हूं; तुम्हे अपने गुरु के सानिध्य में इसे समझना है! श्रेष्ठ गुरु..श्रेष्ठ शिष्य...महा भैरव.. महा भैरव के महा भैरव पुत्र... इसी प्रकार ये परंपरा आगे बढ़ रही है, बढ़ेगी। इसलिए विज्ञान भैरव को पढ़ना नहीं धारण करना! स्वीकारना नहीं आत्मसात् कर लेना! इसे गुरु से खरीद मत लेना, धारण कर लेना! आज्ञा चक्र से ब्रह्मरंध में स्थापित कर लेना, यहां से विज्ञान भैरव की शुरुआत होगी । पुस्तक से उस पार एक और विज्ञान भैरव आपकी प्रतीक्षा कर रहा है उसकी तलाश में निकल जाओ, अभी इसी समय। - महासिद्ध ईशपुत्र
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  • "ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" के दिव्य "वचन"

    ३) ये मत भूलो की जिस तरह संसार में तुम्हें संबंधी दिए गए हैं और तुम उनके और अपने सम्बन्ध को सत्य मानने लगते हो, जो केवल इसका अभ्यास करने के लिए हैं की तुम ईश्वर से अपना सम्बन्ध बना सको।
    "ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" के दिव्य "वचन" ३) ये मत भूलो की जिस तरह संसार में तुम्हें संबंधी दिए गए हैं और तुम उनके और अपने सम्बन्ध को सत्य मानने लगते हो, जो केवल इसका अभ्यास करने के लिए हैं की तुम ईश्वर से अपना सम्बन्ध बना सको।
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  • Tweets on so-called "Muslim oppression in India" & "Hindutva terrorism"

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    But trust me Leftists care about India

    #scrolllink #blast #delhi #leftist #Antihindu
    Tweets on so-called "Muslim oppression in India" & "Hindutva terrorism" Dhruv Rathee 400 Ravish 200 Arfa 300 Rana Ayyub 200 Swara Bhaskar 350 Zubair 500 Tweets on Muslim doctors involved in terrorism Dhruv Rathee 0 Ravish 0 Arfa 0 Rana Ayyub 0 Swara Bhaskar 0 Zubair 0 But trust me Leftists care about India #scrolllink #blast #delhi #leftist #Antihindu
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  • जो लोग शरजील इमाम और उमर खालिद का पक्ष सिर्फ इसलिए लेते हैं क्योंकि वो "स्टूडेंट* हैं "स्कॉलर" हैं, इंजीनियर हैं..वो ये देख लें। आतंकवाद एक जेहादी विचारधारा है इसका शिक्षा से ज्ञान से कोई सरोकार नहीं। इस विचारधारा से जुड़ा डॉक्टर भी है और इंजीनियर भी।

    #scrolllink #doctor #Muslim #jihadi #Atankwadi #islam
    जो लोग शरजील इमाम और उमर खालिद का पक्ष सिर्फ इसलिए लेते हैं क्योंकि वो "स्टूडेंट* हैं "स्कॉलर" हैं, इंजीनियर हैं..वो ये देख लें। आतंकवाद एक जेहादी विचारधारा है इसका शिक्षा से ज्ञान से कोई सरोकार नहीं। इस विचारधारा से जुड़ा डॉक्टर भी है और इंजीनियर भी। #scrolllink #doctor #Muslim #jihadi #Atankwadi #islam
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  • No India isn't.

    The word "secular" was inserted by Indira Gandhi illegally and "un-democratically".

    India as a democracy needs to revoke it as soon as possible.

    #scrolllink #constitution #democrasy #Secular #IndiraGandhi #Congress
    No India isn't. The word "secular" was inserted by Indira Gandhi illegally and "un-democratically". India as a democracy needs to revoke it as soon as possible. #scrolllink #constitution #democrasy #Secular #IndiraGandhi #Congress
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  • ओ रिंकू भाई
    काहे न सँभालते अपनी होने वाली लुगाई...

    ये भीमचट्टी सपा सांसद "प्रिया सरोज" है

    जो बोल रही कि अब ASI वाले खुदाई न करें
    और न ही कोई ऐतिहासिक मंदिर तलाश करें..

    क्यूंकि 500 साल पहले क्या हुआ इससे क्या लेनादेना

    लेकिन यही औरत बोलती 5000 साल पानी नहीं पिया, पढ़ने न दिया...

    हे भीम चट्टी सांसद कृपया दोगलापन इतना न
    दिखाओ.. कि लोग फोटो देखकर थूकने लगें

    क्या कहते हो भाई बहन लोग इसके लिए

    मैं तो बस इतना कहूंगा..... आक थू..

    #Beemati #JayBim #Neelchatti #NeeliKabootari #Neelandi #Scrolllink
    ओ रिंकू भाई काहे न सँभालते अपनी होने वाली लुगाई... ये भीमचट्टी सपा सांसद "प्रिया सरोज" है जो बोल रही कि अब ASI वाले खुदाई न करें और न ही कोई ऐतिहासिक मंदिर तलाश करें.. क्यूंकि 500 साल पहले क्या हुआ इससे क्या लेनादेना लेकिन यही औरत बोलती 5000 साल पानी नहीं पिया, पढ़ने न दिया... हे भीम चट्टी सांसद कृपया दोगलापन इतना न दिखाओ.. कि लोग फोटो देखकर थूकने लगें🖐️ क्या कहते हो भाई बहन लोग इसके लिए ✍️ मैं तो बस इतना कहूंगा..... आक थू.. #Beemati #JayBim #Neelchatti #NeeliKabootari #Neelandi #Scrolllink
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  • These are the ISIS terrorists who were arrested by Ahemdabad ATS today... They were planning terrorist attacks at multiple locations in India....

    Now repeat after me "Terrorism Has No Religion"..


    #muslims #islam #jehadi #malechchh #mulle #katuwe #scrolllink
    These are the ISIS terrorists who were arrested by Ahemdabad ATS today... They were planning terrorist attacks at multiple locations in India.... Now repeat after me "Terrorism Has No Religion".. #muslims #islam #jehadi #malechchh #mulle #katuwe #scrolllink
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  • अपनों के साथ किया गया छल,
    अपने ही अंत का आरम्भ है..।

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    अपनों के साथ किया गया छल, अपने ही अंत का आरम्भ है..। #quote #saying #thought #scrolllink
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  • नियंत्रण बहुत जरूरी है,अगर आमदनी कम हो तो खर्चों पर और जानकारी कम हो तो शब्दों पर..

    #scrolllink #quote #saying #thought
    नियंत्रण बहुत जरूरी है,अगर आमदनी कम हो तो खर्चों पर और जानकारी कम हो तो शब्दों पर.. #scrolllink #quote #saying #thought
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