तोड़ कर घमंड वो, तप करे प्रचंड वो,
रूप से है चण्ड जो, ईशपुत्र-ईशपुत्र!
हिमालय है काम्पता, काल भी है हाँफता,
पर्वत कदम से नापता, ईशपुत्र-ईशपुत्र!
दिशाएं सनसना रही, प्रचंड शीत आ रही,
श्वास भी कराह रही, ईशपुत्र-ईशपुत्र!

कौन योगी है तू? कौन देवता?
कौन विकट रूप है? मनुष्य बन के बैठा?
तुझे कौन जानता है? कौन मानता?
पुकारती है ये धरा,
ईशपुत्र-ईशपुत्र! ईशपुत्र-ईशपुत्र!
ईशपुत्र-ईशपुत्र! ईशपुत्र-ईशपुत्र!
-Yogini R Nath

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