• The Kaulantan Peeth fraternity recently celebrated Chaitra Navaratri by performing hawan for promotion of peace in this hectic times.
    We would like to retrospectively wish everyone a Happy Chaitra Navaratri 2078.
    Please enjoy the pictures.
    Namo Aadesh!
    Om Sam Siddhaya Namah!
    Om Shri Gurumandalaya Namah!
    Om Shri MahaHimalayay Namah!
    Om Shri PadmaPriya RAmapati Ishaputraya Namah!
    #iksvp #ishaputra #mahayogi #satyendranath #kaulantakpeeth #himalaya #navratri #yoga #yogini #bhairav #bhairavi #goddess #durga #shakti #yogamaya #mahamaya #Homa #Yagya
    The Kaulantan Peeth fraternity recently celebrated Chaitra Navaratri by performing hawan for promotion of peace in this hectic times. We would like to retrospectively wish everyone a Happy Chaitra Navaratri 2078. Please enjoy the pictures. Namo Aadesh! Om Sam Siddhaya Namah! Om Shri Gurumandalaya Namah! Om Shri MahaHimalayay Namah! Om Shri PadmaPriya RAmapati Ishaputraya Namah! #iksvp #ishaputra #mahayogi #satyendranath #kaulantakpeeth #himalaya #navratri #yoga #yogini #bhairav #bhairavi #goddess #durga #shakti #yogamaya #mahamaya #Homa #Yagya
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  • मार्कण्डेय पुराण के अनुसार द्वितीय नवरात्र की देवी का नाम ब्रह्मचारिणी देवी है, ये ब्रह्मचारिणी देवी भी गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती ही हैं, एक समय की बात है कि देव ऋषि नारद पर्वतराज हिमालय के महल पहुंचे, जहाँ पर्वत राज हिमालय की प्रार्थना पर उनहोंने बालिका पार्वती की जन्म पत्रिका शोधी और उनका भाग्य बताते हुये कहा कि इस कन्या का विवाह तो त्रिलोकीनाथ भगवान शिव से होगा, ये सुन कर देवी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने कि इच्छा से कठोर तप करना शुरू कर दिया, देवी ने भोजन पानी त्याग दिया श्वेत वस्त्र धारण कर लिए, हाथों में कमंडल और माला ले कर, कठोर तपस्वियों जैसा जीवन जीने लगी, जैसे जैसे तप बढ़ता गया, तीनो लोकों में हा हा कार मच गया, इन्द्र की पदवी भी स्वर्ग में डोलने लगी, तब सभी देवताओं को जिज्ञासा हुई कि पृथ्वी पर कौन ऐसा तपस्वी है और वे उसे ढूडने हिमालय जा पहुंचे, जहाँ उनहोंने देवी पार्वती जी के दर्शन ब्रह्मचारिणी देवी के रूप में किये, जिनके दिव्य तेज से समस्त लोक प्रकाशित हो रहे थे, महाशक्ति के ऐसे रूप के दर्शन कर सभी पवित्र हो गए, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं व मुक्ति प्राप्त करते है, सभी आध्यात्मिक शक्तियों कि जननी भी ब्रह्मचारिणी देवी ही हैं,

    हिमालय पर कठोर तपस्या करने के कारण व तपस्या नियमों को पालने के कारने देवी का नाम पड़ा ब्रह्मचारिणी, महाशक्ति ब्रह्मचारिणी माँ पार्वती जी का तपस्वी स्वरुप का ही नाम है, कठोर सात्विक तपस्या से तीनों लोकों को प्रभावित करने के कारण भी देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं, देवी कृपा से ही मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय व तीसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,



    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)



    देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे दिन का प्रमुख मंत्र है

    मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै नम:

    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें

    जैसे मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै स्वाहा:



    माता के मात्र का जाप करने के लिए तुलसी की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ



    यन्त्र-

    777 298 307

    621 543 991

    931 053 777



    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को saphed रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार लाल किनारे वाले सफेद रंग के वस्त्रों से किया जाता है, सफेद या लाल रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को सफेद चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा केवल सुबह ही की जाती है, शाम की पूजा की अपेक्षा देवी ब्रह्मचारिणी की साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त का ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी ब्रह्म मुहूर्त या सुबह के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन किया होना चाहिए साथ ही मंत्र जाप को फलीभूत होने के लिए रेत में कलश के निकट गेहूं के जवारे उगायें, कलश में गंगाजल और पंचामृत भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करना चाहिए यदि पहले दिन कलश स्थापित किया है तो केवल कलश पूजा करें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए



    मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं



    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को श्वेत वस्त्र तुलसी माला तथा कुशा का आसन आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में कमंडल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, स्वाधिष्ठान चक्र में देवी का ध्यान करने से द्वितीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में दूध मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,



    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै



    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और कूएं का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए , आज सुहागिन स्त्रियों को भी अधिक श्रृंगारनहीं करना चाहिए, स्वयम भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे विद्या रोजगार की समस्या हो या याददाश्त कमजोर होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं

    देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ श्रीं बुद्धि स्वरूपिन्ये महिषासुर सैन्यनाशिनयै नम:(न आधा लगेगा)

    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें

    व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें

    ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भितिमशेषजन्तो:

    स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि

    दारिद्रयदुःखभयहारिणी का त्वदन्या

    सर्वोपकारकरणाय सदाआर्द्रचित्ता



    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा दूसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी सात्विक शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज दूसरे नवरात्र को दो कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ मोतियों या रक्तचंदन की माला देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, दूसरे नवरात्र को अपने गुरु से "सत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्ण आत्मिक, दैहिक, मानसिक पवित्रता की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, दूसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले दूसरे नवरात्र का ब्रत ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्या पराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर

    महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
    #Navaratri #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani
    मार्कण्डेय पुराण के अनुसार द्वितीय नवरात्र की देवी का नाम ब्रह्मचारिणी देवी है, ये ब्रह्मचारिणी देवी भी गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती ही हैं, एक समय की बात है कि देव ऋषि नारद पर्वतराज हिमालय के महल पहुंचे, जहाँ पर्वत राज हिमालय की प्रार्थना पर उनहोंने बालिका पार्वती की जन्म पत्रिका शोधी और उनका भाग्य बताते हुये कहा कि इस कन्या का विवाह तो त्रिलोकीनाथ भगवान शिव से होगा, ये सुन कर देवी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने कि इच्छा से कठोर तप करना शुरू कर दिया, देवी ने भोजन पानी त्याग दिया श्वेत वस्त्र धारण कर लिए, हाथों में कमंडल और माला ले कर, कठोर तपस्वियों जैसा जीवन जीने लगी, जैसे जैसे तप बढ़ता गया, तीनो लोकों में हा हा कार मच गया, इन्द्र की पदवी भी स्वर्ग में डोलने लगी, तब सभी देवताओं को जिज्ञासा हुई कि पृथ्वी पर कौन ऐसा तपस्वी है और वे उसे ढूडने हिमालय जा पहुंचे, जहाँ उनहोंने देवी पार्वती जी के दर्शन ब्रह्मचारिणी देवी के रूप में किये, जिनके दिव्य तेज से समस्त लोक प्रकाशित हो रहे थे, महाशक्ति के ऐसे रूप के दर्शन कर सभी पवित्र हो गए, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं व मुक्ति प्राप्त करते है, सभी आध्यात्मिक शक्तियों कि जननी भी ब्रह्मचारिणी देवी ही हैं, हिमालय पर कठोर तपस्या करने के कारण व तपस्या नियमों को पालने के कारने देवी का नाम पड़ा ब्रह्मचारिणी, महाशक्ति ब्रह्मचारिणी माँ पार्वती जी का तपस्वी स्वरुप का ही नाम है, कठोर सात्विक तपस्या से तीनों लोकों को प्रभावित करने के कारण भी देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं, देवी कृपा से ही मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय व तीसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें, महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै स्वाहा: माता के मात्र का जाप करने के लिए तुलसी की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 777 298 307 621 543 991 931 053 777 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को saphed रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार लाल किनारे वाले सफेद रंग के वस्त्रों से किया जाता है, सफेद या लाल रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को सफेद चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा केवल सुबह ही की जाती है, शाम की पूजा की अपेक्षा देवी ब्रह्मचारिणी की साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त का ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी ब्रह्म मुहूर्त या सुबह के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन किया होना चाहिए साथ ही मंत्र जाप को फलीभूत होने के लिए रेत में कलश के निकट गेहूं के जवारे उगायें, कलश में गंगाजल और पंचामृत भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करना चाहिए यदि पहले दिन कलश स्थापित किया है तो केवल कलश पूजा करें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को श्वेत वस्त्र तुलसी माला तथा कुशा का आसन आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में कमंडल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, स्वाधिष्ठान चक्र में देवी का ध्यान करने से द्वितीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में दूध मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए, चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और कूएं का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए , आज सुहागिन स्त्रियों को भी अधिक श्रृंगारनहीं करना चाहिए, स्वयम भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे विद्या रोजगार की समस्या हो या याददाश्त कमजोर होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ श्रीं बुद्धि स्वरूपिन्ये महिषासुर सैन्यनाशिनयै नम:(न आधा लगेगा) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भितिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि दारिद्रयदुःखभयहारिणी का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाआर्द्रचित्ता यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा दूसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी सात्विक शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज दूसरे नवरात्र को दो कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ मोतियों या रक्तचंदन की माला देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, दूसरे नवरात्र को अपने गुरु से "सत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्ण आत्मिक, दैहिक, मानसिक पवित्रता की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, दूसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले दूसरे नवरात्र का ब्रत ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्या पराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज #Navaratri #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani
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  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार प्रथम नवरात्र की देवी का नाम शैलपुत्री देवी है, इन शैलपुत्री देवी को गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में हम जानते हैं, शैलपुत्री के नाम से माँ पार्वती जी को त्रिलोकी भर में पूजा जाता है, और यही देवी सबकी अधीश्वरी है, एक समय की बात है कि पर्वत राज हिमालय ने कठोर तप कर माँ योगमाया को प्रसन्न किया, जब योगमाया के उनको दिव्य दर्शन हुये तो माता ने हिमालय को वर माँगने को कहा, तब पर्वत राज हिमालय ने योगमाया से कहा कि वे उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेँ, माता ने प्रसन्न हो कर पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लिया, हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में हिमाचल के घर पैदा हुई, पर्वत राज की पुत्री होने के कारण व कठोर तपस्वी सवभाव के कारण उनका नाम शैल पुत्री पड़ गया, माता शैल पुत्री का भक्त जीवन में कभी हारता नहीं, दुःख कोसों दूर से भक्त को देख कर भाग जाते हैं, शैल पुत्री के भक्त दृद निश्चयी, विश्वविजेता होते हैं, यदि आप सदा भयभीत रहते हों, जीवन कि सही दिशा नहीं ढून्ढ पा रहे हों, उदास जीवन में कोई सहारा न बचा हो, सब और शत्रु ही शत्रु हो गए हों, तो माता को मनाने का सबसे सही वक्त आ गया है, अब माता की पूजा आपकी सदा रक्षा करेगी,शुम्भ-निशुम्भ जैसे राक्षसों का नाश करने वाली देवी आपके जीवन के सब संकट हर लेगी, नवरात्रों में देवी स्वयं भक्तों के पास चल कर आती हैं, केवल उनको सच्चे मन से पुकारने की जरूरत होती है, आज हम आपको बताएँगे कि कैसे होंगी देवी शैलपुत्री प्रसन्न, वो कौन से मंत्र हैं जो माँ को खींच कर आपकी और ले आयेंगे, वो कौन सा यन्त्र हैं जिसकी सथापना से शैलपुत्री की सथापना हो जायेगी, किस रंग के वस्त्र माता को पहनाएं अथवा माता का श्रृंगार कैसे करें ? यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो आज हम आपको बताएँगे सही बिधि-बिधान जो माता कि कृपा ले कर आएगा





    हिमालय के घर पैदा होने के करण देवी का नाम पड़ा शैलपुत्री,शैलपुत्री माँ पार्वती जी का ही नाम है , कठोर तपस्वी स्वभाव के कारण भी देवी को शैल पुत्री कहा जाता है , देवी शैलपुत्री का भक्त जीवन में कभी नहीं हारता, देवी का नाम भर लेने से दुःख कोसों दूर से भाग जाते हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए पहले नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय का पाठ करना चाहिए, जब भी पाठ करें तो पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, सकाम इच्छा के लिए तो विशुद्ध संस्कृत में ही पाठ होना चाहिए लेकिन निष्काम भक्त हिंदी में व संस्कृत दोनों में पाठ कर सकते हैं, यदि आप किसी मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो देवी के नवारण महामंत्र का जाप पूरे नवरात्र भर करते रहें

    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे ।

    देवी शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए पहले दिन का प्रमुख मंत्र है

    मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं शैलपुत्री देव्यै नम: ।


    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें

    जैसे मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं शैलपुत्री देव्यै स्वाहा:


    माता के मात्र का जाप करने के लिए स्फटिक या रत्नों से बनी माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ पर बना लेँ

    यन्त्र-

    578 098 395

    842 576 998

    224 862 627


    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को गुलाबी रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार गुलाबी रंग के वस्त्रों से किया जाता है, इसी रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की पूजा सुबह और शाम दोनों समय की जाती है, शाम की पूजा मध्य रात्री तक होती है और रात्री की पूजा का ही सबसे ज्यादा महत्त्व माना गया है

    मंत्र जाप के लिए भी रात्री के समय का ही प्रयोग करें, यदि आप पूरे नवरात्रों की पूजा कर रहे हों तो एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन का बड़ा ही महत्त्व है, आप भी एक कलश में गंगाजल भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करें, पूजा स्थान पर एक भगवे रंग की ध्वजा जरूर स्थापित करें जो सब बाधाओं का नाश करती है, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें

    यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए,

    मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं


    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी के वाहन बृषभ यानि कि बैल कि पूजा करनी चाहिए तथा बैलों को भोजन घास आदि देना चाहिए, मंदिर में त्रिशूल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, मूलाधार चक्र में देवी का ध्यान करने से प्रथम चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए


    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै


    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और तीन नदियों का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए

    नवरात्रों में तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, सुहागिन स्त्रियों को श्रृंगार करके व मेहंदी आदि लगा कर ही सौभाग्यशालिनी बन ब्रत व पूजा करनी चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे घर, वाहन, की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं,

    देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ ह्रीं रेत: स्वरूपिन्ये मधु कैटभमर्दिन्ये नम:

    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें

    व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें

    ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसी देवी भगवती ही सा

    बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति


    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा पहले नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी परवत पर स्थित शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज प्रथम नवरात्र को एक कन्या का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ पत्थर का एक शिवलिंग देना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, प्रथम नवरात्र को अपने गुरु से "बज्र दीक्षा"लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्व जन्म की स्मृति व भविष्य बोध की स्मृति शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, प्रथम नवरात्र पर होने वाले हवन में गुगुल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व गूगुल जलना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले प्रथम नवरात्र का ब्रत सवा आठ बजे खोलेंगे,ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर बूंदी का प्रसाद बांटना चाहिए, श्रृंगार अवश्य करें,किन्तु अति और अभद्र श्रृंगार से बचाना चाहिए न ही ऐसे वस्त्र धारण करने चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए
    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
    #Navaratri #नवरात्रि #Parv #Utsav #Sadhana #साधना #Mantra #मंत्र #Ishaputra
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार प्रथम नवरात्र की देवी का नाम शैलपुत्री देवी है, इन शैलपुत्री देवी को गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में हम जानते हैं, शैलपुत्री के नाम से माँ पार्वती जी को त्रिलोकी भर में पूजा जाता है, और यही देवी सबकी अधीश्वरी है, एक समय की बात है कि पर्वत राज हिमालय ने कठोर तप कर माँ योगमाया को प्रसन्न किया, जब योगमाया के उनको दिव्य दर्शन हुये तो माता ने हिमालय को वर माँगने को कहा, तब पर्वत राज हिमालय ने योगमाया से कहा कि वे उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेँ, माता ने प्रसन्न हो कर पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लिया, हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में हिमाचल के घर पैदा हुई, पर्वत राज की पुत्री होने के कारण व कठोर तपस्वी सवभाव के कारण उनका नाम शैल पुत्री पड़ गया, माता शैल पुत्री का भक्त जीवन में कभी हारता नहीं, दुःख कोसों दूर से भक्त को देख कर भाग जाते हैं, शैल पुत्री के भक्त दृद निश्चयी, विश्वविजेता होते हैं, यदि आप सदा भयभीत रहते हों, जीवन कि सही दिशा नहीं ढून्ढ पा रहे हों, उदास जीवन में कोई सहारा न बचा हो, सब और शत्रु ही शत्रु हो गए हों, तो माता को मनाने का सबसे सही वक्त आ गया है, अब माता की पूजा आपकी सदा रक्षा करेगी,शुम्भ-निशुम्भ जैसे राक्षसों का नाश करने वाली देवी आपके जीवन के सब संकट हर लेगी, नवरात्रों में देवी स्वयं भक्तों के पास चल कर आती हैं, केवल उनको सच्चे मन से पुकारने की जरूरत होती है, आज हम आपको बताएँगे कि कैसे होंगी देवी शैलपुत्री प्रसन्न, वो कौन से मंत्र हैं जो माँ को खींच कर आपकी और ले आयेंगे, वो कौन सा यन्त्र हैं जिसकी सथापना से शैलपुत्री की सथापना हो जायेगी, किस रंग के वस्त्र माता को पहनाएं अथवा माता का श्रृंगार कैसे करें ? यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो आज हम आपको बताएँगे सही बिधि-बिधान जो माता कि कृपा ले कर आएगा हिमालय के घर पैदा होने के करण देवी का नाम पड़ा शैलपुत्री,शैलपुत्री माँ पार्वती जी का ही नाम है , कठोर तपस्वी स्वभाव के कारण भी देवी को शैल पुत्री कहा जाता है , देवी शैलपुत्री का भक्त जीवन में कभी नहीं हारता, देवी का नाम भर लेने से दुःख कोसों दूर से भाग जाते हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए पहले नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय का पाठ करना चाहिए, जब भी पाठ करें तो पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, सकाम इच्छा के लिए तो विशुद्ध संस्कृत में ही पाठ होना चाहिए लेकिन निष्काम भक्त हिंदी में व संस्कृत दोनों में पाठ कर सकते हैं, यदि आप किसी मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो देवी के नवारण महामंत्र का जाप पूरे नवरात्र भर करते रहें महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे । देवी शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए पहले दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं शैलपुत्री देव्यै नम: । दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं शैलपुत्री देव्यै स्वाहा: माता के मात्र का जाप करने के लिए स्फटिक या रत्नों से बनी माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ पर बना लेँ यन्त्र- 578 098 395 842 576 998 224 862 627 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को गुलाबी रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार गुलाबी रंग के वस्त्रों से किया जाता है, इसी रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की पूजा सुबह और शाम दोनों समय की जाती है, शाम की पूजा मध्य रात्री तक होती है और रात्री की पूजा का ही सबसे ज्यादा महत्त्व माना गया है मंत्र जाप के लिए भी रात्री के समय का ही प्रयोग करें, यदि आप पूरे नवरात्रों की पूजा कर रहे हों तो एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन का बड़ा ही महत्त्व है, आप भी एक कलश में गंगाजल भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करें, पूजा स्थान पर एक भगवे रंग की ध्वजा जरूर स्थापित करें जो सब बाधाओं का नाश करती है, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए, मंत्र-ॐ ग्लौम ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी के वाहन बृषभ यानि कि बैल कि पूजा करनी चाहिए तथा बैलों को भोजन घास आदि देना चाहिए, मंदिर में त्रिशूल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, मूलाधार चक्र में देवी का ध्यान करने से प्रथम चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और तीन नदियों का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए नवरात्रों में तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, सुहागिन स्त्रियों को श्रृंगार करके व मेहंदी आदि लगा कर ही सौभाग्यशालिनी बन ब्रत व पूजा करनी चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे घर, वाहन, की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ ह्रीं रेत: स्वरूपिन्ये मधु कैटभमर्दिन्ये नम: नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसी देवी भगवती ही सा बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा पहले नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी परवत पर स्थित शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज प्रथम नवरात्र को एक कन्या का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ पत्थर का एक शिवलिंग देना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, प्रथम नवरात्र को अपने गुरु से "बज्र दीक्षा"लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्व जन्म की स्मृति व भविष्य बोध की स्मृति शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, प्रथम नवरात्र पर होने वाले हवन में गुगुल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व गूगुल जलना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले प्रथम नवरात्र का ब्रत सवा आठ बजे खोलेंगे,ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर बूंदी का प्रसाद बांटना चाहिए, श्रृंगार अवश्य करें,किन्तु अति और अभद्र श्रृंगार से बचाना चाहिए न ही ऐसे वस्त्र धारण करने चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज #Navaratri #नवरात्रि #Parv #Utsav #Sadhana #साधना #Mantra #मंत्र #Ishaputra
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  • ------दुर्गा सप्तशती-----
    दुर्गा सप्तशती हिन्दू धर्म का एक महान ग्रंथ है, जिसे मार्कण्डेय पुराण का अंग माना जाता है। इसे चण्डी पाठ या देवी महात्म्य के नाम से भी जाना जाता है। इसमें १३ अध्याय और ७०० श्लोक हैं, इसीलिए इसका नाम सप्तशती पड़ा। यह ग्रंथ शक्ति की उपासना का सर्वोत्तम आधार है, जिसमें देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों, उनकी लीलाओं और असुरों पर विजय की महिमा का वर्णन मिलता है।

    दुर्गा सप्तशती में देवी के तीन प्रमुख स्वरूपों—महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती—का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। इसमें महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ, चण्ड-मुण्ड और अन्य राक्षसों के वध की कथा आती है, जो यह सिद्ध करती है कि जब-जब अधर्म बढ़ता है, तब-तब देवी अपने रूपों में प्रकट होकर धर्म की रक्षा करती हैं।

    नवरात्रि के दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ विशेष फलदायी माना जाता है। श्रद्धालु इसे पढ़कर अपने जीवन में शक्ति, साहस और समृद्धि की प्राप्ति करते हैं। यह ग्रंथ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक बल और मानसिक शांति प्रदान करने वाला भी है।

    #DurgaSaptashati #Duragapuja #Kurukulla #navaratri #chandiPath #scrolllink
    ------दुर्गा सप्तशती----- दुर्गा सप्तशती हिन्दू धर्म का एक महान ग्रंथ है, जिसे मार्कण्डेय पुराण का अंग माना जाता है। इसे चण्डी पाठ या देवी महात्म्य के नाम से भी जाना जाता है। इसमें १३ अध्याय और ७०० श्लोक हैं, इसीलिए इसका नाम सप्तशती पड़ा। यह ग्रंथ शक्ति की उपासना का सर्वोत्तम आधार है, जिसमें देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों, उनकी लीलाओं और असुरों पर विजय की महिमा का वर्णन मिलता है। दुर्गा सप्तशती में देवी के तीन प्रमुख स्वरूपों—महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती—का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। इसमें महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ, चण्ड-मुण्ड और अन्य राक्षसों के वध की कथा आती है, जो यह सिद्ध करती है कि जब-जब अधर्म बढ़ता है, तब-तब देवी अपने रूपों में प्रकट होकर धर्म की रक्षा करती हैं। नवरात्रि के दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ विशेष फलदायी माना जाता है। श्रद्धालु इसे पढ़कर अपने जीवन में शक्ति, साहस और समृद्धि की प्राप्ति करते हैं। यह ग्रंथ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक बल और मानसिक शांति प्रदान करने वाला भी है। #DurgaSaptashati #Duragapuja #Kurukulla #navaratri #chandiPath #scrolllink
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  • Durga Puja is one of the most important festivals in India, especially celebrated with great joy in West Bengal and many other states. It honors Goddess Durga, who symbolizes power and the victory of good over evil. The festival usually takes place in the month of September or October and lasts for several days. Beautiful idols of Goddess Durga are placed in decorated pandals, where people gather to pray, sing, dance, and enjoy cultural programs. Families and friends wear new clothes, share special food, and celebrate together. On the last day, called Vijayadashami, the idols are immersed in rivers or seas, marking the end of the festival and spreading the message of peace, strength, and goodness.’ -Life Unfold

    #jaiMataDi #DurgaPuja #Navaratri #kurukulla #Kaulantakpeeth #kulantPeeth
    Durga Puja is one of the most important festivals in India, especially celebrated with great joy in West Bengal and many other states. It honors Goddess Durga, who symbolizes power and the victory of good over evil. The festival usually takes place in the month of September or October and lasts for several days. Beautiful idols of Goddess Durga are placed in decorated pandals, where people gather to pray, sing, dance, and enjoy cultural programs. Families and friends wear new clothes, share special food, and celebrate together. On the last day, called Vijayadashami, the idols are immersed in rivers or seas, marking the end of the festival and spreading the message of peace, strength, and goodness.’ -Life Unfold #jaiMataDi #DurgaPuja #Navaratri #kurukulla #Kaulantakpeeth #kulantPeeth
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