• मार्कंडेय पुराण के अनुसार तृतीय नवरात्र की देवी का नाम चंद्रघंटा देवी है, निगम ग्रंथों में निहित कथा के अनुसार जब भगवान् शिव ने देवी को समस्त विद्ययों का ज्ञान प्रदान करना शुरू किया तो देवी उस ज्ञान का तप के लिए प्रयोग करने लगी, लगातार आगम निगमों का ज्ञान प्राप्त कर देवी महातेजस्विनी हो गयी व सभी कलाओं सहित तेज पुंज बन योगमाया के रूप में स्थित हो गयी, तब प्रसन्न हो कर शिव ने देवी को अपने साथ एकाकार कर अर्धनारीश्वर रूप धरा, उस समय देवी पार्वती जी को अपने वास्तविक स्वरुप का बोद्ध हुआ, तब शिव से अलग हो आकाश में देवी ने सिंह पर स्वर हो दस भुजाओं वाला एक अद्भुत रूप धारण किया, हाथों में कमल पुष्प धनुष त्रिशूल,गदा, तलवार सहित वर अभी मुद्रा धारण की, क्योंकि देवी तपस्विनी रूप में थी तो एक हाथ में माला और एक हाथ में उनहोंने कमंडल धारण कर लिया, सभी ऋषि मुनि देवता देवी के तेज को सः नहीं पा रहे थे तो भगवान शिव ने चन्द्रमा को देवी के शीर्ष स्थान पर बिराजने को कहा, जिससे उनका तेजस्वी स्वरूप अब और भी सुन्दर तथा शीतल हो गया, तब सभी देवताओं नें देवी की जय जयकार की तथा उनको चंद्रघंटा देवी के नाम से पुकारा,जो भी भक्त देवी के ऐसे दिव्य रूप की पूजा करता है, वो एक साथ संसार में भी तथा मुक्ति के मार्ग पर भी एक ही समय चल सकता है, भौतिक संसार में तो आगे बढ़ता ही है साथ अध्यात्म में भी शिखर पर रहता है, सभी विद्यार्थियों, साधको, भक्तों को ऐसी देवी के दर्शनों से महासिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, ऐसे व्यक्ति को अहंकार रहित ज्ञान प्राप्त होता है, देवी को पूजने वाले को सवयम देवता भी पूजते हैं

    आकाश मंडल में चन्द्रमा को अपने शीश पर धारण करने के कारण देवी का नाम पड़ा चंद्रघंटा, महाशक्ति चंद्रघंटा माँ पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सर्व कलाओं को धारण करने से उत्पन्न हुआ
    अपनी सभी कलाओं को अध्यात्म धर्म सहित धारण करने के कारण ही देवी को चंद्रघंटा कहा जाता है, देवी के उपासक एक साथ ही संसार में जीते हुये परम मुक्ति के मार्ग पर भी चल सकते है, जिस कारण देवी की बड़ी महिमा गई जाती है, देवी कृपा से ही भक्त को संसार के सभी सुख तथा मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए तीसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है
    यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,

    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
    (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)

    देवी चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है
    मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं चंद्रघंटा देव्यै नम:
    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
    जैसे मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं चंद्रघंटा देव्यै स्वाहा:
    माता के मंत्र का जाप करने के लिए रक्त चन्दन की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ

    यन्त्र-
    539 907 234
    227 876 191
    654 812 902

    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार लाल रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा केवल सायकाल को ही की जाती है, शाम की पूजा का चंद्रघंटा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी संध्या मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए

    मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं

    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को कमल पुष्प, रक्त चन्दन की माला तथा सफेद फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए,मंदिर में लाल रंग की चुनरी चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, मणिपुर चक्र में देवी का ध्यान करने से तृतीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,

    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै

    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, तीसरे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और बर्फ (हिमजल) का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए
    तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे घरेलु कलह से मुक्ति हो, विवाह नहीं हो पा रहा हो, प्रेम प्राप्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ रं रक्त स्वरूपिन्ये महिषासुर मर्दिन्ये नम:
    (न आधा लगेगा व न की जगह ण होगा )

    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें,

    ॐ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
    शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणि नमोस्तुते

    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा तीसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी नाड़ी के निकट स्थित शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज तीसरे नवरात्र को तीन कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ चूड़ियाँ व श्रृंगार प्रसाद देना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, तीसरे नवरात्र को अपने गुरु से "उज्जवल दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, तीसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में खीर से हवन करना चाहिए
    ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले तीसरे नवरात्र का ब्रत आठ बीस साय खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर हलवा पूरी का प्रसाद बांटना चाहिए,आज सुहागिन स्त्रियों को लाल वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और हल्के लाल रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri #Mantra #Tantra #Yantra
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार तृतीय नवरात्र की देवी का नाम चंद्रघंटा देवी है, निगम ग्रंथों में निहित कथा के अनुसार जब भगवान् शिव ने देवी को समस्त विद्ययों का ज्ञान प्रदान करना शुरू किया तो देवी उस ज्ञान का तप के लिए प्रयोग करने लगी, लगातार आगम निगमों का ज्ञान प्राप्त कर देवी महातेजस्विनी हो गयी व सभी कलाओं सहित तेज पुंज बन योगमाया के रूप में स्थित हो गयी, तब प्रसन्न हो कर शिव ने देवी को अपने साथ एकाकार कर अर्धनारीश्वर रूप धरा, उस समय देवी पार्वती जी को अपने वास्तविक स्वरुप का बोद्ध हुआ, तब शिव से अलग हो आकाश में देवी ने सिंह पर स्वर हो दस भुजाओं वाला एक अद्भुत रूप धारण किया, हाथों में कमल पुष्प धनुष त्रिशूल,गदा, तलवार सहित वर अभी मुद्रा धारण की, क्योंकि देवी तपस्विनी रूप में थी तो एक हाथ में माला और एक हाथ में उनहोंने कमंडल धारण कर लिया, सभी ऋषि मुनि देवता देवी के तेज को सः नहीं पा रहे थे तो भगवान शिव ने चन्द्रमा को देवी के शीर्ष स्थान पर बिराजने को कहा, जिससे उनका तेजस्वी स्वरूप अब और भी सुन्दर तथा शीतल हो गया, तब सभी देवताओं नें देवी की जय जयकार की तथा उनको चंद्रघंटा देवी के नाम से पुकारा,जो भी भक्त देवी के ऐसे दिव्य रूप की पूजा करता है, वो एक साथ संसार में भी तथा मुक्ति के मार्ग पर भी एक ही समय चल सकता है, भौतिक संसार में तो आगे बढ़ता ही है साथ अध्यात्म में भी शिखर पर रहता है, सभी विद्यार्थियों, साधको, भक्तों को ऐसी देवी के दर्शनों से महासिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, ऐसे व्यक्ति को अहंकार रहित ज्ञान प्राप्त होता है, देवी को पूजने वाले को सवयम देवता भी पूजते हैं आकाश मंडल में चन्द्रमा को अपने शीश पर धारण करने के कारण देवी का नाम पड़ा चंद्रघंटा, महाशक्ति चंद्रघंटा माँ पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सर्व कलाओं को धारण करने से उत्पन्न हुआ अपनी सभी कलाओं को अध्यात्म धर्म सहित धारण करने के कारण ही देवी को चंद्रघंटा कहा जाता है, देवी के उपासक एक साथ ही संसार में जीते हुये परम मुक्ति के मार्ग पर भी चल सकते है, जिस कारण देवी की बड़ी महिमा गई जाती है, देवी कृपा से ही भक्त को संसार के सभी सुख तथा मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए तीसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें, महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं चंद्रघंटा देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं चंद्रघंटा देव्यै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए रक्त चन्दन की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 539 907 234 227 876 191 654 812 902 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार लाल रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा केवल सायकाल को ही की जाती है, शाम की पूजा का चंद्रघंटा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी संध्या मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को कमल पुष्प, रक्त चन्दन की माला तथा सफेद फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए,मंदिर में लाल रंग की चुनरी चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, मणिपुर चक्र में देवी का ध्यान करने से तृतीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए, चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, तीसरे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और बर्फ (हिमजल) का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे घरेलु कलह से मुक्ति हो, विवाह नहीं हो पा रहा हो, प्रेम प्राप्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ रं रक्त स्वरूपिन्ये महिषासुर मर्दिन्ये नम: (न आधा लगेगा व न की जगह ण होगा ) नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें, ॐ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणि नमोस्तुते यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा तीसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी नाड़ी के निकट स्थित शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज तीसरे नवरात्र को तीन कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ चूड़ियाँ व श्रृंगार प्रसाद देना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, तीसरे नवरात्र को अपने गुरु से "उज्जवल दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, तीसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में खीर से हवन करना चाहिए ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले तीसरे नवरात्र का ब्रत आठ बीस साय खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर हलवा पूरी का प्रसाद बांटना चाहिए,आज सुहागिन स्त्रियों को लाल वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और हल्के लाल रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri #Mantra #Tantra #Yantra
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  • Chandraghanta Devi is the third form of Goddess Durga, worshipped on the third day of Navratri. She is known for the half-moon shaped like a bell (ghanta) adorning her forehead, which gives her the name Chandraghanta. Radiant with golden complexion and riding a lion, she symbolizes both grace and bravery. With ten arms carrying various weapons and a lotus, she represents strength, protection, and serenity at once. Devotees believe that worshipping Chandraghanta Devi removes fears, grants courage, and fills life with peace and prosperity. She embodies the balance of calm devotion and fierce protection, teaching that true strength lies in harmony.’ -Life Unfold

    #durga #chandraghanta #kurukulla #Devi #navratra #scrolllink
    Chandraghanta Devi is the third form of Goddess Durga, worshipped on the third day of Navratri. She is known for the half-moon shaped like a bell (ghanta) adorning her forehead, which gives her the name Chandraghanta. Radiant with golden complexion and riding a lion, she symbolizes both grace and bravery. With ten arms carrying various weapons and a lotus, she represents strength, protection, and serenity at once. Devotees believe that worshipping Chandraghanta Devi removes fears, grants courage, and fills life with peace and prosperity. She embodies the balance of calm devotion and fierce protection, teaching that true strength lies in harmony.’ -Life Unfold #durga #chandraghanta #kurukulla #Devi #navratra #scrolllink
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  • https://youtu.be/BWARsVKaTAo?si=BZ50gQkQbgKBMgow #Ishaputra #KaulantakPeeth
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  • समस्त भूत-प्रेत, ऊपरी बाधाओं की रोक, नकारात्मक शक्ति की रोक, समस्यायों के निवारण, कृत्या परिहार, ग्रह बाधा निवारण सहित देवी की परम कृपा हेतु आरती श्रवण व गायन श्रेष्ठ उपाय है। आपके जीवन में मंगल हो, दिव्य प्रकाश हो और देवी की परम अनुपम कृपा हो इसी इच्छा के साथ, आपकी सेवा में अर्पित है ये आरती कौलान्तक पीठ टीम- हिमालय ।
    तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी,
    तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी।
    जय जय रासरते, जय जय रासरते। 03
    तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला, तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला।

    तंत्र मंत्र है सारे तुझसे,
    तंत्र मंत्र है सारे तुझसे।
    योग जप तप सिद्धि और भक्ति,
    योग जप तप सिद्धि और भक्ति।
    भोग मोक्ष है सूत्र तेरे,
    भोग मोक्ष है सूत्र तेरे ।
    तू ही आदिशक्ति !

    तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी,
    तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी।
    जय जय रासरते, जय जय रासरते। 02
    तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला, तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला।

    वेद पुराण है बालक तेरे,
    वेद पुराण है बालक तेरे।
    सहस्त्रभुजा देवी कुरुकुल्ला,
    सहस्त्रभुजा देवी कुरुकुल्ला।
    रक्त वर्ण तेरा पीत वर्ण है,
    रक्त वर्ण तेरा पीत वर्ण है।
    माया रूप विकुल्ला!

    तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी,
    तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी।
    जय जय रासरते, जय जय रासरते। 02
    तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला, तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला।

    आगम निगम प्रदात्री तू ही,
    आगम निगम प्रदात्री तू ही।
    शिव संग रास रचाती,
    शिव संग रास रचाती।
    परम तंत्र स्वतंत्र तू ही,
    परम तंत्र स्वतंत्र तू ही।
    वर अभिष्टदात्री !

    तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी,
    तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी,
    जय जय रासरते जय जय रासरते।
    तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी,
    तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी,
    जय जय रासरते जय जय रासरते।
    #Ishaputra #Kurukulla #Sukulla #Vikulla #KaulantakPeeth #KaulantakVani
    समस्त भूत-प्रेत, ऊपरी बाधाओं की रोक, नकारात्मक शक्ति की रोक, समस्यायों के निवारण, कृत्या परिहार, ग्रह बाधा निवारण सहित देवी की परम कृपा हेतु आरती श्रवण व गायन श्रेष्ठ उपाय है। आपके जीवन में मंगल हो, दिव्य प्रकाश हो और देवी की परम अनुपम कृपा हो इसी इच्छा के साथ, आपकी सेवा में अर्पित है ये आरती कौलान्तक पीठ टीम- हिमालय । तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी, तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी। जय जय रासरते, जय जय रासरते। 03 तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला, तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला। तंत्र मंत्र है सारे तुझसे, तंत्र मंत्र है सारे तुझसे। योग जप तप सिद्धि और भक्ति, योग जप तप सिद्धि और भक्ति। भोग मोक्ष है सूत्र तेरे, भोग मोक्ष है सूत्र तेरे । तू ही आदिशक्ति ! तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी, तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी। जय जय रासरते, जय जय रासरते। 02 तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला, तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला। वेद पुराण है बालक तेरे, वेद पुराण है बालक तेरे। सहस्त्रभुजा देवी कुरुकुल्ला, सहस्त्रभुजा देवी कुरुकुल्ला। रक्त वर्ण तेरा पीत वर्ण है, रक्त वर्ण तेरा पीत वर्ण है। माया रूप विकुल्ला! तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी, तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी। जय जय रासरते, जय जय रासरते। 02 तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला, तू तारा तू तोतला कुल्ला कुरुकुल्ला। आगम निगम प्रदात्री तू ही, आगम निगम प्रदात्री तू ही। शिव संग रास रचाती, शिव संग रास रचाती। परम तंत्र स्वतंत्र तू ही, परम तंत्र स्वतंत्र तू ही। वर अभिष्टदात्री ! तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी, तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी, जय जय रासरते जय जय रासरते। तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी, तू कौलाचारिणी तू समयाचारिणी, जय जय रासरते जय जय रासरते। #Ishaputra #Kurukulla #Sukulla #Vikulla #KaulantakPeeth #KaulantakVani
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  • माँ चंद्रघंटा देवी नवदुर्गा के तीसरे स्वरूप के रूप में पूजी जाती हैं और नवरात्रि के तीसरे दिन इनकी आराधना की जाती है। वे अपने दिव्य तेज और निर्भीक स्वरूप के लिए जानी जाती हैं, जो शौर्य, सौम्यता और संरक्षण का प्रतीक है। "चंद्रघंटा" नाम उनके मस्तक पर स्थित अर्धचंद्र से लिया गया है, जो घंटे के समान प्रतीत होता है। माँ का वाहन सिंह अथवा बाघ है, और वे दस भुजाओं में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र एवं शक्ति के प्रतीक धारण किए हुए दिखाई देती हैं, जिससे वे दुष्टों का नाश करती हैं और भक्तों की रक्षा करती हैं। यह माना जाता है कि माँ चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को साहस, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है, साथ ही भय, बाधाएँ और नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं। उनकी पूजा हमें धर्म के मार्ग पर अडिग रहकर निर्भीक और अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा देती है।

    #chandraghanta #navratri #durgapuja #kurukulla #ishaputra #Mahamaya #durga
    माँ चंद्रघंटा देवी नवदुर्गा के तीसरे स्वरूप के रूप में पूजी जाती हैं और नवरात्रि के तीसरे दिन इनकी आराधना की जाती है। वे अपने दिव्य तेज और निर्भीक स्वरूप के लिए जानी जाती हैं, जो शौर्य, सौम्यता और संरक्षण का प्रतीक है। "चंद्रघंटा" नाम उनके मस्तक पर स्थित अर्धचंद्र से लिया गया है, जो घंटे के समान प्रतीत होता है। माँ का वाहन सिंह अथवा बाघ है, और वे दस भुजाओं में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र एवं शक्ति के प्रतीक धारण किए हुए दिखाई देती हैं, जिससे वे दुष्टों का नाश करती हैं और भक्तों की रक्षा करती हैं। यह माना जाता है कि माँ चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को साहस, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है, साथ ही भय, बाधाएँ और नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं। उनकी पूजा हमें धर्म के मार्ग पर अडिग रहकर निर्भीक और अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा देती है। #chandraghanta #navratri #durgapuja #kurukulla #ishaputra #Mahamaya #durga
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  • संभल साम्रज्य दिवस (कुरुकुल्ला भगवती प्राकट्योत्सव) में होने वाले भैरव नृत्य की भी आज से तैयारियां शुरू हो चकी हैं। आज भैरव-भैरवी गणों के अभ्यास का तीसरा दिन है। भैरव नृत्य अभ्यास की कुछ तस्वीरें आपके सामने हम प्रस्तुत करते हैं।

    #SambhalaSamrajyaDivas #KurukullaPraktyotsva #ishaputra #Bhairavas #Utasva #LivePics
    संभल साम्रज्य दिवस (कुरुकुल्ला भगवती प्राकट्योत्सव) में होने वाले भैरव नृत्य की भी आज से तैयारियां शुरू हो चकी हैं। आज भैरव-भैरवी गणों के अभ्यास का तीसरा दिन है। भैरव नृत्य अभ्यास की कुछ तस्वीरें आपके सामने हम प्रस्तुत करते हैं। #SambhalaSamrajyaDivas #KurukullaPraktyotsva #ishaputra #Bhairavas #Utasva #LivePics
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  • #Ishaputra #MasterofMasters #Kalki #Avatar
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