• हिमालय के सिद्ध योगियों के प्रताप को भला कौन नहीं जानता? इन सिद्धों के अनेकों रहस्यों के कारण ही मानव सभ्यता सदा इनकी ओर आकर्षित होती रही है। इन्हीं सिद्धों की मठ रहित परम्परा को देखना हर योगी, यति सन्यासी व अध्यात्मवादी की आखिरी इच्छा होती है। धर्म योद्धाओं के पर्यायवाची नाम से विभूषित इन्हीं सिद्धों की परम पीठ 'रहस्य पीठ' 'यानि की कौलान्तक पीठ' में आयोजन हुआ था 'वैश्विक भैरव साधना शिविर' का । ये साधना शिविर आम जन-मानस हेतु नहीं था। केवल सिद्धों की परम्पराओं और आध्यात्मिक विश्वासों पर आँख मूँद कर श्रद्धा रखने वालों के लिए ही था। हालाँकि ये 'साधना शिविर' अत्यंत गोपनीय था, किन्तु हम इसे छुपाना नहीं चाहते। क्योंकि इतिहास के पन्नों पर कोई ये देखेगा की 'शिव और शक्ति' के पावन उत्सव से जगत को वंचित रखा गया। तो ये कलंक की भांति चुभता रहेगा। इसलिए हम साफ शब्दों में सर्वप्रथम ये बताना चाहेंगे की ये साधना शिविर और उसके समस्त तत्व आधुनिक विज्ञान और प्रमाण से इतर हैं।
    महाहिमालय पर महर्षि लोमेश जी नें पूर्व मन्वंतर में सिद्धों को एक रहस्य समझाया। कहा काल कि ''काल की गति को मृत्यु लोक में चार भागों में बांटा गया है। पहले से क्रमश: सतयुग, द्वापर, त्रेता फिर कलियुग। यही क्रम सृष्टि में सर्वत्र स्थित है। किन्तु वैवस्वत नामक मन्वंतर में एक चतुर्युगी में देवताओं द्वारा एक अद्भुत कृत्य संपन्न होगा। जिसे आवर्तन काल कहा जायेगा। अपने हितों व पृथ्वी की रक्षा हेतु काल की गति से देवता क्रीडा करेंगे। जिस कारण निरंतर प्रवाहमान समय चक्र में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलेगा। समय अपने क्रम को छोड़ कर आगे बढेगा। सतयुग के बाद सीधे त्रेता आएगा और त्रेता के बाद उलट कर द्वापर आएगा। जबकि कलियुग और सतयुग अपने ही समय पर स्थित रहेंगे। ये महारह्स्य बड़े से बड़े बुद्धिमान पुरुष की क्षमताओं से बाहर होगा। किन्तु सृष्टि का नियम है कि साक्षात देवता भी यदि चाहें कि उनके कार्यों से कोई प्रतिक्रिया न हो ये संभव नहीं है। विधि के विधान के विपरीत कार्य करने का एक दृष्य परिणाम रह जाएगा। अपने हित साधन में जुटे होने के कारण वो एक अति महीन चूक कर देंगे। क्योंकि वो चूक उनकी दृष्टि में नहीं आने वाली। सतयुग जिस क्षण समाप्त होगा ठीक उसी क्षण उनको द्वापर के स्थान पर त्रेता शुरू करना होगा। जिसके लिए अपरिमित उर्जा और तेजस्विता की आवश्यकता होगी। जब वो ये परिवर्तन करेंगे। तब देवताओं से समय परिवर्तन की शीघ्रता में एक निमिष भर समय सतुयग का शेष रह जाएगा। जो कलियुग के घोर काल में भी जीवनी शक्ति को बनाये रखेगा। कलियुग में शोषण, अन्याय, अत्याचार, स्वार्थ, अहंकार, अश्लीलता, माता-पिता और गुरु द्रोह जैसे जघन्य कर्मों के होने पर भी मनुष्य सभ्यता आगे गति करेगी। क्योंकि ये सतयुग का निमिष मात्र काल उनको तेजस्विता देता रहेगा। बार-बार प्रलय आदि संकटों से उस काल में भी धरती की रक्षा होगी। अन्याय के और असत्य के विरुद्ध आवाजें उठती रहेंगी। इश्वर के पुत्र धरती को धर्म और पुण्यों से रहित नहीं होने देंगे। सत्य के साधक अपने को बलि बेदी पर रख कर घोर अपमान पीते हुए हुए, हर अत्याचार से लड़ेंगे। अनेकों वीरगति को प्राप्त होंगे। उस काल में मलेच्छ सभ्यता और मलेछ आचरण सर्वत्र होगा। मलेच्छ ''धर्म'' और उसके कर्मों को नकारेंगे। मलेच्छ संगठन बना कर हर शक्ति के माध्यम से सत्य धर्म पर आक्रमण करेंगे। किन्तु कभी भी विजयी नहीं होंगे। वो दिन-रात सभी छल-बलों आदि का सहारा ले कर, मनुष्य सभ्यता को इश्वर से विमुख और ईश्वरीय साधकों से विमुख करने का प्रयास करेंगे। सत्व पर तमस की विजय दिखाई देने लगेगी। किन्तु हो नहीं पाएगी। जिसका कारण है देवताओं द्वारा निमिष भर काल को संतुलित न कर पाना। कलिकाल में यही निमिष प्रबल हो कर ब्रह्माण्ड में फैलेगा। तब सिद्ध इसका स्पर्श पा कर सत्य को उपलब्ध होंगे। तब असत्य पर फिर सत्य की जय होने लगेगी। असत्य की वाणी का प्रभाव निश्तेज होने लगेगा। तब भैरव विश्व की रक्षा और सतयुग के समर्थन के लिए सिद्धों को वीरता दे कर पृथ्वी पर सर्वत्र स्थापित करेंगे। भैरव शिव पुत्रों की स्थापना से कलिकाल काल का नियंत्रण अपने हाथों में लेंगे। सप्त ऋषियों द्वारा इस काल और घटना की भविष्यवाणी की जाएगी।
    (मौखिक सम्प्रदयानुगत कथा)


    कौलान्तक पीठ भारत की गोपनीय व रहस्य पीठ के रूप में प्रख्यात पीठ है। जिसके परम तेजस्वी साधक रूप बदल कर मानव मात्र के कल्याण में सदैव जुटे रहते हैं व रहस्य साधनाओं व तपोबल द्वारा गुप्त रूप से सृष्टि की रक्षा और मंगल की कामना करते हैं। इसी सिद्ध पीठ के पास सप्त ऋषियों का वो पंचांग है। जिसमें काल गणना व 'आंशिक सतयुग' की बात कही गयी है। किन्तु पीठ अपने प्राचीन मतों व परम्पराओं के कारण इसे सर्व साधारण के लिए प्रकट नहीं करती। इसी काल का निमिष शुरू हो चुका है। जिसका देवताओं के लिए तो कोई महत्त्व नहीं था। किन्तु देवताओं का ये काल मनुष्यों के लिए कम से कम दो सौ वर्ष व अधिक से अधिक छ: सौ वर्ष हो सकता है।
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #HimalayanSiddhas #Scrolllink #KaulantakVani
    हिमालय के सिद्ध योगियों के प्रताप को भला कौन नहीं जानता? इन सिद्धों के अनेकों रहस्यों के कारण ही मानव सभ्यता सदा इनकी ओर आकर्षित होती रही है। इन्हीं सिद्धों की मठ रहित परम्परा को देखना हर योगी, यति सन्यासी व अध्यात्मवादी की आखिरी इच्छा होती है। धर्म योद्धाओं के पर्यायवाची नाम से विभूषित इन्हीं सिद्धों की परम पीठ 'रहस्य पीठ' 'यानि की कौलान्तक पीठ' में आयोजन हुआ था 'वैश्विक भैरव साधना शिविर' का । ये साधना शिविर आम जन-मानस हेतु नहीं था। केवल सिद्धों की परम्पराओं और आध्यात्मिक विश्वासों पर आँख मूँद कर श्रद्धा रखने वालों के लिए ही था। हालाँकि ये 'साधना शिविर' अत्यंत गोपनीय था, किन्तु हम इसे छुपाना नहीं चाहते। क्योंकि इतिहास के पन्नों पर कोई ये देखेगा की 'शिव और शक्ति' के पावन उत्सव से जगत को वंचित रखा गया। तो ये कलंक की भांति चुभता रहेगा। इसलिए हम साफ शब्दों में सर्वप्रथम ये बताना चाहेंगे की ये साधना शिविर और उसके समस्त तत्व आधुनिक विज्ञान और प्रमाण से इतर हैं। महाहिमालय पर महर्षि लोमेश जी नें पूर्व मन्वंतर में सिद्धों को एक रहस्य समझाया। कहा काल कि ''काल की गति को मृत्यु लोक में चार भागों में बांटा गया है। पहले से क्रमश: सतयुग, द्वापर, त्रेता फिर कलियुग। यही क्रम सृष्टि में सर्वत्र स्थित है। किन्तु वैवस्वत नामक मन्वंतर में एक चतुर्युगी में देवताओं द्वारा एक अद्भुत कृत्य संपन्न होगा। जिसे आवर्तन काल कहा जायेगा। अपने हितों व पृथ्वी की रक्षा हेतु काल की गति से देवता क्रीडा करेंगे। जिस कारण निरंतर प्रवाहमान समय चक्र में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलेगा। समय अपने क्रम को छोड़ कर आगे बढेगा। सतयुग के बाद सीधे त्रेता आएगा और त्रेता के बाद उलट कर द्वापर आएगा। जबकि कलियुग और सतयुग अपने ही समय पर स्थित रहेंगे। ये महारह्स्य बड़े से बड़े बुद्धिमान पुरुष की क्षमताओं से बाहर होगा। किन्तु सृष्टि का नियम है कि साक्षात देवता भी यदि चाहें कि उनके कार्यों से कोई प्रतिक्रिया न हो ये संभव नहीं है। विधि के विधान के विपरीत कार्य करने का एक दृष्य परिणाम रह जाएगा। अपने हित साधन में जुटे होने के कारण वो एक अति महीन चूक कर देंगे। क्योंकि वो चूक उनकी दृष्टि में नहीं आने वाली। सतयुग जिस क्षण समाप्त होगा ठीक उसी क्षण उनको द्वापर के स्थान पर त्रेता शुरू करना होगा। जिसके लिए अपरिमित उर्जा और तेजस्विता की आवश्यकता होगी। जब वो ये परिवर्तन करेंगे। तब देवताओं से समय परिवर्तन की शीघ्रता में एक निमिष भर समय सतुयग का शेष रह जाएगा। जो कलियुग के घोर काल में भी जीवनी शक्ति को बनाये रखेगा। कलियुग में शोषण, अन्याय, अत्याचार, स्वार्थ, अहंकार, अश्लीलता, माता-पिता और गुरु द्रोह जैसे जघन्य कर्मों के होने पर भी मनुष्य सभ्यता आगे गति करेगी। क्योंकि ये सतयुग का निमिष मात्र काल उनको तेजस्विता देता रहेगा। बार-बार प्रलय आदि संकटों से उस काल में भी धरती की रक्षा होगी। अन्याय के और असत्य के विरुद्ध आवाजें उठती रहेंगी। इश्वर के पुत्र धरती को धर्म और पुण्यों से रहित नहीं होने देंगे। सत्य के साधक अपने को बलि बेदी पर रख कर घोर अपमान पीते हुए हुए, हर अत्याचार से लड़ेंगे। अनेकों वीरगति को प्राप्त होंगे। उस काल में मलेच्छ सभ्यता और मलेछ आचरण सर्वत्र होगा। मलेच्छ ''धर्म'' और उसके कर्मों को नकारेंगे। मलेच्छ संगठन बना कर हर शक्ति के माध्यम से सत्य धर्म पर आक्रमण करेंगे। किन्तु कभी भी विजयी नहीं होंगे। वो दिन-रात सभी छल-बलों आदि का सहारा ले कर, मनुष्य सभ्यता को इश्वर से विमुख और ईश्वरीय साधकों से विमुख करने का प्रयास करेंगे। सत्व पर तमस की विजय दिखाई देने लगेगी। किन्तु हो नहीं पाएगी। जिसका कारण है देवताओं द्वारा निमिष भर काल को संतुलित न कर पाना। कलिकाल में यही निमिष प्रबल हो कर ब्रह्माण्ड में फैलेगा। तब सिद्ध इसका स्पर्श पा कर सत्य को उपलब्ध होंगे। तब असत्य पर फिर सत्य की जय होने लगेगी। असत्य की वाणी का प्रभाव निश्तेज होने लगेगा। तब भैरव विश्व की रक्षा और सतयुग के समर्थन के लिए सिद्धों को वीरता दे कर पृथ्वी पर सर्वत्र स्थापित करेंगे। भैरव शिव पुत्रों की स्थापना से कलिकाल काल का नियंत्रण अपने हाथों में लेंगे। सप्त ऋषियों द्वारा इस काल और घटना की भविष्यवाणी की जाएगी। (मौखिक सम्प्रदयानुगत कथा) कौलान्तक पीठ भारत की गोपनीय व रहस्य पीठ के रूप में प्रख्यात पीठ है। जिसके परम तेजस्वी साधक रूप बदल कर मानव मात्र के कल्याण में सदैव जुटे रहते हैं व रहस्य साधनाओं व तपोबल द्वारा गुप्त रूप से सृष्टि की रक्षा और मंगल की कामना करते हैं। इसी सिद्ध पीठ के पास सप्त ऋषियों का वो पंचांग है। जिसमें काल गणना व 'आंशिक सतयुग' की बात कही गयी है। किन्तु पीठ अपने प्राचीन मतों व परम्पराओं के कारण इसे सर्व साधारण के लिए प्रकट नहीं करती। इसी काल का निमिष शुरू हो चुका है। जिसका देवताओं के लिए तो कोई महत्त्व नहीं था। किन्तु देवताओं का ये काल मनुष्यों के लिए कम से कम दो सौ वर्ष व अधिक से अधिक छ: सौ वर्ष हो सकता है। #Ishaputra #KaulantakPeeth #HimalayanSiddhas #Scrolllink #KaulantakVani
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  • हमारा सच्चा मित्र कौन है ?
    हमारा सच्चा मित्र कौन है 😊?
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  • वन्दे शिव परम्पराम्
    वन्दे कौल परम्पराम्
    वन्दे ईश परम्पराम्
    वन्दे सत्य परम्पराम्
    वन्दे नित्य परम्पराम्
    वन्दे अक्षर परम्पराम्
    वन्दे ज्ञान परम्पराम्
    ।।ॐ नमो कौलनाथाय ईशपुत्राय नम: त्वां चरणे अर्पणमस्तु।।
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #MahayogiSatyendraNath #SambhalaSamrajya
    वन्दे शिव परम्पराम् वन्दे कौल परम्पराम् वन्दे ईश परम्पराम् वन्दे सत्य परम्पराम् वन्दे नित्य परम्पराम् वन्दे अक्षर परम्पराम् वन्दे ज्ञान परम्पराम् ।।ॐ नमो कौलनाथाय ईशपुत्राय नम: त्वां चरणे अर्पणमस्तु।। #Ishaputra #KaulantakPeeth #MahayogiSatyendraNath #SambhalaSamrajya
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  • https://www.instagram.com/reel/CiBv8D3gxQp/?igsh=MW00ZW1zbTNtNmEyeg==
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  • मार्कंडेय पुराण के अनुसार चतुर्थ नवरात्र की देवी का नाम कूष्मांडा देवी है, प्राचीन कथा के अनुसार जब ये ब्रह्माण्ड बना ही नहीं था, तब माँ योगमाया ने सृष्टि की उत्त्पति के लिए ब्रह्मा जी को ज्ञान दिया, किन्तु ब्रह्मा जी तो मन में कामना करते की ऐसी सृष्टि पैदा हो लेकिन उसे पूरा कैसे किया जाए तो योगमाया से ब्रह्मा जी ने सहायता मांगी,देवी को स्तुति से प्रसन्न कर ब्रह्मा जी को देवी से सृष्टि निर्माण की कला प्राप्त हुई, तब देवी ने सबसे पहले अंड अर्थात ब्रह्माण्ड पैदा किया, तथा सृष्टि में गर्भ के अतिरिक्त अण्डों से जीवन पैदा करने की शक्ति भी ब्रह्मा जी को दी, स्वयं भी देवी करोड़ों सूर्य के सामान तेजस्वी स्वरुप में, ब्रहमां में सूर्य मंडल के भीतर स्थित रहती हैं, ऐसी सामर्थ्य देवी के अतिरिक्त किसी और में नहीं है, देवी आठ भुजाओं वाली हैं, जिनमें कमल पुष्प, धनुष, तीर, कमंडल, चक्र, गदा,माला तथा अमृत कलश है धारण किये हुये हैं व सिंह के आसन पर सवार हैं, देवी साधक को अमरत्व का वरदान देने में समर्थ हैं, इच्छा मृत्यु का वर देने वाली देवी, साधक के सब दुखों को हरने में क्षण मात्र भी देर नहीं करती, देवी भक्ति, आयु, यश, बल, आरोग्य देने में जरा भी बिलम्ब नहीं करती, देवी पारलौकिक विद्याओं की जननी है, जीवन को धर्म एवं कृपा से भर देने में सामर्थ है

    ब्रह्माण्ड को पैदा करने के कारण देवी का नाम पड़ा कूष्मांडा, महाशक्ति कूष्मांडा योगमाया का दिव्य तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को पैदा करने के लिए उत्पन्न हुआ, संसार में अण्डों से जीवन की उत्त्पत्ति कराने की शक्ति ब्रह्मा जी को देने के कारण भी देवी को कूष्मांडा कहा जाता है, देवी के उपासक अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं तथा इछामृतु का वर देने वाली यही देवी हैं, देवी भक्ति, आयु, यश, बल, आरोग्य देने में जरा भी बिलम्ब नहीं करती, देवी को प्रसन्न करने के लिए चौथे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के पांचवें व छठे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
    महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
    (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)

    देवी कूष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है

    मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै नम:

    दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें

    जैसे मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै स्वाहा:

    माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ

    यन्त्र-
    775 732 786
    151 181 102
    762 723 785


    यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को भगवे रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार भगवे रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को केसर, लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा कभी भी की जा सकती है, रात्री की पूजा का देवी कूष्मांडा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है
    मंत्र जाप के लिए भी संध्या व रात्री मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक बड़ा घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व कलश को लाल कपडे से ढक कर रखें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए

    मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं

    मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को भगवे वस्त्र, रुद्राक्ष माला तथा गेंदे के फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए
    मंदिर में भगवे रंग की ध्वजा चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, अनाहत चक्र में देवी का ध्यान करने से चौथा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में कपूर व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए

    चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै

    ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, चौथे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और दो अन्य नदियों का जल लाना बहुत बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे संतान प्राप्ति की समस्या हो या विदेश यात्रा की, या पद्दोंन्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र

    ॐ क्षूं क्षुधास्वरूपिन्ये देव बन्दितायै नम:

    नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें

    ॐ शरणागतदीनार्त परित्राणपरायणे
    सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणी नमोस्तुते

    यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा चौथे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी गुफा वाले शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज चौथे नवरात्र को चार कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ आभूषण देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, चौथे नवरात्र को अपने गुरु से "ब्रहमांड दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप देवत्व प्राप्त कर लेते हैं व ब्रह्म विद्या की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, चौथे नवरात्र पर होने वाले हवन में काले तिलों की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले चौथे नवरात्र का ब्रत ठीक सात पंद्रह बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर का प्रसाद बांटना चाहिए
    आज सुहागिन स्त्रियों को भगवे अथवा पीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और भगवे या पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए

    -कौलान्तक पीठाधीश्वर
    महायोगी सत्येन्द्र नाथ
    #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri
    मार्कंडेय पुराण के अनुसार चतुर्थ नवरात्र की देवी का नाम कूष्मांडा देवी है, प्राचीन कथा के अनुसार जब ये ब्रह्माण्ड बना ही नहीं था, तब माँ योगमाया ने सृष्टि की उत्त्पति के लिए ब्रह्मा जी को ज्ञान दिया, किन्तु ब्रह्मा जी तो मन में कामना करते की ऐसी सृष्टि पैदा हो लेकिन उसे पूरा कैसे किया जाए तो योगमाया से ब्रह्मा जी ने सहायता मांगी,देवी को स्तुति से प्रसन्न कर ब्रह्मा जी को देवी से सृष्टि निर्माण की कला प्राप्त हुई, तब देवी ने सबसे पहले अंड अर्थात ब्रह्माण्ड पैदा किया, तथा सृष्टि में गर्भ के अतिरिक्त अण्डों से जीवन पैदा करने की शक्ति भी ब्रह्मा जी को दी, स्वयं भी देवी करोड़ों सूर्य के सामान तेजस्वी स्वरुप में, ब्रहमां में सूर्य मंडल के भीतर स्थित रहती हैं, ऐसी सामर्थ्य देवी के अतिरिक्त किसी और में नहीं है, देवी आठ भुजाओं वाली हैं, जिनमें कमल पुष्प, धनुष, तीर, कमंडल, चक्र, गदा,माला तथा अमृत कलश है धारण किये हुये हैं व सिंह के आसन पर सवार हैं, देवी साधक को अमरत्व का वरदान देने में समर्थ हैं, इच्छा मृत्यु का वर देने वाली देवी, साधक के सब दुखों को हरने में क्षण मात्र भी देर नहीं करती, देवी भक्ति, आयु, यश, बल, आरोग्य देने में जरा भी बिलम्ब नहीं करती, देवी पारलौकिक विद्याओं की जननी है, जीवन को धर्म एवं कृपा से भर देने में सामर्थ है ब्रह्माण्ड को पैदा करने के कारण देवी का नाम पड़ा कूष्मांडा, महाशक्ति कूष्मांडा योगमाया का दिव्य तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को पैदा करने के लिए उत्पन्न हुआ, संसार में अण्डों से जीवन की उत्त्पत्ति कराने की शक्ति ब्रह्मा जी को देने के कारण भी देवी को कूष्मांडा कहा जाता है, देवी के उपासक अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं तथा इछामृतु का वर देने वाली यही देवी हैं, देवी भक्ति, आयु, यश, बल, आरोग्य देने में जरा भी बिलम्ब नहीं करती, देवी को प्रसन्न करने के लिए चौथे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के पांचवें व छठे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं) देवी कूष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै नम: दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै स्वाहा: माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ यन्त्र- 775 732 786 151 181 102 762 723 785 यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को भगवे रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार भगवे रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को केसर, लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा कभी भी की जा सकती है, रात्री की पूजा का देवी कूष्मांडा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है मंत्र जाप के लिए भी संध्या व रात्री मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक बड़ा घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व कलश को लाल कपडे से ढक कर रखें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को भगवे वस्त्र, रुद्राक्ष माला तथा गेंदे के फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए मंदिर में भगवे रंग की ध्वजा चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, अनाहत चक्र में देवी का ध्यान करने से चौथा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में कपूर व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, चौथे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और दो अन्य नदियों का जल लाना बहुत बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे संतान प्राप्ति की समस्या हो या विदेश यात्रा की, या पद्दोंन्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र ॐ क्षूं क्षुधास्वरूपिन्ये देव बन्दितायै नम: नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें ॐ शरणागतदीनार्त परित्राणपरायणे सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणी नमोस्तुते यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा चौथे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी गुफा वाले शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज चौथे नवरात्र को चार कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ आभूषण देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, चौथे नवरात्र को अपने गुरु से "ब्रहमांड दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप देवत्व प्राप्त कर लेते हैं व ब्रह्म विद्या की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, चौथे नवरात्र पर होने वाले हवन में काले तिलों की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले चौथे नवरात्र का ब्रत ठीक सात पंद्रह बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर का प्रसाद बांटना चाहिए आज सुहागिन स्त्रियों को भगवे अथवा पीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और भगवे या पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए -कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ #Ishaputra #KaulantakPeeth #KaulantakVani #Navratri
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  • AI में Chatgpt सबसे अच्छा है।
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